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*गाँवो में घर निर्माण की पारम्परिक व पुरातन व्यवस्था आज भी जीवंत व बरकरार*

*(आधुनिकता के दौर में सहसपुर व कोदवा परिक्षेत्र में पत्थर व मिट्टी के गारे से बन रहा आशियाना)*

बेमेतरा:- ज़िले के सहसपुर एवं कोदवा परिक्षेत्र जैसे सरीखे इलाकों में आज भी घर निर्माण की पुरातन व परंपरागत वास्तुकला जीवंत है। जिसमे पथरीला एवं खदानी क्षेत्र के आस पास के ग्रामीणों द्वारा पत्थरों एवं मिट्टी के गारे को जोड़कर पर्यावरण हितैषी बहुमूल्य घरों का निर्माण निरन्तर जारी है।जिससे निर्माण वास्तुकला का पुरातन एवं पारम्परिक व्यवस्था का परिचय हो जाता है।हालांकि वर्तमान में पत्थर एवं मिट्टी के उपयोग से बने घर ज़्यादातर सहसपुर(देवकर), बेन्दरचुवा(परपोड़ी) एवं कोदवा(देवरबीजा) से जुड़े आसपास के गाँवो में दिखाई पड़ता है। जिसकी झलक हमे क्षेत्र की इतिहास से रूबरू कराती हैं। गौरतलब हो कि ज़िले के उक्त इलाकों में पूर्व में भी पत्थरों के घरों के साथ कई कलाकृतियाँ आज भी विद्यमान है। जिनमे पत्थर से बने कई प्राचीन मंदिर भी काफी विख्यात है। जबकि विडम्बना कहा जाए कि इस प्राचीन एवं परम्परागत पुरातन कलाकारों की विशेष कलाकृतियों को संरक्षित व सहेजने में पुरातत्व, धार्मिक एवं पर्यटन विभाग फ्लॉप है। क्योंकि ज़िले में प्राचीन मंदिरों में सहसपुर, देवरबीजा, राजा मोहगांव, राजा परपोड़ी, देउरगाँव, सरदा, सहित कई इलाकों में विद्यमान है जिसपर विभाग एवं प्रशासन की सक्रियता व जिम्मेदारी नकाफी है। जिससे ऐसे ऐतिहासिक धरोहर खंडहरनुमा बनकर ध्वस्त हो रहे है।जिससे सहसपुर एवं कोदवा परिक्षेत्र में बन रहे निर्माण शैली आज के आधुनिकीकण के दौर में अपनी छाप व पहचान बना रहा है।बताया जाता है कि पत्थर एवं मिट्टी के गारे से बने घर काफी सस्ते, किफायती व मज़बूत होता है जो सदियों तक सुरक्षित रहते है। वर्तमान में सहसपुर, बेंदरचुवा कोदवा बेल्ट के पचासों गाँवो में इस निर्माण शैली की झलक कुछ घरों व इलाको में स्पष्ट देखी जा सकती

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