छत्तीसगढ़

रागी की खेती कर समृद्ध हो रहे जिले के किसान। कृषि विभाग किसानों को कर रहा रागी के लिए प्रोत्साहित। राष्ट्रीय कृृषि विकास योजना के तहत दिये जा रहे निःशुल्क खाद-बीज।

रागी की खेती कर समृद्ध हो रहे जिले के किसान। कृषि विभाग किसानों को कर रहा रागी के लिए प्रोत्साहित। राष्ट्रीय कृृषि विकास योजना के तहत दिये जा रहे निःशुल्क खाद-बीज।

 

भूपेंद्र साहू।
ब्यूरो चीफ बिलासपुर।
बिलासपुर- जिले के किसान अब धान की फसल के साथ ही रागी फसल की खेती की ओर रूचि ले रहे है। कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली यह फसल किसानों के लिए समृद्धि की राह बन रही है। इसके लिए कृषि विभाग भी किसानों को इस फसल की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। यह फसल ग्रीष्म ऋतु में धान का एक अच्छा विकल्प साबित हो रहा है।
रागी की खेती कर रहे विकासखण्ड मस्तूरी के किसान श्री घनश्याम पटेल ग्राम आंकडीह के निवासी है। वे ग्रीष्मकालीन धान की खेती करते थे, जिसमें पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है। जिसके कारण श्री पटेल कम रकबे में खेती करने को मजबूर थे। कम रकबे में खेती से उत्पादन भी कम होता था, जिससे उनकी लागत भी नहीं मिल पाती थी। अपनी इन समस्याओं को क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री अमित कुमार पटेल से साझा किया। अधिकारी द्वारा श्री पटेल को धान के स्थान पर रागी की खेती करने की सलाह दी गई। श्री घनश्याम ने बताया कि उन्हें कृषि विभाग की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना ‘‘रफ्तार’’ के तहत बीज, वर्मी खाद, सूक्ष्म पोषक तत्व, कीटनाशी, फफूंदनाशी निःशुल्क प्राप्त हुआ। भूमि की तैयारी से लेकर फसल कटाई तक की सम्पूर्ण तकनीकी जानकारी ग्रा.कृ.वि.अधि. श्री अमित कुमार पटेल तथा व.कृ.वि.अधि. मस्तूरी श्री ए.के.आहिरे के मार्गदर्शन में मिली। किसान श्री पटेल ने कहा कि रागी फसलों की स्थिति को देखते हुए 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज संभावित है। जिससे लगभग 1 लाख 42 हजार से 1 लाख 71 हजार तक की आय होने का अनुमान है।
श्री घनश्याम पटेल ने बताया कि वे कृषि विभाग की इस योजना से बहुत खुश है। रागी की खेती करने से खेती की लागत में भी कमी आई है और अधिक उत्पादन से लाभ भी अधिक प्राप्त होता है। श्री पटेल अपने ग्राम एवं क्षेत्र के अन्य किसानों को भी रागी की खेती कर इसका लाभ लेने की समझाईश दे रहे है।

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