बेहतर उत्पादन वाली खेक्सी यानी कंटोला को लेकर वनांचल के किसानों में खासी रुचि
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राजनांदगांव जिले के गंडई क्षेत्र अंतर्गत पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासी किसानों के लिए खेक्सी की खेती लाभदायक बनते जा रही है । इस क्षेत्र में किसान खेत की मेढ़ का शानदार उपयोग कर रहे हैं । इन मेढों में वे कीमती सब्जी खेक्सी की पैदावार ले रहे हैं इससे इनकी आर्थिक स्थिति भी बदल रही है कम लागत और बेहतर उत्पादन वाली खेक्सी यानी कंटोला को लेकर वनांचल के किसानों में खासी रुचि है । सिजनल सब्जी होने के कारण बाजार में आते ही यह हाथों हाथ बिक जाती है । खेकसी का पौधा बेल युक्त होता है , वन क्षेत्र में जमीन के 1 से 3 फुट अंदर इसका जड़ रहता है जैसे ही जून में बारिश होती है तथा इसके बेल युक्त पौधों का अंकुरण हो जाता है खासकर उत्पादन जुलाई से सितंबर तक होता है गंडई के वनांचल क्षेत्रों में प्रमुखता से इस फसल की पैदावार ली जा रही है । बड़े पैमाने पर तो नहीं लेकिन छुटपुट तौर पर किसान अपने खेतों में इसकी पैदावार ले रहे हैं । जो किसान इसका उत्पादन बखूबी जानते हैं वे अपने स्तर पर लगातार इसकी खेती करते आ रहे हैं । गंडई के वन क्षेत्र के ग्राम सेतवा, खावडा, दुल्लापुर, मुढाटोला , खोलवा रेन्दा खामही सहित अन्य गांव में भी इसकी खेती की जा रही है । किसान लगभग 2 से 3 एकड़ क्षेत्र में खेती का उत्पादन कर रहे हैं । खेती की पैदावार लेने वाले किसान ने बताया कि सिजनल सब्जी होने के कारण यह हाथों हाथ बिक जाता है !गौरतलब है कि खेक्सी का वनस्पतिक नाम मोमोकार्डिया चेरेन्शिया है जो कि कुकुर ब्रिटिश प्रजाति का पौधा है । अंग्रेजी में इसे स्पाइनी गार्ड भी कहते हैं । करेले की तरह दिखने के बावजूद यह स्वाद में बिल्कुल भी कड़वा नहीं होता । फल में इसका बीज होता है इसकी लताएं पेड़ पर या झाड़ी में लिपटी होती है।कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अन्य सब्जियों की तरह खेक्सी में भी काफी लाभकारी गुण होते हैं । खेक्सी में पौष्टिक गुण भरपूर मात्रा में होते हैं । इसके एंटी एलर्जी और एनाल्जेसिक गुण सर्दी खांसी में राहत प्रदान करने वाले और इसे रोकने में सहायक है । साथ ही इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं ।जिले के वनांचल क्षेत्रों का वातावरण खेकसी के पैदावार के अनुकूल है जिसकी वजह से किसानों को अगर प्रोत्साहित किया जाय तो यह उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत करने सहायक सिद्ध होगा ।