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*प्रशासन के आदेश के बावजूद नही मान रहे ग्रामीण अंचल के किसान,जागरूकता के अभाव में रोज जला रहे पराली*


*(गर्मी में किसानों की लापरवाही से धधक रहा खेत-खलिहान पर्यावरण के लिए होगा घातक)*

*बेमेतरा:-* ज़िला प्रशासन द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत फसलो के बाद किसानों द्वारा जलाये जाने पराली अथवा फसल अवशेष पर सख्त पाबन्दी व प्रतिबन्ध लगाई गयी है।जिसके उल्लंघन करते पाए जाने पर दण्डात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है।इसके बावजूद गर्मी के दिनों में किसान फ़सल के बचे अवशेष व ठूंठ को लगातार आग के हवाले कर प्रकृति की सेहत से खिलवाड़ के पर्यावरण व वातावरण को खासा नुकसान तो पहुंचा ही रहे है।इसके अलावा भीषण गर्मी के दौर में खेतो में बेतहाशा पराली जलाकर आगजनी एवं आग की घटना को बढ़ावा दे रहे है।जिस ज़िला प्रशासन का आदेश बस कागजो पर सिमटता नज़र आ रहा है।प्रशासन की कार्यवाही व जागरूकता के अभाव में समूचे ज़िलेभर में दर्जनों आगजनी की घटनाएं व खबरे भीषण गर्मी में हर रोज आ रही है।इसके बावजूद ज़िला प्रशासन इस सम्बंध में कोई एक्शन अथवा संज्ञान नही ले पा रही है।जबकि देखा जाए तो किसानों का यह पराली जलाना पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक माना जाता है।इसके धुएं से आसपास की आबोहवा पर काफी प्रभाव पड़ता है।वही इन दिनों महामारी कोरोना के संकटकाल मे कोरोना संक्रमितों के लिए प्रकृति प्रदत्त शुद्घ ऑक्सीजन के लिए काफी होड़ मची है।ऑक्सीजन युक्त सिलेंडर के अभाव में कई लोग जिंदगी और मौत कर बीच जूझ रहे है।जबकि किसान ऐसी परिदृश्य देखने के बावजूद भी रवैया सुधारने के लिए तत्पर नही है।जो कि चिंता का विषय है।परिणामस्वरूप आलम यह है कि ज़िले के चारो विकासखण्ड क्षेत्र में आगजनी की घटनाएं घटित होने लगी है जिसमे कई वजहें किसानों द्वारा पराली या फसल अवशेष जलाने को ही जिम्मेदार माना जा रहा है।जिस पर जिला प्रशासन की कार्य शैली और भी सवाल उठना लाज़िमी है।

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