छत्तीसगढ़
ख़तरों के साये में मानवता सेवा खून देकर आदिवासी बच्ची की बचाई जान पुलिस जवान ड्यूटी को पूरी ज़िंदादिली से निभा रहे
ख़तरों के साये में मानवता सेवा
खून देकर आदिवासी बच्ची की बचाई जान
पुलिस जवान ड्यूटी को पूरी ज़िंदादिली से निभा रहे
नारायणपुर सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-
कभी कभी कुछ बातें ऐसी निकलकर सामने आती हैं, जिन्हें जानकर और पढ़कर अच्छा लगता है। कुछ लोगों के सेवाभाव को देखकर वास्तव में आश्चर्य होता है। छत्तीसगढ़ के अतिसंवेदनशील नारायणपुर में आपको ऐसी कई कहानियां मिलेंगी और आज हम जिस बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उसके बारे में जानकर आपको सिर्फ गर्व ही नहीं होगा बल्कि शायद आपको भी एक वर्दी वाले से प्रेरणा मिलेगी। हर जगह पुलिस जवान जिस में महिला पुलिसकर्मी भी शामिल हैं अपनी ड्यूटी को पूरी ज़िंदादिली से निभा रहे हैं। ख़तरों के साये में मानवता सेवा का भी काम कर रहे है ।
अभी हाल ही में खून देकर 3 साल की आदिवासी बच्ची की बचाई जान गई ।
नक्सल प्रभावित ज़िला नारायणपुर ही नही बल्कि छत्तीसगढ़ समेत पूरे भारत देश में लॉडाउन के दौरान पुलिस की सख्ती की बात हर ओर हो रही है। पुलिस के सख्त रवैये के कारण नगर में क़ोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन का पूरी तरह से पालन भी हो रहा है। बावजूद इसके कुछ जवान ऐसे भी हैं जो अपने ड्यूटी के साथ मानवता की मिसाल भी पेश कर रहे हैं। ये जवान नगर में घूमने वाले अर्द्धविक्षिप्तों को भोजन और चाय उपलब्ध कराने के साथ ही बीमार लोगों की मदद करने को भी आगे आ रहे हैं। मौजूदा दौर में जब हर तरफ़ रोग प्रतिरोध क्षमता (इम्यूनिटी ) बढ़ाने की बात हो रही है। इसके लिए पौष्टिक खान-पान की वकालत और चर्चा है। विपरीत विषम परिस्थितियों में नारायणपुर नगर के जाँबाज़ रक्षित निरीक्षक श्री दीपक साव ने एक अपरिचित बच्ची, 3 साल की अनामिका पिता नेतराम को अपना खून देकर उसकी जान बचायी है। ऐसा पहली बार नहीं इससे पहले भी में स्वयं अनुभव कर चुका हूँ। पुलिस जवान या फिर सुरक्षा बल आइटीबीपी के जवान हो रक्तदान करने की परम्परा देखी गई है। चूंकि यहाँ के आदिवासी बच्चों और महिलाओं में एनीमिया की शिकायत ज्यादा है । ऐसे में बच्चियों को खून की ज़रूरत होती है। इन जवानों द्वारा अपना खून देकर आदिवासी लोगों की जान बचायी जा रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण पग-पग ख़तरा रहता है। लेकिन इनके हौसले हमेशा बुलंद रहते है। ये जवान ख़तरों के साये में मानवता सेवा भी कर रहे हैं। यह आप पर छोड़ता हूँ कि क्या इसकी तारीफ़ की जानी चाहिए या निंदा। क्योंकि ऐसे कई ऑफ़िसर और पुलिसकर्मी होंगे जिनका परिवार होगा। घर-परिवार भूल कर ये जवान दिन-रात सड़कों, गली-मोहल्लों में बिना खाए-पिये अपना बेहतर से बेहतर काम कर रहे है। इनके बेहतर काम के क़िस्से हम सभी ने न्यूज़ पेपर मैगजिन टी.वी या सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर देखा या सुना होगा।
पुलिस समाज और लोगों की दुश्मन नही बल्कि आपके और आपके परिवार की सुरक्षा के साथ सुरक्षित रखने में मददगार है। इस कठिन दौर में अपना बेहतर कर्तव्य निभा रही है। इस मददगार मुहिम को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। नगर के सीएसपी, श्री जयंत वैष्णव या थाना प्रभारी प्रशांत राव। प्रशांत राव तो नगर के लोग पैनिक नही हो इसके लिए ऊर्जा से भरे फ़िल्मी गीत गाक़र लोगों में कोरोना से लड़ने का जोश भी भर रहे है। इसके साथ वह विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों कर रहे है। वह नगर में लॉकडाउन के दौरान भूखे-प्यासे घूम रहे अर्द्धविक्षिप्त लोगों को अपने घर से चाय और भोजन बनाकर तक परोस रहे हैं। अपने नगर में ही नही बल्कि राज्य के अन्य ज़िलों से ऐसी तस्वीर देखने सुनने मिल रही है ।
कोविड-19 कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में पुलिस के जांबाज जवान दिन-रात कोरोना को मात देने के लिए सड़क पर खडे़ हैं। सड़क पर खड़े यह पुलिस अधिकारी
अपनी ड्यूटी के साथ-साथ मानवता की सेवा में भी पीछे नहीं है। भूखे को रोटी और कोरोना से निपटने के लिए लोगों को मास्क के अलावा उन्हें सैनिटाइज कर सशक्त कर रहे हैं। 16 से 20 घंटे तक पुलिस के जवान व अधिकारी ड्यूटी पर तैनात हैं। ग्रामीण इलाक़ों में भी पुलिस चौकी इंचार्ज भी अपने तरीके से कोरोना से निपटने के लिए लोगों को निर्देश देते हैं,ं वे न तो धूप देख रहे हैं और न ही छांव। कोरोना का वाहक न बनने के लिए लोगों को अपील कर रहे हैं।
पुलिस अधीक्षक श्री मोहित गर्ग नई-नई रणनीति के साथ लोगों को समझा-बुझाकर घर से बिना ज़रूरी काम से नही निकलने की अपील क़र रहे है। पुलिस जवानो का हौसला बढ़ा रहे और उनका ख्याल रख रहे है। पुलिस ड्यूटी के साथ अपनी मानवता की सेवा निभाने में पीछे नहीं है।
उन्होंने कई कोरोना आपदा काल के दौरान जरूरतमंद लोगों को खाना मुहैया करवाने के साथ साथ लोगों को घर में ही सुरक्षित रहने का आग्रह किया है। वे अपनी ड्यूटी को ज़िंदादिली से निभा रहे है। कोरोना एक भयंकर बीमारी है। इसकी चैन को तोड़ने के लिए वह दिन रात जुटे हुए हैं। उन्हें बमुश्किल 3-4 घंटे ही घर पर रहने मिल रहा है। इस दौरान भी वह अपना मोबाइल फोन के जरिये इलाके की अपडेट से जुड़े रहते हैं।
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