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जानिए कौन हैं नासा की वैंडी वर्मा और क्यों चर्चा में हैं ये Know who is NASA’s Vandy Verma and why she is in discussion

मंगल ग्रह (Mars) पर नासा (NASA) के पर्सिवियरेंस रोवर ने मंगल क सतह पर और उसके नीचे सूक्ष्म जीवन की तलाश शुरू कर दी है. नासा की जेट प्रपल्शनल लैबोरेटरी में भारतीय मूल की वैंडी वर्मा (Vandi Verma) चीफ इंजीनियर रोबोटिक ऑपरेशन्स हैं. उन्होंने जब पर्सिवियरेंस का संचालन किया तो वे खुश होकर कहा कि जजीरो शानदार है. पिछले साल जुलाई के अंत में प्रक्षेपित करने के बाद पर्सिवियरेंस रोवर इस साल फरवरी को मंगल के जजीरो क्रेटर पर उतरा है. वैंडी नासा के पिछले रोवर भी चला चुकी हैं.

 

क्या करेगा पर्सिवियरेंस
पर्सिवियरेंस रोवर फिलहाल वह जजीरो क्रेटर पर ही पर आपनी खोजबीन का काम कर रहा है. नासा के वैज्ञानिकों ने इस रोवर को खास तौर पर मंगल ग्रह की सतह और उसके नीचे पुरातन सूक्ष्मजीवन के संकेतों को खोजने के लिए उतारा है. इसके अलावा पर्सिवियरेंस मंगल पर और भी कई तरह के प्रयोग करेगा जिसमें मॉक्सी प्रयोग वह कर चुका है. इसमें उसने मंगल ग्रह की कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर वहीं पर ऑक्सीजन बनाई थीकौन हैं वांदी वर्मा
वर्मा भारत में पंजाब के हलवाड़ा में पैदा हुई हुईं वहीं पली बढ़ी हैं. उनके पिता भारतीय वायुसेना में पायलट थे. वैंडी ने अमेरिका के कारनेगी मिलोन यूनिवर्सिटी से रोबोटिक्स में पीएचडी करने के बाद वे साल 2008 से ही मंगल पर रोवर चला रही हैं. उन्होंने पर्सिवियरेंस से पहले स्पिरिट, अपॉर्च्यूनिटी और क्योरिसिटी रोवर भी चलाए हैं.

अभी क्यों चर्चा में हैं वांदी
वैंडी  इससे पहले भी कई बार चर्चा में आ चुकी हैं. वे पर्सिवियरेंस रोवर के मंगल पर पहुंचने पर भी सुर्खियों में आईं थीं. लेकिन अभी तक पर्सिवियरेंस ने मंगल ग्रह पर अपना प्रमुख काम शुरू नहीं किया था. अभी तक नासा पर्सिवियरेंस के उपकरणों की सलामती के साथ उसके साथ इंजेन्युटी हेलीकॉप्टर की उड़ानों के साथ लगा था और टीम पर्सिवियरेंस को मंगल की सतह और उसके नीचे सूक्ष्मजीवन के तलाश वाला काम शुरू करने की तैयारी में थी. अब जब यह काम शुरू हो गया तो एक बार फिर वैंडी सुर्खियों में हैं.

कहां काम करेंगे पर्सिवियरेंस के साथ वांदी
इस तरह से जरीरो क्रेटर वांदी का अब कार्यस्थल हो चुका है जो अरबों साल पहले एक तालाब हुआ करता था जब मंगल आज की तुलना में बहुत गीला था. इस क्रेटर में पर्सिवियरेंस का ठिकाना क्रेटर के किनारे पर स्थित नदी का डेल्टा होगा. इस यात्रा के दौरान रोवर 15 किलोमीटर के रास्ते में से नमूने जमा करेगा और उन्हें गहन विश्लेषण के लिए पृथ्वी पर लाया जाएगा.

ऐसे चलेगा रोवर
दरअसल पृथ्वी और मंगल ग्रह पर रेडियो संकतों के आदान प्रदान में समय लगता है. रोवर किसी जॉयस्टिक के जरिए नहीं चलाया जा सकता है जैसे कि पृथ्वी पर रोबोटिक कारों या उपकरणों के साथ होता है. इंजीनियरों को पहले दिए जाने वाले निर्देशों पर निर्भर होना होगा. वे पहले से ही  सैटेलाइट से क्रेटर की ली गई तस्वीरों के आधार पर बने थ्रीडी ग्लास का उपयोग कर मंगल की सतह पर रोवर के आसपास की जगह का अंदाजा लगाएंगे. एक बार रास्ता तय होने पर रोवर अगले दिन उनके निर्देशों का पालन करेगा.

पर्सिवियरेंस रोवर के पास नेविगेशन के लिए खुद का कम्प्यूटर है. उसका मुख्य कम्प्यूटर खुद को दूसरे कार्यों में व्यस्त रखेगा और रोवर को स्वस्थ और सक्रिय रखेगा. वर्मा ने कहा, “यह रोवर चालक के लिए स्वर्ग की तरह है. जब आप थ्रीडी ग्लास लगाएंगे तो बहुत सारे उतार चढ़ाव देखेंगे कुछ दिनों तक को मैं केवल तस्वीरों की ही देखती रही.”रोवर पहले भी खुद थोड़ी यात्रा कर चुका है. और इस यात्रा के दौरान भी वह कभी कभी खुद ही बिना किसी निर्देश के आगे बढ़ेगा इस दौरान वह ऑटोनैव नाम के शक्तिशाली स्वचलित नेवीगेशन सिस्टम का उपयोग करेगा.

 

 

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