संधर्ष ही जीवन है – ज्योतिष
*””संधर्ष ही जीवन है – ज्योतिष
सन्धर्षो से हमारा नाता वैसे ही हैं जैसे हमसे हमारी परछाई ।
मरते दम तक ये हमारा पीछा नही छोड़ता।
आप महसूस करो सुबह से शान तक हमारे मन मे कई तरह के अंतरद्वंदों से हम घिरे रहते हैं ।स्वामी रामदेव महराज बार बार इस बात की बताते हैं। की मन केवल दो ही चीजे जानती हैं पहला “सोचना” और जब सोचना बंद हो जाय तो “सोना ” ।आगे कहते हैं ,,,,, सोचने और सोने से बाहर चले जाना ही योग के रास्ते का खुल जाना है ।जीवन की सही और सच्ची यात्रा इसके बाद ही चालू होती हैं। पूरा “अस्टांग योग” ही जीवन का सार हैं ,,,,,
वे कहते हैं ,,,,,,संधर्ष उस ईस्वर का प्रश्न पत्र है और समय की अनुकूल स्थिती हमे अपनी ज्ञान,भक्ति,तप अनुभव,और समर्पण के साथ धर्म,अधर्म,पाप पुण्य,को अपनी विचारो की पराकाष्ठा पर खरा उतरने पर ही हम अपने जीवन के हर कठिन से कठिन प्रश्न पत्रों को हल कर पाने में सकछम होंगे।
इसलिए हर चुनैतियों को स्वीकार करते हुए हमें “योग”के पथ पर आगे बढ़ते जाए।जिसके परिणाम स्वरूप हम उस ईस्वर के कृपा के पात्र बन जाये। क्योकि बिना ईस्वर कृपा के तो हम एक “मिलखी” भी नही झपक सकते।