विप्र समाज द्वारा घरों में ही रहकर मनाया गया परसुराम जयंती Parasuram Jayanti was celebrated by the Vipra Samaj by staying in the houses

विप्र समाज द्वारा घरों में ही रहकर मनाया गया परसुराम जयंती
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अजय शर्मा जिला ब्यूरो व संभाग प्रमुख
जांजगीर विप्र(ब्राह्मण) समाज द्वारा आज अपने अपने घरों में ही रहकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अपने आराध्य भगवान श्री परसुराम जयंती मनाया गया,व भगवान परसुराम के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित किया गया कोरोना महामारी से सम्पूर्ण विश्व को स्वस्थ होने की कामना की इस अवसर पर जिलाध्यक्ष अजय शर्मा,मंजू शर्मा,सोमेश शुक्ला सन्तोष शर्मा,पवन चतुर्वेदी कस्तूरी तिवारी सुरेश पाठक आदि ने अपने घर मे ही पूजा कर द्वीप प्रज्ज्वलित किया इस अवसर पर जिलाध्यक्ष श्री अजय शर्मा ने बताया कि प्रतिवर्ष हिंदू पंचांग के मुताबिक वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है. भगवान परशुराम को विष्णु जी का अवतार माना जाता है. उन्हें जगत का पालनहार भी माना जाता है. ऐसे में आज परशुराम जयंती के मौके पर उन्होंने परसुराम जी के जीवन की कुछ अच्छी चीजों के बारे में बताया जिस लर उन्होंने कहा भगवान परशुराम ने हमेशा अपने मां-बाप का सम्मान किया. हमें भी उनके उनकी ही तरह अपने मां-बाप का सम्मान करना चाहिए वे पितृधर्म का पालन करने वाले थे जिसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने पिता ऋषि जमदग्नि के कहने मात्र पर अपनी माता का सर धड़ से अलग कर दिया था,ऐसा देख भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बेहद प्रसन्न हुए और भगवान परशुराम के आग्रह करने पर उनकी मां को पुन: जीवित कर दिया,अपने पुत्र की तीव्र बुद्धि देखकर ऋषिपिता ने परशुराम को दिक्दिगन्त तक ख्याति अर्जित करने और समस्त शास्त्र और शस्त्र का ज्ञाता होने का आशीर्वाद दिया. लेकिन इस कृत्य से भगवान परशुराम को मातृ हत्या का पाप लगा. इसलिए उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की जिसके बाद ही उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली. भगवान शिव ने परशुराम को मृत्युलोक के कल्याण के लिए परशु अस्त्र प्रदान किया था इसलिए वह बाद में वे परशुराम कहलाए. राम अवतार के दौरान भी परशुराम धनुष यज्ञ के बाद पहुंचे थे और वहां क्रोध से भर गए थे क्योंकि राम ने शिव धनुष तोड़ दिया था इस दौरान राम लक्ष्मण और परशुराम संवाद हो गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत सुंदर लिखा है यह वह समय था जब भगवान राम और परशुराम के रूप में विष्णु के 2 अवतार एक साथ हुए हैं भगवान शिव ने परशुराम को बता रखा था की आप भगवान विष्णु के अंशावतार है और उनके पूर्व अवतार भगवान राम से तुम्हारा आमना सामना होगा परशुराम ने मानवता के लिए जो किया है उसके चलते वे हमेशा पूज्य रहेंगे। सहस्रबाहू अपनी शक्ति के मद में चूर होकर अपनी प्रजा पर ही अत्याचार करने लगा था जब यह बात परशुराम तक पहुंची तो उन्होंने प्रजा को सहस्त्रबाहु ने अपनी सहस्र भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह को भी रोक लिया था। महेश्वर के पास नर्मदा की सहस्त्रधारा आज भी इस बात का प्रमाण है सहस्त्रबाहु और उसके जैसे कई दोस्त राजाओं के अत्याचारों से प्रजा को मुक्त कराने के लिए परशुराम विश्व भ्रमण पर भी निकले थे और उन्हें 21 बार इस धरती को दुष्ट राजाओं से मुक्त कराया उन्होंने कई राज्य जीते लेकिन वे किसी भी राज्य पर राज करने सिहासन पर नहीं बैठे बल्कि पराजित राजा के उत्तराधिकारी को राज्य सौंपा। बहुत कम लोगों की यह पता है कि सहस्रबाहु भगवान विष्णु के ही सुदर्शन चक्र का अवतार था। सहस्रबाह को कुछ ग्रंथों में चक्रवतार भी कहा गया है।