देश दुनिया

कोरोना से जंग के बीच ज़िंदगी हार रहे थैलीसीमिया पीड़ित, अस्पताल, ब्लड और इलाज के लिए भटक रहे मरीज, During coronavirus thalassemia patients wandering for delhi hospitals-treatment-blood transfusion in lnjp-gtb-gb pant-ddu-covid-19-delhi health-dlnh | delhi-ncr – News in Hindi

नई दिल्ली. कोरोना (Corona Virus) महामारी के कारण फैली स्वास्थ्य अव्यवस्था की वजह से थैलीसीमिया (Thalassemia) जैसी गम्भीर बीमारी से जूझ रहे मरीज इलाज के लिए भटक रहे हैं. इनमें अधिकांश मरीज बच्चे हैं जो अव्यवस्थाओं के चलते ज़िंदगी की जंग हार रहे हैं. राजधानी दिल्ली के तीन अस्पतालों के कोविड अस्पताल (Covid Hospital) बन जाने के बाद इनमें इलाज करा रहे करीब 300 बच्चे अन्य सरकारी अस्पतालों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन, ब्लड जांच और इलाज के लिए चक्कर काट रहे हैं. लेकिन ये अस्पताल इन मरीजों को वापस भेज रहे हैं. हाल ही में ब्लड चढ़वाने के बाद पर्याप्त इलाज न मिलने के कारण ओखला निवासी थैलीसीमिया पीड़ित संजय कर्मकार की जान चली गई.

संजय की मां लक्ष्मी ने न्यूज़18हिंदी को बताया कि उनके बेटे को कोरोना हॉस्पिटल की बात कहकर एलएनजेपी अस्पताल में इलाज नहीं मिल पाया. खून चढ़वाने के लिए जब वो एलएनजेपी (LNJP) पहुंचीं तो उनसे किसी और अस्पताल में जाने के लिए कहा गया. किसी तरह वे अपने बेटे को लेकर दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल पहुंची, जहां ब्लड देने से मना कर दिया गया. हालांकि ब्लड का खुद ही इंतजाम करके उन्होंने अस्पताल से चढ़वाया.

दूसरे ही दिन बच्चे को ठीक बताकर अस्पताल ने छुट्टी दे दी, जबकि उसे दर्द था. वे घर पहुंचे तो उसका दर्द बढ़ने लगा और 3-4 दिन के बाद तेज दर्द के साथ ही उसके सीने से खून निकलने लगा. ऐसी स्थिति में किसी तरह एम्बुलेंस बुलवाई गई और अस्पताल पहुंचे लेकिन वहां पहुंचने के बाद उसकी मौत हो गई.

बेटे की मौत से सदमे में पहुंची लक्ष्मी कहती हैं, ‘उसके इलाज में डॉक्टरों ने लापरवाही की. वह दर्द बता रहा था लेकिन उसे घर भेज दिया. हम माँ-बेटा गुहार लगाते रहे लेकिन उसकी कोई जांच नहीं की गई न ही इलाज किया गया. मैं मजदूरी करके अपने बेटे को संभाल रही थी. इसके पापा के जाने के बाद यही एकमात्र सहारा बचा था जिसे देखकर जी रही थी. मुझसे वह भी छीन लिया गया.’ये भी पढ़ें: केके अग्रवाल बोले, हर मोहल्ले में 50-60 हज़ार में बन सकता है कोविड केयर सेंटर

वहीं गीता कॉलोनी निवासी राजीव वर्मा बताते हैं, मेरा सात साल का बेटा थैलेसीमिया से पीड़ित है. उसका दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में अन्य 130 मरीजों के साथ इलाज चल रहा था लेकिन उसे कोरोना अस्पताल बना दिया और हमें कोई जानकारी नहीं दी गयी. पिछले चार महीनों से मैं और सभी मरीजों के माँ-बाप कभी चाचा नेहरू, कभी दीनदयाल, कभी जीबी पन्त अस्पतालों के चक्कर काट काट कर थक गए. काफी गुहार लगाने के बाद अन्य अस्पतालों ने ब्लड चढ़ाने की हामी तो भरी लेकिन रेगुलर जांच नहीं की. इतना ही नहीं ब्लड देने से भी साफ मना कर दिया गया, तब रेडक्रॉस सोसाइटी में ब्लड डोनेट करने के बाद कहीं ब्लड मिल पाया जो बच्चे को चढ़वाया. अभी कई पेरेंट्स बच्चों को लेकर भटक रहे हैं.

coronavirus patients, thalassemia patients, delhi hospitals, blood transfusion, lnjp, GTB hospital, gb pant, covid 19, delhi health news, कोरोनावायरस के रोगी, थैलेसीमिया के रोगी, दिल्ली अस्पताल, एलएनजेपी, जीटीबी अस्पताल, जीबी पंत, कोविड-19, दिल्ली स्वास्थ्य समाचार

