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आल इंडिया मेडिकल एडमिशन(NEET) में पिछड़ो का 27 प्रतिशत कोटा हुवा शून्य….

सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच ने 16 नवम्बर 1992 को मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का आदेश पारित कर समाज के सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से कमजोर तबकों को 27 प्रतिशत प्रतिनिधित्व का संवैधानिक अधिकार बहाल कर दिया था।

भारतीय संविधान के आर्टिकिल 340,15(4),16(4) आदि के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह निर्णय देना पड़ा था जिसके बाद भारत सरकार ने 08 सितम्बर 1993 को इसकी अधिसूचना जारी की थी।भारत में ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत है जिसमें 43 प्रतिशत  हिन्दू व 09 प्रतिशत अन्य धर्म के लोगो को ओबीसी श्रेणी में रखा गया है।

संविधान व सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ठोंक-बजाकर देश के पिछड़ों को 27 प्रतिनिधित्व दिया है जिसे शनैः-शनैः शिथिल,कमजोर,निष्प्रभावी व निष्फल बनाया जा रहा है।

अभी जो NEET (नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट) आल इंडिया मेडिकल इंट्रेंस टेस्ट होने वाला है उसमें क्या पीजी,क्या यूजी,सबमें पिछड़े वर्गों का कोटा खत्म कर दिया गया है।

मेडिकल इंट्रेंस टेस्ट में अब एससी-एसटी के लिए 22.5 प्रतिशत कोटा तो रहेगा ओबीसी(अन्य पिछड़ा वर्ग) संवर्ग का कोटा 27 प्रतिशत नही रहेगा।ओबीसी को उनका आरक्षित कोटान देने से 11027 सीटों का नुकसान हो रहा है क्योंकि कुल 40842 सीटों में एससी(अनुसूचित जाति) को 6085 तथा एसटी(अनुसूचित जनजाति) को 2977 सीटें तो मिल रही हैं लेकिन ओबीसी को अनरिजर्व अनारक्षित श्रेणी में रख कुल शेष बची 31780 सीटों को अनारक्षित कर दिया गया है।

नीट (मेडिकल इंट्रेंस) परीक्षा में भारतीय संविधान के आर्टिकल 340,15(4),16(4) को फालो न करने की परीक्षा एजेंसी व शासन की कार्यवाही अत्यंत दुःखद व सोचनीय है।

नीट के इस निर्णय से समाज का लगभग 52 से 60 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग अपने संवैधानिक अधिकारों से जबरिया महरूम किया जा रहा है जिसके लिए पिछड़े बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा पोलिटिकल लीडर्स को आवाज उठानी चाहिए अन्यथा यह ओबीसी समुदाय का बहुत बड़ा वर्गीय अहित होगा।

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