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आखिर, भारत में ऑक्सीजन का ये संकट क्यों खड़ा हुआ और क्यों देश में ऑक्सीजन का पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद ये अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रही है.After all, why did this oxygen crisis arise in India and why it is not able to reach hospitals despite adequate production of oxygen in the country.

नई दिल्ली: आखिर, भारत में ऑक्सीजन का ये संकट क्यों खड़ा हुआ और क्यों देश में ऑक्सीजन का पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद ये अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रही है. इससे पहले आपको बता दें कि भारत में कोरोना वायरस की सुपर सोनिक रफ्तार ने दुनिया के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. गुरुवार को भारत में इस वायरस से 3 लाख 14 हजार नए मरीज संक्रमित हुए हैं. एक दिन में दर्ज किए गए सबसे ज्यादा मामलों का वर्ल्ड रिकॉर्ड है. इसके अलावा 2 हजार 104 मरीजों ने कोरोना की वजह से पिछले 24 घंटों में तम तोड़ दिया है. आप कह सकते हैं कि भारत इस समय दुनिया में इस महामारी का Epicenter बन गया है.

इससे पहले इसी साल जनवरी महीने में अमेरिका में एक दिन में 2 लाख 97 हजार नए केस दर्ज किए गए थे लेकिन इस आंकड़े को छूने के बाद से ही अमेरिका में लगातार नए मामलों की संख्या कम होती चली गई और अब ये 70 हजार से भी कम हो गई है. जबकि भारत में मामले पिछले डेढ़ महीने में 10 हजार से सीधे 3 लाख के पार पहुंच गए हैं और इससे आप इस संकट की गंभीरता को समझ सकते हैं.

👉ऑक्सीजन संकट गहराया

मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही देश में ऑक्सीजन की कमी का संकट भी काफी गहरा गया है, जिसपर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने दो बड़ी बातें कहीं पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि अगर हाई कोर्ट के आदेशों की अवेहलना हुई और ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों की मौत हुई तो इसे अपराध माना जाएगा.

👉 हाई कोर्ट ने कहा “‘भगवान चला रहे देश’ “

दूसरी बात ये कि केंद्र सरकार को ऑक्सीजन की कमी पूरी करनी होगी, राज्य सरकारों को ऑक्सीजन की जमाखोरी करने वालों पर कार्रवाई करनी होगी और ऑक्सीजन सप्लाई के नए तरीके जल्द तलाशे जाएंगे. “”हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी भी की है कि हमें पता है कि ये देश इस समय भगवान चला रहे हैं.””

हालांकि सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार पर ऑक्सीजन की कमी को सनसनीखेज बनाने का आरोप लगाया और कहा कि दिल्ली सरकार ऐसा करके लोगों के बीच डर का माहौल बना रही है.

 

इस बीच दिल्ली के कुछ और प्राइवेट अस्पतालों ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि उनके यहां अब इतनी ही ऑक्सीजन बची है, जो कुछ और घंटे चल सकती है और अगर समय रहते ऑक्सीजन नहीं मिली तो कई मरीज दम तोड़ देंगे.

 

👉सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा है पूरा प्लान

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि वो बताए कि कोरोना पर उसका प्लान क्या है.

👉व्यवस्थाओं की पोल खोलता कोरोना की लहर

 

आज हम आपसे कहना चाहते हैं कि ये जो कोरोना है, ये व्यवस्था की पोल खोलता है. जब देश में पहली लहर आई थी तो इसने स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोली थी. हमारे देश में कोरोना की जांच के लिए ज्यादा लैब नहीं थीं, कोई दवाई नहीं थी. पीपीई किट नहीं बनाई जाती थीं और अस्पतालों में Beds की कमी थी. लेकिन जब हमारे देश ने इन सभी कमियों को दुरुस्त कर लिया तो ये वायरस दूसरी लहर के साथ सामने आया और इसने ऑक्सीजन की कमी का संकट खड़ा कर दिया है. यानी कोरोना वायरस परीक्षा भी लेता है और ये व्यवस्थाओं की भी पोल खोलता है.

