छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

प्रकृति का नया प्रयोग ,बिना खर्च 100 पेड़,हमे सीखने की जरूरत, New experiment of nature, 100 trees without spending, we need to learn

प्रकृति के इंजीनियरिंग व्यवस्था को हमे अपनाने की जरूरत
दुर्ग / प्रकृति की सीख ही असली सीख कही जाती है जहाँ किसी की काम को नुकसान पहुचाये ही अपना काम प्रकृति बखूबी करती है ।न ही विशेष जगह की चाहत है न ही कोई व्यवस्था की ,सुरक्षा भी प्रकृति के हाथ मे ,एक अलग खबर की  ओर ले जा रहे है जिससे हमें सिख मिल रही है । उतई के तांदुला नहर से पानी सिचाई हेतु बनाये गए  नहर के सीमेंटीकरण होने के बाद भी प्रकृति के कारण नहर की परत भाग में जिसमे पानी का बहाव बहाव नही होता है या कहे जिस भाग का कोई उपयोग नही होता है उस भाग में पेड़ ऐसे उग गए है जिससे     पर्यावरण को सहेजने में काफी मदद मिल सकती है ।क्योंकि इस जगह में किसी प्रकार की चराई का डर नही है क्योंकि जानवर वहा जा भी नही पाएंगे। राज्य भर में करोड़ो वर्गमीटर मिल सकेगी जगह – पर्यावरण को सहेजने का सबसे अच्छा व सबसे सस्ता रास्ता इससे अच्छा नही हो सकता क्योंकि इसमें न ही घेरा करने की जरूरत है न ही पानी डालने की ,बस पौधे को रोपने से ही पेड़ का निर्माण हो सकता है ।प्रदेश में अगर देखा जाए तो इस तरह की जगह का आंकलन में करोड़ो वर्ग मीटर जगह मिल सकेगी ,जिसमे अरबो पेड़ो को जीवन दान मिल सकेगी ।
अगर सरकार अपनाए ,यह प्राकृतिक पद्धति तो फायदे में होगा पर्यावरण -बेहद कम खर्च में  हरियर छत्तीसगढ़ की कल्पना को साकार किया जा सकता है क्योंकि इसके लिए न ही जमीन की जरूरत पड़ेगी न ही सुरक्षा की क्योकि इसके पास जानवर भी नही पहुच पाते। यह नई खोज भी प्रकृति द्वारा अपनाया गया है जिसको अगर सरकार द्वारा निरीक्षण कर अपनाया जाता है तो निश्चित रूप से पर्यावरण को एक नई आक्सीजन मिलेगी । पानी के बहाव में कोई रुकावट भी नही होगी –   नहर के सीमेंटीकरण का मुख्य उद्देश्य पानी के बहाव को तेज करना व सीपेज की समस्या से छुटकारा मिलना था जो इस पौधारोपण में किसी प्रकार से कोई व्यवधान नही हो सकता है यह एक अच्छी प्रकार की पौधरोपण हो सकेगी ।इसके लिए एक निश्चित दूरी जैसे 40 फिट जरूरी हो सकता है प्रकृति द्वारा अपनाया गया है पद्धति तो निश्चित ही अच्छा होगा – पर्यावरणविद पद्मश्री डॉक्टर राधेश्याम बारले का कहना है – यह पद्धति काफी अच्छा प्रचलित प्रतीत हो रहा है क्योंकि उस जगह में हजारों की संख्या में जानवर चराई करते नजर आते ही फिर भी इतने पेड़ वहां पर बिना सुरक्षा के जीवित है ये अच्छी बात है ,पर्यावरणविद रोमशंकर यादव,व सुरेंद्र शर्मा ने भी इस प्रक्रिया को सरकार द्वारा प्रयोग में लाने की निवेदन किया है क्योंकि  इससे पैसा के साथ उस जगह का बेहतर उपयोग हो सकेगा ।

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