जन्म और मृत्यु दोनों सुंदर हो वह शिव कथा ,रामकथा अंतकरण की पवित्रता कथा श्रवण से आचार्य झम्मन शास्त्री
कवर्धा – ठाकुर पार शौर्य भवन कवर्ध में आयोजित सत्संग सभा में आचार्य झम्मन शास्त्री जी वर्तमान समय में कथा सत्संग आराधना संकीर्तन सेवा का रस रहस्यमय वाणी में निरुपण करते हुए बताया सत्संग के माध्यम से भगवत कथा शिव कथा श्रवण करने से मन और चित्त शुद्ध समाहित हो जाता है।
अंतःकरण पवित्र होता है। मन बुद्धि चित्त और विचारों की पवित्रता के लिए भगवत कथा परम साधन है ।षट् विकारो से रहित जीवन के लिए भगवान की कथा के साथ नाम रूप लीला और धाम से जुड़कर जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए।
शास्त्री जी ने कहा नीति और अध्यात्म विहीन शिक्षा पद्धति के प्रभाव से समाज में नैतिक मूल्यों का अभाव होते जा रहा है।
चारों तरफ कु संस्कार तथा विकार ग्रस्त युवापीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता का अंधा अनुकरण कर विश्व प्रसिद्ध भारतीय संस्कृति सनातन परंपरा से दूरी बढ़ा कर भ्रमित है।
ऐसी दशा में राम कथा कृष्ण कथा शिव कथा के माध्यम से आदर्श समाज परिवार तथा राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणा प्राप्त करने की आवश्यकता है।
जिससे समाज में सुख परस्पर सौहार्द शांति सद्भाव प्रेम एकता की स्थापना संभव है ।
मानव के लिए रामायण आचार संहिता है ।प्रत्येक घरों में रामायण का पाठ हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ नित्य हो जिससे बच्चे सुसंस्कारित विचारवान कर्तव्य सेवा परायण इश्वर धर्म माता पिता गुरु तथा राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना से कार्य करने में सक्षम बन सकेंगे ।आचार्य श्री कथा के माध्यम से श्रद्धालु भक्तों को प्रेरित करते हुए कहा हमारा जीवन और मृत्यु दोनों धन्य हो जाए उसके लिए शिवकथा राम कथा ही माध्यम है । राजा दशरथ का जन्म लेना सार्थक जीवन भी सुंदर मृत्यु भी सुन्दर उन्होंने बना लिया प्रभु राम को पुत्र रुप में प्राप्त कर जीवन धन्य था ।मृत्यु काल मे राम राम रटते हुए देह का त्याग कर बना लिया साक्षात वैकुंठ लोक के अधिकारी बन गए। भगवान ने अहैतुकी कृपा कर 8400000 योनि में परम दुर्लभ मानव जीवन प्रदान किया है। इसलिए एक एक क्षण का सदुपयोग परमार्थ के लिए करना चाहिए। जिससे इस जन्म में हम कृत्कृत्य हो जाएं फिर से जन्म लेना ना पड़े। पूज्य पाद गुरुदेव भगवान के द्वारा प्रदत्त अमृतवाणी को श्रवण कर एक सवा घंटा भजन का व्रत सभी भक्तों को अवश्य लेना चाहिए। 15 ,15 मिनट 5 बार में ही सही आराधना तप के द्वारा जीवन को सार्थक करने का प्रयास करें। तथा सेवा प्रकल्प के द्वारा परिवार समाज तथा राज्य में अपना यशकृर्ति फैलाए तो अभिमान इर्ष्या अहंकार द्वेष ,दंभ, पाखंड, आदि।
दोषो से बचकर भगवत प्राप्ति करना शुलभ हो जाएगा। मनुष्य यांत्रिक युग मे सुविधा बढ़ाओ समय बचाओ के लिए सबकुछ भौतिक संसाधन तो बढ़ा लिये। फिर धर्म इश्वर राष्ट्र भक्ति सेवा कथा साधना के लिए समय नहीं है। कैसी विडंबना है। ऐसे केवल भौतिक विकास से आध्यात्मिक जीवन यापन से अशांति कलह कटुता संघर्ष आधि व्याधि रैग भय का हिन्सा का वातावरण निर्माण हो रहा है।
अंत में आचार्य श्री ने आवाहन किया कि महामारी को रोना काल मैं अभी सतर्कता पूर्वक सात्विक आहार का सेवन तथा सदाचार संयम साधनामय जीवन हो स्वच्छता के साथ-साथ शुद्धता पवित्रता पर विशेष ध्यान दें समुचित दूरी का पालन करते हुए मास्क अवश्य लगावे सनातन वैदिक परंपरा से शास्त्री विधान युक्त रीति से जगह-जगह यज्ञ का संपादन हो सनातन वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन हो प्रकृति और परमात्मा से दूरी ना बढ़े इसका चिंतन करते हुए सुसंस्कृत सुशिक्षित सुरक्षित संपन्न सेवा परायण व्यक्ति तथा समाज की संरचना राजनीति की परिभाषा हो।
तथा विकास का स्वरुप भी इसी आधार पर निर्धारित हो आत्मनिर्भर भारत बनाने मे सफलता संभव है। शास्त्री जी ने कहा महामारी रोग के गर्भ से विस्फोट होकर नए रोग का प्रादुर्भाव न हो।
इसके लिए चिरपरीक्षित वैदिक महर्षियों के द्वारा प्राप्त प्रदत्त मार्ग का अनुसरण ही एक मात्र उपाय है।
।।नान्यः पन्था विद्यतेयनाय।। अतं मे आभार प्रदर्शन नगरपालिका अध्यक्ष श्री ऋषि जी एवं उनके साथ उपस्थित पार्षद अन्य नगर एवं क्षेत्र से श्रद्धालु भक्ततो की अपार भीड़ रही ।
आचार्य श्री प्रेरणा से सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए गुरू देव भगवान के द्वारा स्थापित संस्था का धर्म एवं राष्ट्र जागरण के लिए जगह जगह गठन करने का संकल्प लिया
पीठ परिषद आदित्य वाहिनी आनंद वाहिनी कवर्धा ।
सप्ताहिक सेवा प्रकल्प के साथ प्रत्येक हिंदू परिवार से ₹1 प्रतिदिन तथा 1 घंटा संकीर्तन सत्संग सेवा के लिए लगाने का प्रयास करेगे।प्राप्त रूपय तथा समय का सदुपयोग अपने-अपने क्षेत्र में जनमानस को सुबुद्ध तथा स्वावलंबी बनाने के लिए किया जाएगा।