गुणों को देखे -ज्योतिष
*गुणों को देखे -ज्योतिष*
जब व्यक्ति अपने दोषों को देखने की प्रवृत्ति बना लेता है और जब उसे अपने अवगुण दिखाई देने लगते हैं, तो उसे अपने से बढ़कर कोई बुरा व्यक्ति दिखाई नहीं देता। आत्मनिरीक्षण से मनुष्य की स्थिति विपरित हो जाती है। आत्मनिरीक्षण से पहले वह अपने को गुणों का भण्डार और दूसरों को अवगुणों का आगार समझता है। आत्मनिरीक्षण के पश्चात् मनुष्य अपने को अवगुणों का आगार और दूसरों को गुणों का भण्डार समझने लगता है। किसी ने क्या सुन्दर कहा है―
*अपनी पड़ताल जो करता है, दिन पाकर वो बन जाता है।*
*है ठीक हिसाब सदा जिसका, नहीं अन्त समय पछताता है।।*
किसी संस्कृत के कवि ने कहा है―
*प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मन: ।*
*किं नु मे पशुभिस्तुल्यं किं नु सत्पुरुषैरिति ।।*
*भावार्थ―* मनुष्य को प्रतिदिन आत्मनिरीक्षण करते हुए देखना चाहिए कि मेरा जीवन पशुओं के तुल्य है अथवा श्रेष्ठ पुरुषों के तुल्य।
कुछ लोगों का केवल दोष देखने का स्वभाव होता है। उन्हें व्यक्ति के केवल दोषों से ही काम होता है, गुणों से कोई काम नहीं होता―
भ्रमरा: मधुमिच्छन्ति व्रणमिच्छन्ति मक्षिका: ।
सज्जना: गुणमिच्छन्ति दोषमिच्छन्ति पामरा: ।।
भावार्थ― भँवरे शहद की इच्छा करते हैं, मक्खियाँ घाव (गन्दगी) की इच्छा करती हैं। सज्जन गुणों की इच्छा करते हैं, नीच लोग दोषों की इच्छा करते हैं।