पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम में उनके जीवन एवं चरित्र पर एक व्याख्यानमाला आयोजित की गई।

भूपेंद्र साहू।
ब्यूरो चीफ बिलासपुर।
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लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उनका जन्म वर्ष 1865 में भारत में हुआ था और उन्हें प्यार से पंजाब केसरी कहा जाता था। कहा जाता है जब भी वो बोलते थे तो उनकी आवाज केसरी के जैसे गूंजती थी। केसरी की दहाड़ से जंगल के जानवर डर जाते हैं, ठीक उसी तरह लाला लाजपत राय की आवाज से अंग्रेज सरकार कांप उठती थी।
आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में श्रद्धांजलि दी गई। ऑनलाइन आयोजित हुए इस कार्यक्रम में उनके जीवन और चरित्र पर एक व्याख्यान आयोजित किया गया गया। जिसमे अधिकारियों एवं रेलकर्मियों ने उत्साहित होकर भाग लिया।
लाला लाजपत राय के जीवनवृत पर प्रकाश डालते हुए दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी साकेत रंजन ने कहा कि देश के लिए प्राण न्यौछावर कर युवा पीढ़ी और क्रांतिकारियों में नई शक्ति का संचार करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी और ‘पंजाब केसरी’ के नाम से मशहूर लाल, पाल, बाल की क्रांतिकारी तिकड़ी में से एक लाला लाजपतराय
माता-पिता से मिले संस्कारों के कारण बचपन से निर्भीक और साहसी लाजपत राय ने देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। ‘साइमन कमीशन’ के लाहौर पहुंचने पर लाला जी के नेतृत्व में उसका विरोध किया गया,
उन पर लाठियां बरसाईं गई, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गए। इसके बावजूद जनसभा को संबोधित करते हुए घोषणा की कि ‘‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेजी हुकूमत के राज में आखिरी कील साबित होगी।’’ तद्नंतर में ऐसा ही हुआ।
उनकी आर्थिक नीतियों की विवेचना करते हुए दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के पूर्व उपमुख्य सुरक्षा आयुक्त कुमार निशांत ने कहा कि आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान देने के साथ ही, लाला लाजपत राय ने देश को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए भी काफी प्रयास किया। उनका यह योगदान आज भी देश की अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को अदा कर रहा है।
लाला लाजपत राय ने 19 मई 1894 को लाहौर में पंजाब नेशनल बैंक की नींव रखी थी। आज के दौर में यह देश का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक है।
इस बैंक को एक स्वदेशी बैंक के तौर पर शुरू किया गया था और इसमें सिर्फ भारतीय जनता की पूंजी लगी थी। उस दौर में सिर्फ अंग्रेजों द्वारा संचालित बैंक ही होते थे और वे भारतीयों को बहुत अधिक ब्याज दर पर कर्ज देते थे। लालाजी ने स्वदेशी को स्वाबलंबन से जोड़कर देश की आर्थिक मजबूती के लिए दूरदर्शी प्रयास किया।
लाला लाजपत राय की राजनीतिक चिंतन की व्याख्या करते हुए उत्तर सीमांत रेलवे के उप महाप्रबंधक राजभाषा विक्रम सिंह ने कहा कि लाजपत राय को अहसास हुआ कि यदि देशवासियों पर अंग्रेजों के अत्याचार को कम करना है, तो अपनी लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाना होगा।
1914 में ब्रिटेन और फिर 1917 में अमेरिका गए। वह 1920 तक अमेरिका में ही युवाओं को शिक्षित और देशभक्ति से ओतप्रोत करने के लिए इन्होंने अपनी जेब से 40,000 रुपए देकर अपने मित्र के सहयोग से लाहौर में ही ‘दयानंद एंग्लो विद्यालय’ की स्थापना की। रहे और न्यूयॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। इस दौरान उन्होंने पहले विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की ओर से भारतीय सैनिकों के भाग लेने का भी विरोध किया।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य पब्लिसिटी इंस्पेक्टर संजय कुमार पांडेय ने बताया कि लाला लाजपत राय को लिखने और भाषण देने का काफी शौक था। स्कूली दिनों में ही उनकी मुलाकात आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती से हुई थी और उनके विचारों से वह काफी प्रभावित थे।