लेकिन इस घटना से पत्नी को ऐसा सदमा लगा कि गर्भ में खराबी के कारण बच्चा भी नहीं आ पाया। दो साल से वह विधवा की जिंदगी जी रही थी। बहू का ये दर्द सास को देखा नहीं गया और उन्होंने बहू को बेटी के रूप में विदा कर नई जिंदगी बसाने की सोची। इस दौरान कुछ दिन पहले कोमल राम साहू मूल निवासी साल्हे (दल्लीराजहरा) हाल निवास झिपाटोला कांकेर का रिश्ता आया। ज्ञानेश्वरी के मायके वाले भी इस शादी के लिए राजी हो गए। बस क्या था, शुक्रवार को शाम 5. 30 बजे ज्ञानेश्वरी के ससुराल में ही शादी हुई और नए ससुराल चली गई।
कोमल का तलाक हो गया है, 22 साल का एक बेटा व 19 साल की बेटी है :45 साल की उम्र में दुबारा दूल्हा बनने वाले कोमल राम की पहली पत्नी कुछ कारणों से तीन साल पहले छोड़कर दूसरे के साथ चली गई। तीन साल से दूल्हा अपने बच्चों का ख्याल रखने व घर संभालने वाली दुल्हन की तलाश कर रहा था। तभी एक रिश्तेदार के जरिए उसे हीरापुर की ज्ञानेश्वरी के बारे में पता चला। दूल्हे की पहली पत्नी की ओर से एक 22 साल का बेटा विजय व 19 साल की बेटी विद्या है। बेटा इंजीनियरिंग व बेटी बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है।
दूल्हे ने कहा- मैं रोज झिपाटोला से 20 किमी दूर कांकेर में एफसीआई गोदाम में काम करने जाता हूं। घर में बच्चों के लिए एक मां व जिंदगी के गुजारे के लिए एक पत्नी की जरूरत थी। इसलिए मैंने शादी करने का फैसला किया। मेरी सोच थी कि किसी विधवा की ही जिंदगी बसाऊं और वह मुझे मिल गई।
बहु नहीं मैंने हमेशा बेटी माना, हर सास को ऐसी सोच रखनी चाहिए :बहु की दूसरी शादी कराने वाली सास चंपा बाई पति स्व देवलाल साहू ने कहा मैंने बहु को हमेशा बेटी माना। बेटे के गुजरने के बाद उसे प्यार दुलार देने में कोई कमी नहीं की। हर सास को अपनी बहु को बेटी ही मानना चाहिए। विधवा की जिंदगी क्या होती है, मैं 15 साल से इसका दर्द झेल रही हूं। बहु की कोई संतान भी नहीं थी। जिसे देख वह अकेली जी पाती। उसके सामने पहाड़ जैसा जीवन है। उसके दर्द कम करने के लिए ही मैंने बहु को बेटी की तरह विदा किया।
मेरी बेटी की शादी एक मिसाल बनेगी :इस शादी पर ज्ञानेश्वरी के पिता लोकेश्वर व मां अनूपा बाई ने कहा- हमारी बेटी की यह दूसरी शादी समाज में एक मिसाल बनेगी। जब हमें समधन ने इस तरह की शादी का जिक्र किया तो हम राजी हो गए। दोनों परिवार मिलकर बेटी का नया घर बसा रहे हैं। विधवा विवाह की परंपरा हर समाज को अपनानी चाहिए। ताकि हर बेटी बहू एक नई जिंदगी की शुरुआत कर सके। बेटी की सास ने एक मां का फर्ज निभाया। हमारी बेटी को अपनी बेटी बनाकर शादी कराई।
बेटी बोली- पिता की सोच को सलाम है :दूल्हे की बेटी विद्या भी इस शादी में शामिल हुई। बेटी ने कहा कि मेरे पिता की सोच को मैं सलाम करती हूं। जिंदगी की गाड़ी दो पहिए बगैर नहीं चल सकती। उससे बड़ी बात किसी महिला की उजड़ी मांग को फिर से भरना, एक नेक काम है। पिता के इस कदम से सभी खुश हैं। हम दोनों भाई-बहन भी इससे सहमत हैं। हमें नई मां मिल गई
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