*(हरेभरे पेड़ो को काटने से बाज नही आ रहे ग्रामीण,प्रकृति की सेहत से कर रहे खिलवाड़)*
*(अस्पतातों में ऑक्सीजन के मारामारी, तो गाँवो में जीवनवायु के श्रोत प्रकृति को ही पहुंचा रहे जबरदस्त नुकसान)
देवकर:- कोरोना महामारी और लॉकडाउन के भीषण संकट के दौर में नगर के आसपास ग्रामीण इलाकों में हरे भरे वृक्ष व उसकी शाखाओं काटने के मामले बढ़ते जा रहे है।लिहाजा वनविरोधी लोगों का यह बढ़ता घटनाक्रम अब पर्यावरण व प्रकृतिप्रेमियों को रास नही आ रहा है।लगातार पेड़ कटाई व परिवहन के दृश्य क्षेत्र में आम रहवासियों को सोचने पर विवश कर दिया है।
दरअसल देखा जाए तो प्रकृति द्वारा प्रदत्त हरेभरे पेड़-पौधों का मानव जीवन मे बड़ा ही अनमोल महत्व व योगदान होता है।क्योंकि ये पेड़ पौधे हमे मुफ्त में प्राणवायु ऑक्सीजन प्रदान करते है,जो हमारे जीवन मे अति आवश्यक है।चूंकि इन दिनों कोरोना महामारी के चलते मरीजो को अस्पतालों में सांस के लिए प्राणवायु ऑक्सीजन की काफी जरूरत व किल्लत हो रही है।जिसकी कीमत अस्पतालों में लाखों रुपये तक जा रही है।रोजाना जिलेभर में समय पर मरीजों को ऑक्सीजनयुक्त सिलेंडर एवं वेंटिलेटर नही मिलने से असमय मृत्यु भी हो रही है।वही कई जिंदगियां मौत व जिंदगी के बीच पर्याप्त ऑक्सीजन को लेकर जद्दोजहद कर रहे है।
वही इसी भीषण महामारी के दौर में दूसरी ओर ग्रामीणजन जागरूकता के अभाव एवं जलाऊ ईंधन सहित दैनिक जरूरत की पूर्ति हेतु स्वार्थपूर्ण होकर हरेभरे पेड़ो व उसकी शाखाओ को बेदर्द होकर काट रहे है।जो हमे जीवन जीने के लिए मुफ्त में शुद्ध ऑक्सीजन की व्यवस्था करते है।ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार ऐसे पर्यावरण विरोधी गतिविधियों न शासन-प्रशासन की लगाम है न आम जनता का जागरूकता अभियान और न ही वर्तमान परिस्थितियों में ऑक्सीजन की महत्व की समझ।फलस्वरूप रोजाना दर्जनों की तादाद में लोग अपने गाँवो से लोहे की औजार व परिवहन सामग्री लेकर पेड़ को काटकर पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचा रहे है।जो कि शासन-प्रशासन के लिए दुर्भाग्य की बात है तो आम नागरिकों व शुभचिंतकों के लिए चिंता का विषय है।क्योंकि वे इस घटनाओं पर बन्दिश लगाने में नाकामयाब साबित है।