👉ऑक्सीजन को कम आंकना सबसे बड़ी भूल होगी

एक स्टडी के मुताबिक कोई भी व्यक्ति बिना कुछ खाए 8 से 21 दिन तक जीवित रह सकता है. बिना पानी पिए 2 से 3 दिन तक जीवित रह सकता है. और बिना सोए या नींद लिए 11 दिनों तक जिंन्दा रह सकता है. लेकिन क्या आपको पता है कि ऑक्सीजन के बिना इंसान 3 मिनट से ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह सकता. 3 मिनट में उसके ब्रेन सेल्स खत्म होने लगते हैं और फिर वो व्यक्ति मर जाता है. लेकिन इसके बावजूद इंसानों ने कभी ऑक्सीजन का मूल्य नहीं समझा.

आज लोगों को ऑक्सीजन की कीमत लोगो को समझ आ रही है. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. पहले हमारे देश में ऑक्सीजन को मुफ्त का माल समझा जाता था. लेकिन अब इसके लिए लोगों को हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. वैसे तो हमें स्कूलों में ही ऑक्सीजन के महत्व का पाठ पढ़ाया जाता है. लेकिन तब हम इसे गंभीरता से नहीं लेते.

👉ऑक्सीजन को लेकर केंद्र की तैयारी क्या है

ऑक्सीजन की बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने दिल्ली समेत आठ राज्यों का ऑक्सीजन कोटा बढ़ा दिया है. इनमें दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश शामिल हैं. केंद्र सरकार ने देश में ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने पर काम शुरू कर दिया है. अलग-अलग राज्यों में ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए रेल मंत्रालय ने ऑक्सीजन एक्स्प्रेस सेवा भी शुरू की है, जिसके तहत ट्रेनों से ऑक्सीजन के टैंकर्स राज्यों में भेजे जा रहे हैं.

गुरुवार को लखनऊ से बोकारो के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस भेजी गई, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन को लोड करके लखनऊ लाया जाएगा. जिससे उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी का संकट थोड़ा कम होगा और मध्य प्रदेश में भी अब इस तरह की ट्रेनें भेजी जाएंगी.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि इस समय देश में प्रति दिन साढ़े 7 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है, जिसमें से 6 हजार 600 मीट्रिक टन राज्यों को दिए जा रहे हैं.

👉ऑक्सीजन की कमी नहीं, सप्लाई में दिक्कतें

यहां समझने वाली बात ये है कि देश में ऑक्सिजन की कमी नहीं है. ऑक्सीजन का उत्पादन खपत से ज्यादा ही हो रहा है. यानी परेशानी ऑक्सीजन की सप्लाई में आ रही है. इसलिए अब हम आपको बिल्कुल सरल भाषा में ये समझाएंगे कि आखिर भारत में ऑक्सिजन का ये संकट क्यों खड़ा हुआ?

इसे समझने के लिए सबसे पहले आपको ये जानना होगा कि हमारे देश में ऑक्सीजन का इस्तेमाल सिर्फ अस्पतालों में मरीजों की जान बचाने के लिए नहीं होता. बल्कि लोहे, स्टील और पेट्रोलियम जैसे तमाम औद्योगित क्षेत्रों में भी ऑक्सीजन इस्तेमाल होती है. बड़ी-बड़ी कंपनियां इसका उत्पादन करती हैं.

👉सबसे ज्यादा ऑक्सीजन उत्पादन महाराष्ट्र में होता है

2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑक्सीजन की उत्पादन क्षमता के मामले में जो पांच राज्य सबसे ऊपर हैं, उनमें पहले स्थान पर है महाराष्ट्र. महाराष्ट्र में प्रति दिन 991 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन होता है. फिर गुजरात का नंबर आता है. और उसके बाद इस सूची में झारखंड, ओडिशा और केरल जैसे राज्यों का नाम है. अकेले इन पांच राज्यों में ऑक्सीजन के कुल 17 बड़े प्लांट्स हैं. जबकि बाकी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल मिला कर 20 प्लांट्स ही हैं. देश की राजधानी दिल्ली में तो ऑक्सीजन का एक भी प्लांट नहीं है. यानी पूरा संकट यहीं से शुरू होता है.

