चीन बॉर्डर पर लिपुलेख यात्रा : सुरक्षा के लिए अहम है कालापानी और नाभीढांग। lipulekh journey : Kalapani and Nabhidhang are important for security | pithoragarh – News in Hindi
पहाड़ों की गोद में बसा गुंजी है सबसे अहम पड़ाव (फाइल फोटो)
काली नदी के किनारे कटी सड़क की मदद से सिर्फ आधे घंटे में कालापानी पहुंचा जा सकता है. कालापानी भारत-नेपाल सीमा विवाद की जड़ है. नेपाल 1990 के बाद से ही कालापानी को अपना बताता आ रहा है. जबकि भारतीय सुरक्षा तंत्र यहां पर 1955 से ही काबिज है. यही नहीं राजस्व विभाग के अभिलेखों में भी कालापानी की जमीन गर्ब्यांग गांव के नाम दर्ज है.
ब्रिटिश शासन में भी कालापानी भारत का रहा है
गुंजी के राजस्व निरीक्षक दिनेश जोशी (Revenue Inspector Dinesh Joshi) ने बताया कि ब्रिटिश शासन में 1865 में हुए विकट बंदोबस्त में भी कालापानी भारत का हिस्सा था. वर्तमान में ये गर्ब्यांग गांव का तोक है, जिसमें 1 से लेकर 711 नंबर तक के खेत हैं. कालापानी को ही भारत काली नदी का उद्गम स्थल मानता है. यहां आईटीबीपी ने काली माता का मंदिर भी बनाया है. जिसकी देखरेख आईटीबीपी ही करती है. काली मंदिर के गर्भगृह से ही काली नदी निकलती है. कालापानी में भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियां हर वक्त मुस्तैद नजर आती हैं. यहां सीमाओं की सुरक्षा के लिए सेना के साथ आईटीबीपी और एसएसबी तैनात है.
भारत-चीन युद्ध के दौरान बनाए गए बंकर आज भी मौजूदकालापानी में 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान बनाए गए बंकर आज भी मौजूद हैं. कालापानी से करीब 12 किलोमीटर दूर चीन की ओर नाभीढांग है, ये इलाका भारत की सुरक्षा के लिहाज से सबसे अहम है. प्रसिद्ध ओम पर्वत भी यहीं मौजूद है. बर्फ से पटे नाभीढांग में 17500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद ओम पर्वत अद्भुत है. गगनचुंबी बर्फीले पहाड़ में साक्षात ओम लिखा देखकर कोई भी हैरान हो सकता है. अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण माउंटेन सिकनेस का खतरा यहां हर वक्त बना रहता है. बावजूद इसके भारत के बहादुर सैनिक दिन-रात यहां मौजूद रहते हैं.
लिपुलेख पहुंचना खतरों से खाली नहीं
नाभीढांग की दाईं ओर करीब 3 किलोमीटर दूर भारत-नेपाल और तिब्बत का ट्राई जंक्शन मौजूद है. बर्फ से पटा होने के कारण यहां हर वक्त सुरक्षा बल मौजूद नहीं रहते हैं. लेकिन तीनों मुल्कों के सैनिक यहां रेकी जरूर करते हैं. लिपुलेख सफर कई तरह के रोमांच को खुद में समेटता है. यहां पहुंचना खतरों से खाली नही है. खौफनाक रास्ते के साथ ही मौसम भी यहां आने वालों की हर पल परीक्षा लेता है. लेकिन ये इलाका कई ऐतिहासिक जानकारियों को खुद में समेटा भी है.
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First published: June 8, 2020, 7:38 PM IST