छत्तीसगढ़

ग्रीन हंट नहीं, अब हंटर चाहिए.

ग्रीन हंट नहीं, अब हंटर चाहिए..

▪️असम में भूपेश वोट मांग रहे
छग में नक्सली बम फूट रहे

▪️कांग्रेस क्या अब भी नक्सलियों
को क्रांतिकारी कहेगी

रायपुर। दस दिनों के अंदर नक्सलियों ने दूसरी बार मौत का तांडव करके उन बातों को झूठा साबित कर दिया कि माओवादी कमजोर हो गए हैं। बीजापुर मे तर्रेम इलाके में नक्सलियों ने चारों तरफ से जवानों को घेर कर हमला किया। जिसमें 22 जवान शहीद हो गए और एक जवान लापता है। हैरानी वाली बात है कि मुख्य मंत्री असम चुनाव में वोट मांगते फिर रहे हैं और उनके राज्य में खून की इबारतें लिखी जा रही है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कल तक दावा करते थे कि, माओवादी अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। 2020 मार्च में नक्सलियों ने 22 जवानों की हत्या किये थे। 2021 में दस दिनों के अंदर 27 जवान शहीद हो गए। कल की वारदात में संख्या बढ़ सकती है। सरकार अब यह कहना बंद कर दे कि, जवानों की शहादत बेकार नहीं जायेगी। पिछले बीस साल में 12 हजार से अधिक निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं।

हैरानी वाली बात है कि, कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के उस मुख्य घोंषणा को दरकिनार कर दी है, जो राज्य की सबसे ज्यादा जरूरत है। नक्सल नीति अभी तक नहीं बनाई। कांग्रेस के नेता राजबब्बर ने राजीव गांधी भवन में 2018 मे कहे थे, नक्सली क्रांतिकारी हैं। वो क्रांति के लिए निकले हैं। उन्हें कोई रोके नहीं। क्या इसी क्रांति की बात राजबब्बर ने की थी?

नक्सलियों ने 17 मार्च 2021 को शांति वार्ता का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा था। नक्सलियों ने विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि, वे जनता की भलाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने बातचीत के लिए तीन शर्तें भी रखी थीं। इनमें सशस्त्र बलों को हटाने, माओवादी संगठनों पर लगे प्रतिबंध हटाने और जेल में बंद उनके नेताओं की बिना शर्त रिहाई शामिल थीं। सरकार ने अपनी ओर से निःशर्त समझौता वार्ता की बात कही। जाहिर सी बात है कि सरकार नहीं चाहती है कि, नक्सलवाद खत्म हो। सच तो यह है कि अब ग्रीन हंट नहीं,हंटर चाहिए।

पुलिस अफसरों को पता है कि बीजापुर मे तर्रेम क्षेत्र जहाँं सड़के नहीं है। सिर्फ पगडंडी है। इस इलाके की कमांड हिड़मा और सुजाता जैसी नक्सली लीडर के हाथ में है। हिड़मा जो कि झीरम कांड में भी था। मौत का दूसरा नाम हिड़मा और सुजाता है। फिर चूक कैसे हो गई इसकी जांच होनी चाहिए। बार बार ऐसा क्यों होता है?
लोन वर्राटू से कुछ होना जाना नहीं है। पुलिस और सरकार को यह नाटक बंद करके आदिवासियों को विश्वास में लेकर नक्सली लीडरों से बात करने की पहल करे। अन्यथा मार्च से लेकर जून तक हर साल ऐसी मौत की नई इबारत का सिलसिला जारी रहेगा ।

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