कोरोना काल में भी नहीं थमी पीडियाट्रिक एकेडमी की गतिविधि, The activity of the Pediatric Academy did not stop even during the Corona period
अच्छा कार्य करने वालों का हुआ सम्मान
दुर्ग / दुर्ग भिलाई एकेडमी आफ पीडियाट्रिशियन की अहम बैठक दुर्ग में संपन्न हुई। बैठक में बीते साल कोरोना काल के दौरान शिशुरोग के क्षेत्र में उत्तम कार्य करने वाले चिकित्सकों का सम्मान दुर्ग भिलाई एकेडमी ने किया। कार्यक्रम में इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा सम्मानित होने वाले चिकित्सकों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में पेडीकान छत्तीसगढ़ में भी दुर्ग भिलाई एकेडमी की ओर से भाग लेने वाले और यहाँ बेहतर प्रदर्शन करने वाले चिकित्सकों का सम्मान किया गया। एकेडमी की प्रेसीडेंट डॉ. संबिता पंडा, सचिव डॉ. सीमा जैन एवं साइंटिफिक कन्वीनर डॉ. माला चैधरी तथा वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अरविंद सावंत एवं डॉ. रेखा साकेतकर इस दौरान उपस्थित रहे। कोरोना काल के दौरान न केवल एकेडमी के डॉक्टर वर्चुअल रूप से सक्रिय रहे अपितु इनके परिवारजनों एवं बच्चों के लिए भी विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन एकेडमी द्वारा किया गया था, इसके विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया। उल्लेखनीय है कि कोरोना काल के दौरान बहुत से रिसर्च पेपर दुर्ग भिलाई एकेडमी के चिकित्सकों द्वारा तैयार किये गए जिनसे शिशु रोगों के निदान की दिशा में काम करने में बड़ी मदद मिलेगी। पंडित जवाहरलाल नेहरू रिसर्च सेंटर एवं हास्पिटल सेक्टर 9 की चिकित्सक डॉ. माला चैधरी ने नवजात शिशुओं की मृत्यु रोकने की दिशा मे सिक्वेंशियल आर्गन फेल्योर एसेसमेंट पर अपना पेपर प्रस्तुत किया। इसमें उन सूचकांकों पर स्टडी की थी जिनका आकलन कर भविष्य के कुछ घंटों के खतरों के संबंध में आगाह हुआ जा सकता है और सुरक्षात्मक उपाय किये जा सकते हैं। डॉ. चैधरी को इस पेपर के लिए इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक एसोसिएशन की ओर से गोल्ड मेडल दिया गया। जिला अस्पताल की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सीमा जैन ने नेफ्रोटिक सिंड्रोम पर अपना पेपर प्रस्तुत किया। डॉ. ओमेश खुराना को बेस्ट एकेडमीशियन तथा डॉ. गणवीर को बेस्ट कम्युनिटी सर्विस के लिए पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद सावंत एवं डॉ. रेखा साकेतकर ने अपने अनुभव साझा किये और शिशुरोग के संबंध में किये जा रहे नये रिसर्चों के लिए एकेडमी के सदस्यों की प्रशंसा की। कोरोना काल में चिकित्सकों के बच्चों के लिए वर्चुअल माध्यम से भाषण, निबंध, पेंटिंग, पोस्टर, म्यूजिक आदि प्रतियोगिता कराई गईं थीं। इन्हें भी पुरस्कृत किया गया ।