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हाइटेक हॉस्पिटल में किया गया एक रेयर केस का सफलतापूर्वक इलाज

ह्रदय के पास के झिल्ली में रक्तयुक्त ढाई लीटर भरा था पानी

इस पानी में तैरते मिले फाईलेरिया के कीटाणु

भिलाई। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में एक रेयर केस का सफलतापूर्वक इलाज किया गया। मरीज के हृदय के आसपास की झिल्ली में लगभग ढाई लिटर पानी भरा हुआ था जिसमें भारी मात्रा में रक्त भी था। ऐसा आम तौर पर कैंसर या टीबी के मामले में होता है। इस तरल को निकाल कर जांच करने पर चिकित्सक हैरान रह गए। इस पानी में फाइलेरिया के कीटाणु तैरते हुए मिले। इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अश्लेष तिवारी ने बताया कि देश में इससे पहले इस तरह के केवल 4 या 5 मामले देखने में आए हैं। छत्तीसगढ़ का संभवत: यह पहला केस है। राजनांदगांव निवासी यह 47 वर्षीय मरीज कृषि मजदूर है। उसे काम करते समय सीने में भारीपन की समस्या थी। हालांकि वह बहुत ज्यादा तकलीफ में नहीं था। डॉ अश्लेष तिवारी ने बताया कि सबसे पहले मरीज का एक्सरे किया गया। एक्सरे चौंकाने वाला था। फेफड़े दिखाई तक नहीं पड़ रहे थे, एक धुंध सी छाया ने उसे ढंक रखा था। मरीज का इकोकार्डिओग्राफी मे यह पता लग पाया की यह हृदय की झिल्ली थी जो पानी भरने के कारण फैल कर काफी बड़ी हो गई थी। इस झिल्ली को पेरिकार्डियम कहते हैं। इसमें जमा तरल (पेरिकार्डियल फ्लुइड) को ड्रेन करने की कोशिशें शुरू कर दी गईं। पहली कोशिश में सिर्फ 300 एमएल पानी निकाला जा सका। इसके बाद पिगटेल कैथेटर का उपयोग किया गया जो हृदय के आसपास की जगह तक पहुंच सके। दूसरी कोशिश में इसके जरिए 1300 एमएल पानी निकाला गया। तीसरी बार में 450 एमएल और चौथी बार में 500 एमएल पानी निकाला गया। इसके बाद का एक्सरे एकदम साफ आया।पैथोलॉजिस्ट डॉ रजनी ने जब इस तरल की जांच की तो उसमें फाइलेरियासिस के कीटाणु तैरते मिले। यह एक अनोखा मामला था। फाइलेरिया लिम्फैटिक सिस्टम पर हमला करता है। आमतौर पर इसके कारण पैरों में या अंडकोष में पानी भरने की समस्या देखी जाती है। डॉ तिवारी एवं डॉ रजनी ने इसके बारे में अनेक स्रोतों से अधिकाधिक जानकारी जुटाने की कोशिश की। तमाम लिटरेचर खंगालने के बाद पूरी दुनिया में इस तरह के 10-12 मामलों का पता लगा।डॉ अश्लेष ने बताया कि मरीज को इतनी भारी मात्रा में पानी जमा होने का अहसास शायद इसलिए नहीं हुआ होगा कि यह पानी धीरे-धीरे जमता गया और शरीर उसे एडजस्ट करता चला गया। यदि कुछ और देर हो जाती तो मरीज की जान को खतरा हो जाता। पानी को एक ही बार में इसलिए नहीं निकाला गया कि एकाएक पैदा होने वाला वैक्यूम कहीं दूसरी समस्या न खड़ी कर दे।उन्होंने बताया कि इस मामले में अच्छी बात यह रही कि हमें पानी जमा होने के कारण का पता लग चुका था। हमने तत्काल मरीज को फाइलेरिया की दवा देनी शुरू कर दी। तीन दिन तक अस्पताल में रखने के बाद उसे 20 अगस्त को छुट्टी दे दी गई।उन्होंने बताया कि पानी दोबारा जमा हो सकता है पर अब यह उतना खतरनाक नहीं होगा। फाइलेरिया की दवा शुरू हो चुकी है इसलिए अब खतरा काफी कम हो गया है। हालांकि मरीज को नियमपूर्वक और काफी लंबे समय तक दवाइयां लेनी पड़ेगी। इस केस को अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित करने की तैयारी की जा रही है।

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