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निगम अधिकारियों की उदासनीता के चलते बदहाली के आंसू बहा रहे हैं बाल उद्यान

देखरेख के अभाव में कबाड़ में तब्दील हो गए खेल उपकरण

भिलाई।  निगम के अधिकारी और पार्षदों का जिसमें लाभ नही होगा वो काम वे कभी नही करवायेंगे। सभी कार्यों में अधिकारियों और वार्ड के पार्षदों का कमीशन का प्रतिशत फिक्स रहता है। उसी हिसाब से लोगों की जरूरत दिखाकर अपने प्रमुख अधिकारियों को प्रस्ताव बनाकर उस कार्य के लिए वर्क आर्डर निकालने का कार्य होता है और जब कार्य पूरा होने के साथ मकसद पूरा हो जाता है उसके बाद यही निगम के अधिकारी उस ओर ध्यान देना ही बंद कर देते हैं जिसके कारण उनके द्वारा पूर्व में कराया गया विकास कार्य हो या भवन हो या उद्यान निर्माण सभी कबाड़ में तब्दील होने लगता है। यही स्थिति है  भिलाई-चरोदा नगर निगम द्वारा बच्चों के मनोरंजन हेतु विकसित किए गए बाल उद्यान की। यहां के बाल उद्यान बदहाली के आंस बहा रहे हैं। देखरेख के अभाव में उद्यानों पर लगाये गए खेल उपकरण कबाड़ में तब्दील हो गए हैं। वहीं कई उद्यानों के कई सामान लोहा चोर चोरी कर कबाडिय़ों को बेंच दिये। उद्यानों में सामग्री लगाने के बाद फिर कभी भी निगम वाले टूटफूट पर संधारण कराने की कोई जरुरत नहीं समझी गई है।

खाली भूखण्डों में सौंदर्यीकरण के नाम पर बाल उद्यान विकसित करने निगम और जनप्रतिनिधियों की सोंच लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। भिलाई चरोदा निगम द्वारा विभिन्न वार्डों में बाल उद्यान विकसित कर बच्चों के खेलने हेतु सामग्री स्थापित की गई थी। बच्चों का पसंदीदा घोड़ा झूला, राउडिंग झूला, डक झूला, कुर्सियां सहित अन्य खेल उपकरण लगाने में लाखों की राशि पानी की तरह बहा दिए गए। लेकिन खेलने-कूदने के दौरान होने वाली टूटफूट को समय-समय पर दुरुस्त करने के प्रति रही अनदेखी के चलते आज की स्थिति में सभी बाल उद्यान  उजाड़ हो गए हैं। लगाये गए झूले कबाड़ में तब्दील होकर पड़े हुए हैं। जबकि कुछ सामानों की चोरी भी हो चुकी है।

गौरतलब रहे कि नगर निगम द्वारा पार्षदों को अपनी मनमर्जी से काम करने के लिए शासन के माध्यम से निधि आबंटित की जाती है। प्राय: देखा जाता रहा है कि पार्षद और एल्डरमेेन अपनी निधि से सड़क, नाली अथवा भवन आदि का निर्माण कराने के बजाए अपने वार्ड में बाल उद्यान बनाने की अनुशंसा करते हैं। निगम गठन से पहले पालिका कार्यकाल के समय तात्कालीन पार्षद और एल्डरमेन में बाल उद्यान विकसित करने के लिए होड़ सी मची रही थी। ज्यादातर पार्षद व एल्डरमेन ने उस वक्त पार्षद निधि के रूप में मिलने वाली एक लाख की कम का उपयोग बच्चों की खेल सामग्री खरीदने में किया। इन खेल सामग्रियों को वार्ड के खाली जगहों में लगाकर बच्चों को एक सौगात जरुर दी गई। लेकिन समुचित देखरेख के अभाव में पार्षद निधि से लगाये गए खेल उपकरण टूट कर अनुपयोगी हो गए हैं।

बाल उद्यानों की दुर्दशा भिलाई-चरोदा के अनेक वार्डों में देखी जा सकती है। बावजूद इसके वर्तमान में भी निगम के कई पार्षद व एल्डरमेन अपनी निधि से बाल उद्यान में खेल उपकरण लगाने हेतु प्रस्ताव देने से परहेज नहीं कर रहे हैं। भिलाई-3 के विश्व बैंक कालोनी में सबसे पहले उद्यान बनाकर बच्चो के लिए खेल सामग्री लगाई गई थी। लेकिन आज की स्थिति में वह उद्यान बरसाती झाडिय़ों से अटा पड़ा है और एक भी खेल सामग्री बची नहीं। वार्ड 14 में बजरंगपारा पानी टंकी व गांधीनगर के नहर किनारे पालिका काल में विकसित बाल उद्यान में अब बच्चों के खेलने की कोई भी सामग्री नहीं कर गई है। चरोदा रेलवे कालोनी के विभिन्न वार्डो ं में लगाये गए झूले व फिसलपट्टी को भी कबाड़ बनने के बाद असामाजिक तत्व उठाकर ले गए हैं।

चारो तरफ दिख रहा गाजर घास

निगम द्वारा विकसित किए गए बाल उद्यानों में खेल सामग्री टूट जाने के बाद बच्चों का आना जाना बंद हो गया। इसके चलते परिसर के चारो तरफ गाजर घास और अन्य खरपतवार उग आए हैं। कुछ उद्यानों में एकाध झूले बचे होनेे से बच्चों खेलते जाते हैं। परिसर में साफ सफाई नहीं होने तथा गाजर घास का फैलाव रहने से सांप बिच्छू जैसे जहरीले जीवों की संभावना से घटना दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।

मरम्मत के लिए कोई बजट नहीं

बाल उद्यानों में लगाये गए सामग्री व उपकरण में होने वाले टूटफूट की मरम्मत के लिए निगम के द्वारा बजट का कोई प्रावधान नहीं रखा जाता। नतीजतन एक बार लाखों रुपए की सामग्री लगने के बाद रखरखाव नहीं होने से उसका कबाड़ में तब्दील होना तय हो जाती है। खेल सामग्री के अनुपयोगी हो जाने से बाद धीरे-धीरे असामाजिक तत्वों के द्वारा उसे ले जाकर कबाडिय़ों को कौड़ी के दाम पर बेच दिया जाता है।

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