
ग्रहण में क्या करें, क्या न करें ?
सूतक से पूर्व
ग्रहण के सूतक से पूर्व गंगाजल पियें ।
सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्रग्रहण से तीन प्रहर (9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए । बूढ़े, बालक, रोगी और गर्भवती महिलाएँ डेढ़ प्रहर ( साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं ।
ग्रहण के कुप्रभाव से खाने-पीने की वस्तुएँ दूषित न हों इसलिए सभी खाद्य पदार्थों एवं पीने के जल में तुलसी का पत्ता अथवा कुश डाल दें ।
पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय या कुत्ते को डालकर ग्रहण के बाद नया भोजन बना लेना चाहिए । सम्भव हो तो ग्रहण के पश्चात् घर में रखा सारा पानी बदल दें ।
ग्रहण के समय पहने हुए एवं स्पर्श किए गए वस्त्र आदि अशुद्ध माने जाते हैं । अतः ग्रहण पूरा होते ही पहने हुए कपड़ों सहित स्नान कर लेना चाहिए ।
ग्रहण से पूर्व की सावधानी
ग्रहण से 30 मिनट पूर्व गंगाजल छिड़क के शुद्धिकरण कर लें ।
ग्रहणकाल प्रारम्भ होने के पूर्व घर के ईशान कोण में गाय के घी का चार बातीवाला दीपक प्रज्वलित करें एवं घर के हर कमरे में कपूर का धूप कर दें ।
ग्रहण के दौरान सावधानी
ग्रहण के दौरान हँसी-मजाक, नाच-गाना, ठिठोली आदि न करें क्योंकि ग्रहणकाल उस देवता के लिए संकट का काल है, उस समय वह ग्रह पीड़ा में होते हैं । अतः उस समय भगवन्नाम-जप, कीर्तन, ओमकार का जप आदि करने से संबंधित ग्रहों एवं जापक दोनों के लिए हितावह है ।
भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं “सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (ध्यान, जप, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है । यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदाई होता है ।
ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है । ग्रहणकाल में कुछ भी क्रिया न करते हुए केवल शांत चित्त से अपने गुरुमंत्र का जप करें एवं जिन्होंने गुरुमंत्र नहीं लिया है वे अपने इष्टदेव का मंत्र या भगवन्नाम का जप करें ।
चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप, ध्यान करने से कई गुना फल होता है । श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार जप करें । ग्रहणशुद्धि के बाद उस घृत को पी लें । ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है ।
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव पूजन तथा श्राद्ध तथा अंत में वस्त्रोंसहित स्नान करना चाहिए । स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं ।
ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए । सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करनेवाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक ‘अरुन्तुद’ नरक में वास करता है । (देवी भागवत)
ग्रहण के समय निद्रा लेने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है । गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए ।
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदो को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है ।
ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए । ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं ।
ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए ।
ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है । (स्कंद पुराण)
भूकम्प एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए । (देवी भागवत)
ग्रहण को देखने से आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
ग्रहण के पश्चात् क्या करें ?
ग्रहणकाल में स्पर्श किए हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी पहने हुए वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए ।
आसन, गोमुखी व मंदिर में बिछा हुआ कपड़ा भी धो दें । और दूषित ओरा के शुद्धिकरण हेतु गोमूत्र या गंगाजल का छिड़काव पूरे घर में कर सकें तो अच्छा है ।
ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए । ग्रहण के स्नान में गरम की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडा जल में भी दूसरे के हाथ से निकले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकला हुआ, निकले हुए की अपेक्षा जमींन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा समुद्र का जल पवित्र माना जाता है ।
ग्रहण के बाद स्नान करके खाद्य वस्तुओं में डाले गये कुश एवं तुलसी को निकाल देना चाहिए ।
सूर्य या चन्द्र जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए ।
गर्भवती माताओं-बहनों के लिए ग्रहणकाल में विशेष ध्यान रखने योग्य आवश्यक बातें
1. गर्भिणी अगर चश्मा लगाती हो और चश्मा लोहे का हो तो उसे ग्रहणकाल तक निकाल देना चाहिए । बालों पर लगी पिन या नकली गहने भी उतार दें ।
2.ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला या चोटी में कुश धारण कर लें ।
3. ग्रहण के समय गर्भवती चाकू, कैंची, पेन, पैन्सिल जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग न करे क्योंकि इससे शिशु के होंठ कटने की सम्भावना होती है ।
4. सूई का उपयोग अत्यंत हानिकारक है, इससे शिशु के हृदय में छिद्र हो जाता है । किसी भी लोहे की वस्तु, दरवाजे की कुंडी आदि को स्पर्श न करें, न खोले और न ही बंद करें । ग्रहणकाल में सिलाई, बुनाई, सब्जी काटना या घर से बाहर निकलना व यात्रा करना हानिकारक है ।
5. ग्रहण के समय भोजन करने से मधुमेह (डायबिटीज) का रोग हो जाता है या बालक बीमार होता है ।
6. ग्रहणकाल में पानी पीने से गर्भवती स्त्री के शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है, जिस कारण बालक की त्वचा सूख जाती है ।
7. लघुशंका या शौच जाने से बालक को कब्जियत का रोग होता है ।
8. गर्भवती वज्रासन में न बैठे अन्यथा शिशु के पैर कटे हुए हो सकते हैं । शयन करने से शिशु अंधा या रोगी हो सकता है । ग्रहणकाल में बर्तन आदि घिसने से शिशु की पीठ पर काला दाग होता है ।
9. ग्रहणकाल के दौरान मोबाइल का उपयोग आंखों के लिए अधिक हानिकारक है । उस दौरान निकले रेडियेशन से गर्भस्थ शिशु के विकास में रुकावट आ सकती है । कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसके कारण शिशु तनाव में भी जा सकता है ।
10. गर्भवती ग्रहणकाल में अपनी गोद में एक सूखा हुआ छोटा नारियल (श्रीफल) लेकर बैठे और ग्रहण पूर्ण होने पर उस नारियल को नदी अथवा अग्नि में समर्पित कर दे ।
11.ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर व तुलसी-पत्तों का रस (रस न मिलने पर तुलसी-अर्क का उपयोग कर सकते हैं) का गोलाई से पेट पर लेप करें । देशी गाय का गोबर न उपलब्ध हो तो गेरूमिट्टी का लेप करें अथवा शुद्ध मिट्टी का ही लेप कर लें । इससे ग्रहणकाल के दुष्प्रभाव से गर्भ की रक्षा होती है।
मुंगेली जिला से बिसाहू कुमार सबका संदेश