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*सावन की दुसरी सोमवारी आज, सहसपुर के प्राचीन शिव मंदिर में जलाभिषेक को उमड़ेंगे श्रद्धालु*

*बेमेतरा/देवकर:-* इन दिनों वर्ष का सबसे पवित्र माह सावन चल रहा है। जिसे शिव जी के खास माह माना जाता है। इस कारण यह माह बाबा भोले के भक्तों के लिए सावन माह बहुत ही खास होता है। इस अवसर सावन माह के आगमन से लेकर अंतिम दिन तक शिवभक्त भोलेबाबा पर फूल, बेलपत्र, जल व दूध चढ़ाने के लिए उत्साही रहते है। आज सोमवार को सावन का दूसरा दिन है। इसके साथ देवकर नगर क्षेत्र के सभी शिव मंदिरों में आज पुनः शिवभक्तों की भीड़ जमेगी। जिसमें पूरे विधि-विधान से भोलेनाथ के शिवलिंग में जलाभिषेक किया जाएगा। जिसका सबसे खास आकर्षण व झलक नगर से लगे सहसपुर के अति प्राचीन मंदिर में देखने को मिलता है।

*खजुराहो काल की अतीत से जुड़ा आंशिक छाप वाला प्राचीन शिव मंदिर*

उल्लेखनीय है कि नगर देवकर से चार किलोमीटर दूर खैरागढ़-राजनांदगांव मार्ग पर बसे ग्राम सहसपुर वर्तमान समय में शिव जी के प्राचीन मंदिर के कारण ज्यादा चर्चा में बना हुआ है। क्योंकि यहां का प्राचीन शिव मंदिर बहुत ही प्राचीन है। जिसका कारण इसकी आसपास के आंचलिक इलाके में खूब ख्याति है। सावन का महीना तो यहां के रहवासियों के लिए बड़े उत्सव से कम नहीं रहता है। सुबह से ही मंदिर में श्रद्घालुओं की जमघट लगती है। जिससे मंदिर की घंटियां लगातर बजती रहती है। सदियों से अनवरत निरंतर चले आ रहे सावन के जलाभिषेक को स्थानीय शिवभक्त ग्रामीणों में आज भी बरकरार रखा है। इसके कारण सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। प्रत्येक सोमवार को यहां विशेष आरधना की जाती है। वहीं कुछ रुद्राभिषेक तो रामायण पाठ सहित कई मंत्र जाप व पाठ भक्तिमय रूप से श्रद्घालुओं द्वारा किया जाता है। सालभर में शिव रात्रि के साथ ही यह सावन का महीना भी, अति उत्तम होता है।

गौरतलब है कि हर दृष्टिकोण से बना इस सर्वश्रेष्ठ निर्माण का आर्किटेक्चर इतना सटीक है कि प्रतिदिन इस शिवलिंग का रंग-स्वरूप बदलता रहता है। इसके कारण क्षेत्र में कौतूहल रहता है।

*प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास*

दरअसल यह प्राचीन मंदिर लगभग 13वीं से 14वीं सती ईसवीं के मध्य माना जाता है। जिसे तत्कालीन नागवंशी शासकों द्वारा निर्माण कराया गया है। तत्कालीन दौर में सहसपुर कुछ राजवंश के लिए एक छोटा गढ़ माना जाता रहा। इस कारण उस काल में काफी मजबूत आधार-संरचना के साथ इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इसके कारण यह आज भी सदियों बाद विराजमान है। प्राचीन शिव मंदिर खजुराहों काल के समय का होने के कारण उस काल का विशिष्ट छाप होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ पुरातत्व व संस्कृति विभाग द्वारा राज्य स्मारक का दर्जा देकर प्रदेश संरक्षण प्राप्त है।जिसके कारण पूरे जिलेभर में यह काफी प्रसिद्ध शिवभक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है।

*मंदिर का भौतिक स्वरूप आकर्षक एवं प्राचीन*

यह प्रचीन मंदिर पूरी तरह से 13-14वीं सदी की खजुराहो की आंशिक कलाकृतियों को भी प्रदर्शित करता हैं। यह मंदिर दो अलग खंडों में विराजित है। जिसमें एक को बजरंग बली के मंदिर के नाम से लोकप्रिय है। वहीं आठ स्तम्भों पर आधरित, मुख्य मंदिर का स्वरूप मंडप, अंतराल व गर्भगृह में विभक्त है। जिसमें बाहरी दीवारों पर जहां बड़े-बड़े को जोड़कर उनपर संयुक्त न-ाशी की गई है। तो पिछली भित्ति पर तीन मिथुन, षडभुजी नृतगणपति, सप्त अश्वरथ पर आसीन सूर्यदेव की प्रतिमा सहित कुछ जगहों पर खजुराहो स्वरूप आंशिक प्रतिमा भी है। वहीं अंदर गर्भगृह में शिवलिंग की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है, जहां पर सदियों से भक्त अनवरत शिवलिंग पर जलाभिषेक करते आ रहे है। यह पूरा इलाका नागवंशी शासकों की कलाकृतियों व शिल्पकारिता को प्रदर्शित करता है।

*मंदिर पर जलाभिषेक का महत्व*

आमतौर पर शिवलिंग पर जलाभिषेक अनवरत सदियों से चली आ रही है। जिस पर ग्रामीणों का कहना है कि जलाभिषेक करने से मन की सारी कामना पूरी हो जाती है। वहीं ग्राम में इससे कभी भी विपत्ति नहीं आती है। विगत कुछ वर्ष पूर्व जब सूबे के नेता व कैबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे बीमार हुए तो यहां के भक्तों ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर पूजा अर्चना की।

*नगर-अंचल के कई शिव मंदिरों में भी सावन का धूम*

चूँकि प्राचीन शिव मंदिर सहसपूर के अलावा नगर देवकर सहित आसपास के सभी ग्रामीण इलाकों के शिव मंदिरों में भी शिव भक्तों व श्रद्घालुओं की स्थानीय स्तर पर खूब जमघट नजर आ रही है। सभी जगह इन दिनों सावन का विशेष आकर्षण व बोलबम की गूंज जैसे भक्तिमय धुन नजर आ रहा है।

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