वो ऐसे कि देश के ज्यादातर राज्य इन पांच राज्यों पर ऑक्सीजन के लिए निर्भर हैं. लेकिन समस्या ये है कि इन राज्यों में भी ऑक्सीजन की मांग बढ़ गई है. इससे ऑक्सीजन सप्लाई की पूरी प्रक्रिया बाधित हुई है. सरल शब्दों में कहें तो भारत में ऑक्सीजन तो है लेकिन उसकी सप्लाई का काम बहुत मुश्किल है.

👉कैसे होती है ऑक्सीजन की सप्लाई

 

ऑक्सीजन का उत्पादन होने के बाद इसे कैप्सूल के आकार के टैंकरों में भरकर अभी अस्पतालों में पहुंचाया जाता है. इस तरह के टैंकरों को Cryogenic Tankers कहते हैं. यानी जो बड़े-बड़े प्लांट्स होते हैं, वहां से ऑक्सीजन इन टैकरों में भरकर डिस्ट्रीब्यूटर तक भिजवाई जाती है. और इसके बाद डिस्ट्रीब्यूटर लेवल पर ऑक्सीजन को जंबो और डूरो सिलेंडर्स में भरा जाता है और फिर ये सिलेंडर्स मरीजों और अस्पतालों तक पहुंचते हैं.

अब चुनौती ये है कि भारत में Cryogenic Tankers की संख्या इतनी नहीं है कि ये 24 घंटे और सातों दिन चल सकें. इसलिए अभी इन टैंकरों के जरिए ऑक्सीजन प्लांट्स से मरीजों तक पहुंचाने में तीन से चार दिनों का समय ज्यादा लग रहा है. कुल मिला कर कहें तो एक ट्रक अगर आज किसी प्लांट से ऑक्सीजन लेकर चलता है तो वो ऑक्सीजन मरीज तक 28 से 30 अप्रैल तक पहुंचेगी. यानी जब तक ऑक्सीजन की सप्लाई होगी, अस्पतालों में ऑक्सीजन का भयानक संकट खड़ा हो गया होगा और इस समय यही हो रहा है.

इस काम में एक और चुनौती ये है कि जो छोटे सप्लायर्स हैं, उनके पास ऑक्सीजन देने के लिए ज्यादा Jumbo और Dura Cylinders नहीं हैं. यही वजह है कि ऑक्सीजन देने वाली इन छोटी-छोटी इकाइयों पर काफी दबाव आ गया है और यहां लाइनें लगी हुई हैं.

👉सरकार के सामने चुनौतियां बडी है

अब आप सोच रहे होंगे कि अगर ऑक्सीजन की समस्या इतनी ज्यादा है तो सरकार मौजूदा प्लांस का विस्तार क्यों नहीं कर रही और नए प्लांट्स क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं. तो इसका जवाब ये है कि ऐसा करना अचानक संभव नहीं है. अभी जो कंपनियां ऑक्सीजन का उत्पादन कर रही हैं, उनके लिए चुनौती यही है कि वो मौजूदा उत्पादन को और बढ़ा सकें. यानी रातों रात नए प्लांट्स लगाकर इस संकट को हल नहीं किया जा सकता.

अगर मौजूदा परिस्थितियों को समझें तो एक अनुमान के मुताबिक़ कोरोना से संक्रमित हर 100 में से 20 मरीज ऐसे होते हैं, जिनपर ये वायरस ज्यादा असर करता है. इन 20 में से 3 ऐसे होते हैं, जिनकी हालत बहुत ज्यादा गंभीर होती है. यानी इन मरीजों को ऑक्सीजन की सख्त जरूरत होती है. इसके अलावा एक और रिपोर्ट में ये बताया गया है कि इस समय कुल मरीजों में से 10 से 15 प्रतिशत को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. यानी ऑक्सीजन की मांग काफी बढ़ गई है और इससे इसकी सप्लाई की प्रक्रिया पर असर पड़ा है.

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