कोरोना तांडव के बीच सर पर कफन बांधकर काम करने वाले पत्रकारों को फ्रंटलाइन वारियर्स का दर्जा क्यों नहीं?Why are journalists working on Corona Tandava wearing shroud on the head not the status of frontline warriors?

कोरोना तांडव के बीच सर पर कफन बांधकर काम करने वाले पत्रकारों को फ्रंटलाइन वारियर्स का दर्जा क्यों नहीं?
रोज समाचार कव्हरेज के दौरान संक्रमित होकर अपनी जान गवां रहे कई पत्रकार, जबकि अब तक कई पत्रकार गंवा चुके हैं जान
लोकतंत्र का चैथा स्तंभ कहने के साथ ही इसका दर्जा दिलाने के लिए करनी चाहिए पहल
सबका सँदेश कान्हा तिवारी जिला ब्यरो
जांजगीर-चांपा।हरि अग्रवाल- रोहित सरदाना का यूं ही चल जाना सबके लिए अपुरणीय क्षति है, पर देश के हर गांव, हर शहर और हर जिले में न जाने कितने रोहित सरदाना फ्रंट लाइन वारियर्स बनकर इस विषम परिस्थिति में भी पल पल की खबर आप तक पहुंचा रहे हैं। संक्रमण के बीच अपना फर्ज निभाते ये यही शहीद हो गए तो किसी को कोई सरोकार नहीं है। क्या ये फ्रंटलाइन वारियर्स नहीं है ? क्या काम के दौरान इनका संक्रमित होकर मरना निरर्थक है? फिर सरकार इन्हें फ्रंटलाइन वारियर्स मानकर इन्हें शहीद का दर्जा देने में हिचक क्यों रही है। ये सवाल उन तमाम पत्रकारों के मन में हैं, जो अपनी जान की बाजी लगाकर पल पल की खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं।
मोदी जी, प्रधानमंत्री का ताज पहनने के बाद वाकई आपने वो काम कर दिखाया, जो सदियों में नहीं हो सका था। आपने वाकई इतिहास रच दिया, जिसे सभी मानते है। लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तंभ यानी मीडिया आज भी उपेक्षित है। सिर्फ मुंह में कह देने मात्र से मीडिया चौथा स्तंभ नहीं हो जाता। यदि वाकई मीडिया चौथा स्तंभ है तो उसे भी अन्य स्तंभों की तरह सुविधा और संसाधन मुहैया कराया जाए। आज तो स्थिति इतनी भयावह है कि अपना फर्ज निभाते हुए कोई पत्रकार मर जाता है तो उसका परिवार दर दर की ठोकरे खाने मजबूर होता है। देश के ज्यादातर पत्रकार श्रमजीवी है, जो बिना सैलरी के काम करते हैं। ऊपर से किसी के खिलाफ खबर क्या छप जाती है पत्रकार पर ब्लैकमेलिंग सहित तरह तरह के आरोप लगते हैं। हालांकि वर्तमान परिवेश में मीडिया के क्षेत्र में भी गंदगी छायी हुई है। अयोग्य पत्रकारों की भरमार होते जा रही है। लेकिन इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है, क्योंकि सरकार ने मीडिया में प्रवेश करने वालों के लिए कोई मापदंड ही नहीं बनाया है। गोली चले या आंधी आये, चाहे हो भूकंप या सुनामी, कोरोना त्रासदी में भी पत्रकार अपनी जान की बाजी लगाकर कव्हरेज कर रहे हैं और पल पल की खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। अभी कोरोना संकट के बीच कई पत्रकार कोरोना संक्रमित होकर मौत के आगोश में सो चुके हैं, जबकि कईयों कतार में हैं। इनमें से एक रोहित सरदाना भी है। लेकिन दुर्भाग्य है, अपनी जान हथेली पर लेकर चलने वाले पत्रकार इस देश मे असुरक्षित व उपेक्षित है। यहां तक पत्रकारों को फ्रंटलाइन वारियर्स का भी दर्जा नहीं दिया गया, न ही मरने पर शहीद संबोधित किया जाता है। इसके लिए भी आपकों मंथन करने की जरूरत है मोदी जी।
कभी नहीं उठा मुद्दा
मीडिया के दम पर अपनी बात जनता तक पहुंचाने वाले नेताओं ने भी कभी लोकसभा या विधानसभा में पत्रकारों का मुद्दा नहीं उठाया। आज जिस असुरक्षित स्थिति में पत्रकार अपने फील्ड में काम करते हैं उसका अंदाजा शायद सरकार को नहीं है। छत्तीसगढ़ में सालों से पत्रकार सुरक्षा कानून का मुद्दा चल रहा है, लेकिन अब तक यह धरातल पर नहीं आया है। पत्रकारों का मुद्दा किसी प्रदेश विशेष का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। इसके लिए केंन्द्र सरकार को पहल करनी चाहिए।