वर्षावास में उपासकों ने ग्रहण किया त्रिशरण पंचशील Worshipers received Trisharan Panchsheel in Varshavas
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भिलाई/ भारतीय बौद्ध महासभा भिलाई के द्वारा बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर सांस्कृतिक भवन सेक्टर-6 भिलाई में त्रैमासिक वर्षावास के अवसर पर रविवार एक अगस्त को भंते महेन्द्र एवं भंते रेवतबोधि की गरिमामयी उपस्थिति में उपासक उपासिकाओं ने त्रिशरण पंचशील ग्रहण किया।
सामूहिक बुद्ध वंदना के बाद भंते महेन्द्र ने धम्मदेशना देते हुए बौद्धधम्म में वर्षावास महत्व बताया। उन्होंने कहा कि इसका प्रारम्भ बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने किया था। वर्षावास के तीन माह में भिक्षु एवं श्रामणेर संघ विहार में रहकर बौद्ध धम्म की बारीकियों का अध्ययन चिंतन एवं मनन करते हैं। आषाढ पौर्णिमा के दिन वर्षावास शुरू होता है, और यह आश्विनी पुर्णिमा को समाप्त होता है।
बुद्ध के समय काल में बुद्ध ने सभी भिक्षुओं को आदेश दिया की वे धम्म का प्रचार प्रसार करे और सभी बौद्ध भिक्खु इस काम में लग गए लेकिन यह काम करते हुए उन्हें कई संकटो को सामना करना पड़ता और खास कर बारिश के मौसम में नदियों नालों में बाढ़ के कारण बौद्ध भिक्षु बह जाते थे और उनके चलने से खेत की फसलों को नुकसान पहुँचता था इसलिए उन्होंने तथागत को यह बात बताई। तब बुद्ध ने आदेश दिया कि आषाढ़ पौर्णिमा से आश्विनी पूर्णिमा सभी भिक्षु एक स्थान पर रहे वे गांवों में भिक्षाटन हेतु न जाए और एक स्थान पर रह कर धम्म का पठन पाठन कर धम्म प्रचार प्रसार करे।
उन्होंने कहा कि इस तरह यह वर्षावास बुद्ध के समय काल से ही मौजूद है। तथागत बुद्ध ने अपना पहला वर्षावास ईसा पूर्व 527 में सारनाथ के ऋषिपतन में किया और उस के बाद इस स्थान पर अपना 45 वा वर्षावास भी किया। इसके आलावा उन्होंने श्रावस्ती, जेतवन, वैशाली और राजगृह इत्यादि विहार में वर्षावास किए। यह वर्षावास थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका कम्बोडिया और बांग्लादेश के बौद्ध अनुयाइयों द्वारा किया जाता है।
उन्होंने कहा कि वर्षावास के समय बौद्ध धर्म के उपासक और उपासिकाओ को भी आष्टांगिक मार्ग का पालन करने का प्रयास करना चाहिए और साथ ही पंचशील के नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
इन तीन महिनो में शील और विनय का बहुत महत्व होता है। पूज्य भंते रेवतबोधि ने भी धम्मदेशना दी। इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष नरेन्द्र खोब्रागडे, उपाध्यक्ष इन्द्रकुमार रामटेके,लेखापाल प्रकाश मेश्राम,सचिव शोभा पाटिल , मूलचंद गढ़पायले,विनोद टेंभरे हरीश भोवते,भूपत बोरकर, कुसुम गजभिऐ, उमराव मेश्राम, यशवंत रामटेके, इन्द्रकुमार भौतिक एवं काफी संख्या में उपासक उपासिकाऐं उपस्थित थे।