आर्थिक मोर्चे पर बिहार की नई सरकार के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां, करने होंगे विशेष प्रयास

बिहार (Bihar) में फिर से एनडीए (NDA) की सरकार बनने जा रही है। आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों के दौरान आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती, रोजगार सृजन, साक्षरता समेत सरकार को जिन चुनौतियां का सामना करना पड़ा था, वहीं फिर से नई सरकार के सामने हैं और इस बार उसे इस मोर्चे पर सफलता के लिए अपना पूरा दम-खम दिखाकर बिहार को विभिन्न क्षेत्रों में पिछड़ेपन से उबारना होगा। बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का एक तिहाई है। यह राज्य में आर्थिक गतिविधियों की कमी को दर्शाती है।
पिछले वित्त वर्ष में, बिहार की प्रति व्यक्ति आय 31,287 रुपये थी, जो कि राष्ट्रीय औसत 94,954 की करीब 33 फीसदी थी। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राज्य में आर्थिक गतिविधियां किस कदर सुस्त थीं। राज्य की आर्थिक निष्क्रियता से कई क्षेत्रों पर असर पड़ा। इसके दूसरा सबसे अधिक पिछड़पन साक्षरता के क्षेत्र में देखा गया। बिहार की साक्षरता दर 70.9 फीसदी है, जो कि देश में तीसरी सबसे कम है।
1. बैंक नही कर पा रहे संसाधनों का पूरा उपयोग
2018-19 में वाणिज्यिक बैंकों ने बिहार में 3,53,279 करोड़ रुपये जमा किए, लेकिन वे इनमें से केवल 1,20,287 करोड़ का कर्ज वितरित कर सके। यानी बिहार का ऋण जमा अनुपात महज 34 फीसदी था, जो अखिल भारतीय औसत 78.2 फीसदी था। इसके बजाय तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में क्रमशः 109.7 फीसदी और 106.5 फीसदी की क्रेडिट रहा था। यह दर्शाता है कि बैंकों ने इन राज्यों में बिहार में कुल जमा से अधिक राशि उधार दी। बिहार का आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक यह निम्न अनुपात बताता है कि बैंक राज्य में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अपने संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं।
2. इसलिए बिहार में ऋण देने में असमर्थ बैंक
बिहार का न्यूनतम ऋण जमा अनुपात इसके गरीब राज्य की छवि से ऊपर उठने में सबसे बड़ा अवरोध है। वास्तव में इसका प्रमुख कारण राज्य में आर्थिक गतिविधियों मे कमी है, जिसके चलते बैंक यहां उद्योगों को ऋण देने में असमर्थता जाहिर करते हैं। हालांकि बैंक बिहार में निश्चित रूप से खुदरा ऋण दे सकते हैं।
3. विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट को संभालना होगा
जैसा कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय औसत का 33 फीसदी थी। यह अंतर राज्य में आर्थिक गतिविधि की कमी को दर्शाता है। वहीं राज्य में विनिर्माण क्षेत्र की बात करें तो बिहार में यह भारतीय विनिर्माण के समग्र आकार का केवल 1.3 प्रतिशत है। वहीं राज्स में विनिर्माण गतिविधियां का औसत अर्थव्यवस्था का 7.8 फीसदी हैं, जबकि पूरे भारत के लिए यह 16.6 फीसदी है। इसका मतलब है कि बिहार राज्य में रोजगार सृजन के लिए अवसर फिलहाल मौजूद हैं। विनिर्माण के क्षेत्र में सकारात्मक प्रयास करके स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया कराए जा सकते हैं।
4. बिहार में महिला साक्षरता पर भी ध्यान देने की जरूरत
बिहार में साक्षरता दर या साक्षर व्यक्तियों का प्रतिशत 70.9 फीसदी है, जो देश में तीसरा सबसे कम है। महिलाओं में, यह दर 60.5 फीसदी है, जिसका अर्थ है कि बिहार की पांच में से दो महिलाएं, औसतन पढ़-लिख नहीं सकतीं। यह बिहार में सबसे कम महिला श्रम शक्ति भागीदारी (एलएफपी) को प्रदर्शित करता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में महिला एनएफपी दर क्रमशः 6.4 फीसदी और 3.9 फीसदी है। जबकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह दर क्रमशः 20.4 और 24.6 प्रतिशत है।
5. इन मोर्चों प्रमुख मोर्चों पर करना होगा विशेष प्रयास
बिहार में नई सरकार को रोजगार सृजन और विर्निमाण क्षेत्र को बढ़ावा देने के साथ ही राज्य में शिक्षा वितरण प्रणाली में सुधार पर ध्यान देना होगा। यहां तक कि अगर नौकरी के अवसर पैदा होते हैं, तो लोगों को इन नौकरियों को लेने के लिए सही शिक्षा और कौशल की आवश्यकता होगी, सरकार को कौशल विकास के क्षेत्र में भी प्रयास करने होंगे।