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गरीब बच्चों के हित में नीतिगत निर्णय ले सरकार

दुर्ग। शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत प्रवेश हेतु मा.उच्च न्यायालय बिलासपुर के अंतरिम आदेश  14 सितंबर 2016 में दूरी तय किया गया है, जिसमें प्रथम प्राथमिकता में एक से तीन किलो मीटर फिर द्वितीय प्राथमिकता में 3 से 6 किलोमीटर फिर उससे आगे, यहां तक कि किसी भी बच्चे को किसी भी स्कूल में प्रवेश दिया जाना है और कोई भी सीट रिक्त नहीं होना चाहिए, लेकिन शासकीय उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों में प्रवेश हेतु प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में एक किलो मीटर की दूरी निर्धारित किया गया है, जो नीति संगत एवं न्यायसंगत नहीं है। इस संबंध में छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने स्कूल शिक्षा मंत्री और प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर यह नाराजगी जताई है कि शासन स्तर पर कई निर्णय लिए जा रहे है जो नीतिसंगत और न्याय संगत नहीं है।

श्री पॉल ने कहा कि शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत 25 प्रतिशत प्रवेशित बच्चों के लिए शासन स्तर पर प्राईवेट स्कूलों के लिए नर्सरी से लेकर कक्षा बारहवीं तक की फीस लगभग 7,790 रूपया से लेकर 16 हजार तक निर्धारित है, जिससे शासन द्वारा प्राईवेट स्कूलों को दिया जाता है, लेकिन बाकी 75 प्रतिशत बच्चों को स्कूल द्वारा मांगी जा रही डिमांडेड फीस, ऊंची फीस देने के लिए छोड़ दिया गया है, जबकि दोनों ही वर्ग के बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में एक जैसी शिक्षा और सुविधा दिया जा रहा हैै। शासन स्तर पर जो फीस तय किए गए है वह शासन के अनुसार युक्ति-युक्त है और सरकार के अनुसार इससे ज्यादा फीस नहीं लिया जाना चाहिए तो फिर बाकी 75 प्रतिशत बच्चों से ज्यादा फीस वसूला जाना नीतिसंगत, न्यायसंगत नहीं है।

श्री पॉल ने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत प्राईवेट स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश दिलाने हेतु उम्र 5 वर्ष से 6 वर्ष 6 माह निर्धारित किया गया है, लेकिन वहीं सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश पाने के लिए उम्र 6 वर्ष निर्धारित किया गया है। पैरेंट्स एसोसिएशन ने सरकार से यह मांग की है कि स्कूल में प्रवेश और फीस निर्धारण को लेकर जनहित में नीतिगत निर्णय लिया जाना उचित होगा, क्योंकि जो वर्तमान में प्रवेश और फीस को लेकर सरकार की नीति है, वह स्वयं विरोधाभास है, क्योंकि प्राईवेट स्कूलों और सरकारी स्कूलों के लिए अलग-अलग नियम बनाया गया है, जो नीतिसंगत और न्यायसंगत नहीं है।

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