थैलेसीमिया ब्लड डिसऑर्डर की बीमारी है

राजेश सहगल ने बताया कि थैलीसीमिया से जूझ रहे बच्चे जावेद, हिमा, साहिल मलिक को एलएनजेपी के कोविड हॉस्पिटल बनने के बाद कई अस्पताल भर्ती करने को राजी नहीं हुए और परिजनों को बहाने लगाकर वापस भेज दिया. गुहार लगाने के बाद जब ब्लड चढ़ाने को राजी हो भी गए तो ब्लड डोनर लाने के लिए कहा गया. कई दिन तक मरीजों से चक्कर कटवाए. जबकि इन बच्चों को हर 21 दिन में ब्लड ट्रांसफ्यूजन की ज़रूरत होती है. अस्पतालों की ब्लड बैंक भी ब्लड न होने की बात कहकर ब्लड देने से इनकार कर रही हैं जिससे बच्चों की तय डेट भी निकलती जा रही है.

दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त निदेशक बोले, मेरा नम्बर 8745011331 है पब्लिक, मरीज के परिजन तुरन्त करें फोन

थैलीसीमिया के मरीजों को आ रहीं परेशानियों पर जब न्यूज़18 हिंदी ने दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त निदेशक एस के अरोड़ा से बात की तो उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में थैलीसीमिया के 2000-2200 मरीज हैं, जिनमें आधे से ज्यादा अन्य राज्यों से हैं. कोरोना और लॉकडाउन के कारण मरीजों की दिक्कतों को देखते हुए हमने कोविड हॉस्पिटल बनाये गए जीटीबी (GTB) हॉस्पिटल के थैलीसीमिया मरीजों को दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट और हिंदूराव वालों को कस्तूरबा गांधी अस्पताल से लिंक कर दिया है. जबकि एलएनजेपी (LNJP) को जीबी पन्त अस्पताल से जोड़ने का फैसला किया गया है. मरीज इन अस्पतालों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन और इलाज करा सकते हैं. इन मरीजों को ब्लड की कमी न हो इसके लिए भी पूरी व्यवस्था की गई है.’

ये भी पढ़ें: कैसा सरकारी इलाज, परिवार की कोरोना जांच के लिए खर्च किए 41 हज़ार

इसके अलावा अरोड़ा ने बताया कि उन्होंने अपना मोबाइल नम्बर 8745011331 सार्वजनिक कर दिया है, किसी भी परेशानी में थैलीसीमिया मरीज के परिजन उन्हें सीधे फोन कर सकते हैं. वे दिल्ली में थैलीसीमिया का इलाज करने वाले सभी 13 अस्पतालों के नोडल ऑफिसर और ब्लड बैंक के अधिकारियों से भी रोजाना अपडेट ले रहे हैं.’

भारत में हर साल बढ़ते हैं करीब 10 हज़ार थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चे

भारत में करीब एक लाख बच्चे बीटा थैलीसीमिया से पीड़ित हैं जबकि करीब डेढ़ लाख मरीज सिकल सेल डिज़ीज़ से पीड़ित हैं. एक अध्ययन के मुताबिक करीब 9-10 हज़ार थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चे सालाना भारत में जन्म लेते हैं.

दो प्रकार का थैलीसीमिया, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और बोन-

मेरो ट्रांसप्लांट है इलाज

थैलीसीमिया एक प्रकार का एनीमिया है और दो प्रकार का होता है. अल्फा (माइनर) और बीटा थैलीसीमिया (मेजर). इस बीमारी में लाल रक्त कणिकाएं खत्म हो जाती हैं और बोन मेरो जरूरत के हिसाब से इनका उत्पादन नहीं कर पाता है. इसके मरीजों को ह्रदय, तिल्ली और लीवर सम्बन्धी बीमारियों का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. लिहाजा कम उम्र में ही ये बीमारी रोगी की जान भी ले लेती है, जबकि कुछ मामलों में मरीज पूरी उम्र भी जी लेता है. अभी तक इसके इलाज के रूप में ब्लड ट्रांसफ्यूजन, आयरन थेरपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट है. हालांकि इस बीमारी का पूरी तरह ठीक होना मुश्किल है और यह गम्भीर बीमारी जीवन भर भी रह सकती है.

केंद्र सरकार के नेशनल हेल्थ मिशन में हैं गाइडलाइन्स

भारत और विश्व में थैलीसीमिया को लेकर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत भी थैलीसीमिया से बचाव के लिए गाइडलाइन्स जारी की गई हैं. संसद में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया था कि पब्लिक हेल्थ राज्य सरकार का विषय है, इसके बावजूद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से प्रत्येक गर्भवती महिला की स्क्रीनिंग के साथ ही सभी बच्चों की 8वीं कक्षा के दौरान एक बार स्क्रीनिंग करने की गाइडलाइन्स सरकार की ओर से जारी की गयी हैं. जिन पर काम हो रहा है.



Source link

Related Articles

Back to top button