अगर आप भी हुए हैं ब्लैक फंगस के शिकार तो उसकी पीछे है ये तो वजह? जानें क्या

कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के बीच हर कोई अपनों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की और ऐसे में होम आइसोलेशन और अस्पतालों में कुछ लापरवाही बरती गई. इसलिए आज जिस ऑक्सीजन की वजह से कोरोना का इलाज हो रहा था, जिस ऑक्सीजन ने लोगों की जान बचाई उसी ऑक्सीजन में कमी की वजह से लोगों को ब्लैक फंगस यानी म्यूकर माइकोसिस जैसी बीमारी हो रही है. ऐसी मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है, जिन्हें कोरोना ने गंभीरता से प्रभावित किया. ये लोग करोना से तो ठीक हो गए, लेकिन ब्लैक फंगस का शिकार बन गए.
इसके पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला यह कि दिल्ली समेत देश के कई शहरों में कुछ दिन पहले ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी पड़ गई थी. खुद सरकार ने कह दिया था कि इंडस्ट्रियल यूज की ऑक्सीजन को भी अब अस्पतालों में शिफ्ट किया जाए. होम आइसोलेशन में ऑक्सीजन सिलेंडर की भी थी, यही वजह थी कि बहुत से लोगों ने इंडस्ट्रियल यूज ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रयोग अपने घरों में किया, जिसमें 100% शुद्ध ऑक्सीजन नहीं होती. बल्कि कुछ सरल तेल का भी उपयोग किया गया होता है, जिसकी वजह से एक व्यक्ति कोरोना से तो बच जाएगा लेकिन वह फंगल इनफक्शन का शिकार बन सकता है.
दूसरा बड़ा कारण है ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जिनका उपयोग के लिए साफ-साफ गाइडलाइन है कि आप उसमें सिर्फ डिस्टिल्ड वाटर यानी पूरी तरह से स्वच्छ जल का प्रयोग करें, लेकिन जब पूरा परिवार ही संक्रमित हो तो डिस्टिल्ड वाटर की बोतल कहां से आए. ऐसे में बहुत से लोगों ने नल के पानी का इस्तेमाल किया जिस पानी में कुछ बैक्टीरिया और फंगस होने की संभावना थी और जिसके बाद वह ब्लैक फंगस के शिकार हो गए.
एम्स के प्रोफेसर पवन तिवारी ने बताया कि म्यूकर माइकोसिस ऐसा फंगस है जो लगभग हर जगह होता है. जहां नमी होती और जहां सामान या फल व सब्जी सड़ रही होती है. यह फंगस हमारी सांस की नली के साथ हमारे शरीर के अंदर जाता है. हमारे शरीर के अंदर यह फंगस आसानी से साफ हो जाती है लेकिन जो कोरोना मरीज अस्पताल में भर्ती हैं, उनके साथ दो-तीन रिस्क फैक्टर होते हैं. एक तो सिवियर कोरोना मरीज को ऑक्सीजन लगा होगा और उन्हें एस्टेरोइड व दूसरे एंटी बॉडी दवाइयां मिल दी जा रही होताी है. शायद उनका ब्लड शुगर भी गड़बड़ होता है और ऐसे में उन्हें एस्टेरोइड मिलने के बाद भी शुगर कंट्रोल नहीं हो रहा होता है तो कोरोना से ठीक होने के बाद उन्हें म्यूकर माइकोसिस हो सकता है. इतना ही नहीं अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी कुछ मरीजों को एस्टेरोइड दी जाती है.
एम्स के प्रोफेसर पवन तिवारी ने कहा कि मरीजों को ऑक्सीजन जो पानी दिया जाता है वह पानी गंदा हो तो भी कोरोना मरीजों को म्यूकर माइकोसिस हो सकता है. उन्होंने कहा कि इसमें मरीजों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि शुगर कंट्रोल में रखें, ऑक्सीजन की जरूरत नहीं हो तो मत लें, जब तक जरूरत न हो तो एस्टेरोइड न लें, अस्पताल में भर्ती होना पड़े तो ऑक्सीजन में प्यूरिफाई पानी लें और नल के पानी का इस्तेमाल न करें.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव डॉक्टर जेयश लेले ने बताया कि ब्लैक फंगस एक प्रकार का फंगल इंफेक्शन है. उन्होंने कहा कि आज जो इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को अस्पतालों में सप्लाई किया जा रहा है उसमें सावधानियां नहीं बरती जा रही हैं. इसके चलते यह इंफेक्शन बढ़ रहा है. इतना ही नहीं ऑक्सीजन सप्लाई के दौरान जो पानी का इस्तेमाल हो रहा है उसके ऊपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. सिलेंडर को सैनिटाइज नहीं किया जा रहा है. स्टोरोइड तो पहले से इस्तेमाल हो रहा है. होम आइसोलेशन में डिस्टिल्ड वाटर का उपयोग होना चाहिए लेकिन नल के पानी का इस्तेमाल हो रहा है और ये भी एक वजह है.