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चिंता का सबब दहशत में घाटी के लोग People of the valley in panic due to worry

धर्मशाला. कांगड़ा घाटी (Kangri Valley) के दरकते पहाड़ हर साल गहरे जख्म दे रहे हैं. धौलाधार रेंज (Dhauladhar Range) में लगातार हो रहे भू-स्खलन (Landslides) से कांगड़ा घाटी में हर साल दर्जनों लोग वेघर हो रहे हैं. घर-वार जिंदगियां लीलने के अलावा सैकड़ों लोग अपने रिहायसी इलाकों की भूमि भी गवां चुके हैं. भले ही हादसे के बाद इन त्रासदियों को भुला दिया जाता हो, मगर हर साल हो रहे भूस्खलन को ऐसे ही हल्के में लिया जाता रहा तो आने वाले समय में परिणाम गंभीर हो सकते हैं.

धौलाधार रेंज में हर साल पहाड़ दरकने से लोग प्रभावित होते हैं. धर्मशाला के चोला, गमरू, टिलू, टीहरा लाईन, कैंट, नड्डी सहित आसपास के क्षेत्रों में पिछले कुछ सालों से लगातार भू स्खलन होने से दर्जनों ही परिवार वेघर हो चुके हैं. इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अपना मूल स्थान छोड़ कर दूसरे स्थान पर शिफ्ट होना पड़ा है. कोतवाली-मकलोडगंज रोड पर भी कई स्थानों पर भू-स्खलन होता रहता है. दलाईलामा टेंपल के पास पिछले साल हुए भू-स्खलन का मलवा काला पुल की सड़क तक पहुंच गया था. जिससे क्षेत्र के लोगों को बुरी तरह से नुकसान हुआ था. इसके साथ सटे तोतारानी के निचले क्षेत्र यानि घेरा और कैंट नाला, खड़ी वेही, बलडी, रावा के आसपास के क्षेत्र में भी लगातार भूस्खलन की हलचल से लोगों में अपने मूल स्थान से विस्थापित होने का डर बना हुआ है. इन क्षेत्रों में कई भवन लैंड स्लाईडिंग के कारण ढह चुके हैं.

पिछले दिनों शाहपुर के धारकंडी में बोह घाटी हादसे ने सबको झकझोर कर रख दिया है. इस हादसे में दस लोगों के मलवे में दब जाने के बाद भी सबक नहीं लिया तो ये लापरवाही ही होगी. इसके अलावा धारकंडी के लाहड़ी, खरीड़ी सहित कई स्थानों पर भू-स्खलन के मामले हर साल सामने आते हैं. ऐसे ही हाल ज्वाली क्षेत्र के तहत आने वाली 32 मील-त्रिलोकपुर के निकट बाड़ा और सोलदा के आसपास के गांवों के हैं. वहां पर भी हर साल होने वाला भू-स्खलन बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है.

भू विज्ञानियों ने चेताया

भू वैज्ञानियों का कहना है कि पहाड़ के दरकने की तस्वीरें और हालात को पहले भी सरकार व प्रशासन से साझा किया जा चुका है. हर साल होने वाले भू-स्खलन के मामले किसी बड़े खतरे का इशारा करते हैं. इससे सबक लेते हुए भूमि कटाव को रोकने और चैनलाईज करने की योजना पर काम करना होगा, तभी इससे बचा जा सकता है. अन्यथा इतिहास ने अगर साल 1905 की घटना की पुनरावृति की तो तस्वीर तत्कालीन घटना से भी ज्यादा भयावह हो सकती है

 

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