हल्बी गोंडी दोरली का अस्तित्व बचाने हुई कार्यशाला, राजभाषा का दर्जा देने की उठी मांग
Rajeev Gupta
कोंडागांव । हल्बी गोंडी दोरली आदि क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद आदिवासीशोध व कल्याण परिषद व जनजाति सरोकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ककसाड के सयुंक्त तत्ववाधान में बैठक सह कार्यशाला का आयोजन किया गया कार्यशाला की शुरुआत शिप्रा त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत दंतेश्वरी वंदना से हुई कार्यशाला का उद्देश क्षेत्रीय बोलियों के संरक्षण व संवर्धन के लिए उपाय सुझाना था।
हल्बी गोंडी दोरली को राजभाषा का दर्जा देने की उठी मांग
इस कार्यशाला में छत्तीसगढ़ी के साथ साथ हल्बी गोंडी दोरली को राजभाषा बनाने की मांग पुरजोर तरीके से उठाई गई कार्यशाला में बोलते हुए डा राजाराम त्रिपाठी राज्य की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी छतीसगढी के साथ साथ हल्बी गोंडी दोरली को भी राजभाषा का दर्जा दिए जाने अपने तर्क सम्मत विचार साझा की। बृजेश तिवारी ने क्षेत्रीय बोली वह भाषा के महत्व को रेखांकित किया वरिष्ठ साहित्यकार सुरेंद्र रावल ने हल्बी सहित क्षेत्रीय भाषाओं को राजभाषा बनाने का समर्थन किया। शोधार्थी अखिलेश त्रिपाठी ने बस्तर की क्षेत्रीय बोलियों पर अपना शोध प्रस्तुत किया। परिषद के अध्यक्ष हरेंद्र यादव ने भी अपनी विचारों में राजभाषा बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों में अपनी सहभागिता दिखाई कार्यक्रम संचालिका वरिष्ठ कवित्री मधु तिवारी ने प्राथमिक शिक्षा में हल्बी गोंडी क्षेत्रीय भाषाओं मैं वह पर अपने विचार रखे हल्बीके सशक्त हस्ताक्षर महेश पांडे राष्ट्रपति पुरस्कृत शिल्पकार तीजू राम विश्वकर्मा न्यूटन फेम खीरेन्द्र यादव, युवा लेखक हर्ष लाहोटी, जमील खान ने अपने वक्तव्य में हल्बी गोंडी दोरली को राजभाषा बनाए जाने का समर्थन किया ।
डॉ किरण नूरूटी का हुआ सम्मान
कार्यक्रम के मध्य में हलबी भाषा शोध कार्य करने व बढ़ावा देने के लिए डॉ किरण नूरुटी का साल श्रीफल से सम्मान किया गया। परिषद के वरिष्ठ संरक्षक टीएस ठाकुर ने परिषद द्वारा क्षेत्रीय बोलियों अस्तित्व बचाने के लिए यह जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए शुभकामनाएं दी इस अवसर पर पंकज द्विवेदी, कान्हा त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी गण उपस्थित थे ।