यदि आन्दोलन किसानों का है तो फिर लालकिले पर तिरंगे की जगह खालसा का झंडा क्यों फहराया गया

यदि आन्दोलन किसानों का है तो फिर लालकिले पर तिरंगे की जगह खालसा का झंडा क्यों फहराया गया?
सुना था उड़ेंगे पुर्जे गालिब के, देखने हम भी गये थे, पर तमाशा न हुआ।
कमाल है कुछ हजार गुंडे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति वाले देश की राजधानी को बंधक बना लें और प्रशासन मूकदर्शक बना रह गया।
बहुत ही शर्मसार करने वाली घटना हो चुकी है, ये कलंक नहीं मिटेगा।
कंधार हवाई जहाज अपहरण जैसा दाग है जो कठोर निर्णय नहीं लेने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
अभी अभी लाल किले की प्राचीर से सो कॉल्ड किसानों ने तिरंगे को उखाड़ फेंक खालसा पंथ का झंडा फहराया गया।
तिरंगे परेड की इजाज़त लेकर खालसा पंथ का झंडा फहराना देश को बड़ा धोखा।
ये आंदोलन हो ही नही सकता ये दंगा है।
योगी बाबा ने दो दिन पहले नोटिस जारी कर दिया था।
गणतंत्र दिवस पर सड़क पर बच्चे चलते है। कोई भी टैक्टर निकला जब्त कर लेंगे। किसी की
औकात नहीं हुई निकले। राजेश टिकैत यही के है, आकर करें उत्तरप्रदेश में।
दिल्ली में गोलमेज सम्मलेन चल रहा था। उस हिजड़े योगेंद्र यादव से बात चल रही थी जो प्रधानी का चुनाव नहीं जीत सकता।
उपद्रव का आमंत्रण दिया है सरकार ने खुद।
अब जो भी हो , किसान बिल रहे या जाय।
लेकिन योगेंद्र यादव और टिकैत पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिये।
यदि यह सबक नहीं दिया गया तो यह राष्ट्र के लिये खतरनाक है।
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हिंसा करके भारत को पूरी दुनिया में बदनाम किया गया है।
यह स्वीकार नहीं है , बिल्कुल स्वीकार नहीं है।।