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लॉकडाउन 4.0: हजारों प्रवासी मजदूरों का सारथी बना 8 दोस्तों का ये समूह, ऐसे पहुंचा रहा है घर lockdown four friends helping tracking and guiding migrant labours to reach homes in bihar-up-mp-covid19-lockdown help-nodrss | delhi-ncr – News in Hindi

लॉकडाउन 4.0: हजारों प्रवासी मजदूरों का सारथी बना 8 दोस्तों का ये समूह, ऐसे पहुंचा रहा है घर

इस दौरान ऐसे तमाम लोग हैं जो मानवता की मिसाल खड़ी कर रहे हैं. सांकेतिक तस्वीर

एक मुहिम चार दोस्तों ने मिलकर शुरू की है. जो एक एनजीओ ‘उद्देश्य’ के साथ मजदूरों को राशन देने के साथ ही उनके सफर में सारथी बने हुए हैं. ये उन्हें तब तक रास्ता दिखा रहे हैं जब तक कि वे सुरक्षित अपने गाँव-घर न पहुंच जाएं. ये दोस्त हैं ललित कुमार, अनिमेष मुखर्जी, मधुरम और शारदा.

नई दिल्ली. कोरोना (Covid19) के चलते हुए लॉकडाउन (Lockdown) में पैदल गांव लौट रहे प्रवासी मजदूरों की बेहद दर्दभरी तस्वीरें सामने आ रही हैं. ये लोग खाने-पीने के साथ ही बुनियादी जरूरतों के लिए भी तकलीफें झेल रहे हैं. लेकिन इस दौरान ऐसे तमाम लोग हैं जो मानवता की मिसाल खड़ी कर रहे हैं. इतना ही नहीं इनके इनोवेटिव आइडियाज की वजह से प्रवासी मजदूर सरकारी व्यवस्थाओं का भी लाभ उठा पा रहे हैं. ऐसी ही एक मुहिम चार दोस्तों ने मिलकर शुरू की है. जो एक एनजीओ ‘उद्देश्य’ के साथ मजदूरों को राशन देने के साथ ही उनके सफर में सारथी बने हुए हैं. ये उन्हें तब तक रास्ता दिखा रहे हैं जब तक कि वे सुरक्षित अपने गांव-घर न पहुंच जाएं. ये दोस्त हैं ललित कुमार, अनिमेष मुखर्जी, मधुरम और शारदा.

इमरजेंसी रेस्पॉन्स टास्क फोर्स में दिन रात काम करते हैं आठ लोग
मधुरम बताती हैं कि मजदूरों की मदद के लिए एक इमरजेंसी रेस्पॉन्स टास्क फोर्स बनाई गई है. जिसमें जुड़े सभी 8 लोग मिलकर प्रवासियों की ट्रैकिंग और गाइड कर घर पहुंचाने का काम कर रहे हैं. वे एक किस्सा बताती हैं, ‘हाल ही में देर रात पचास श्रमिकों को एक ट्रक ड्राइवर यूपी-बिहार बॉर्डर पर उतार कर भाग गया. जहां इन लोगों को उतारा गया वहां बिल्कुल अंधेरा था और इन्हें ये भी नहीं पता था कि ये कहां हैं.

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इनोवेटिव आइडियाज की वजह से प्रवासी मजदूर सरकारी व्यवस्थाओं का भी लाभ उठा पा रहे हैं. (प्रतीकात्मक फोटो)

गौरतलब है कि इन श्रमिकों को दिन में ही हमारे सहयोगी एनजीओ उद्देश्य की ओर से खाना दिया गया था और फोन नम्बर भी दे दिया गया था. तब देर रात इनमें से एक मजदूर का फोन हमारे पास आया. महेन्द्र नाम का यह श्रमिक काफी डरा हुआ था. उसने कहा कि कैसे भी मदद कीजिए, इन्हें बिहार जाना है. तब ललित और मधुरम‌ ने मजदूरों के इस ग्रुप को कम्प्यूटर पर गूगल मैप के जरिए लोकेशन बताई. ये लोग उत्तर प्रदेश के सलेमगढ़ में राष्ट्रीय राजमार्ग 27 पर थे तब गूगल मैप के जरिए हमने इन्हें बताया कि कुछ किलोमीटर के बाद पुलिस चौकी है. हमारे बताए रास्ते पर वे लोग पैदल चलते रहे. कुछ देर बाद उन्हें पुलिस चौकी मिल गयी और फिर प्रशासन ने उन्हें खाना देने के साथ ही उनकी पूरी मदद की.’

ऐसे करते हैं मजदूरों से सम्पर्क फिर करते हैं गाइड
इस समूह में शामिल अनिमेष मुखर्जी बताते हैं कि यूपी की करीब छह ऐसी जगहें उन्होंने चुनी हैं जहां से प्रवासी मजदूरों का आना-जाना होता है. इन पॉइंट्स पर उद्देश्य एनजीओ के साथ मिलकर उनके साथी मजदूरों को खाने का पैकेट देते हैं. चूंकि ये प्रवासी मजदूर 20-30 या ज्यादा के समूहों में आगे बढ़ रहे होते हैं तो इनके ग्रुप में से तीन लोगों का नम्बर ले लेते हैं और इन्हें भी अपना नम्बर दे देते हैं.

इसके बाद इनकी ट्रैकिंग का सिलसिला शुरू होता है. इन्हें फोन करके लोकेशन जानी जाती है और परेशानी पूछी जाती है. अगर ये रास्ते से भटक जाते हैं, बस या ट्रक चालक इन्हें उतार देते हैं, खाने की समस्या होती है, क्वेरेन्टीन सेंटर नहीं मिलता तो हम लोग गूगल पर लोकेशन देखते हैं, नजदीकी हेल्प सेंटर, पुलिस चौकी या स्टेशन, क्वेरेन्टीन सेंटर में उन्हें पहुंचाने में मदद करते हैं. अगर ये सब सुविधाएं नहीं होतीं तो अपने नजदीकियों, स्थानीय पत्रकारों, एनजीओ आदि की मदद लेकर उनके लिए व्यवस्था करवाते हैं.

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इन्हें फोन करके लोकेशन जानी जाती है और परेशानी पूछी जाती है.

अभी तक करीब 4 हज़ार लोगों की ट्रैकिंग की जा चुकी है
इस पूरी मुहिम का नेतृत्व कर रहे कविताकोश के संस्थापक ललित कुमार बताते हैं कि उनकी टीम रोजाना करीब 300 लोगों की ट्रैकिंग करती हैं. मजदूरों से हर 12 घण्टे में उनकी जगह की जानकारी ली जाती है. इसके अलावा वे लोग खुद भी जरूरत पड़ने पर उनकी टीम से सम्पर्क कर सकते हैं. अनुमानित 4000 लोगों की मदद वे लोग अभी तक कर चुके हैं.

ललित कहते हैं कि इन मजदूरों को ट्रैक करने के बाद कम से कम एक ऐसे डेस्टिनेशन तक गाइड करके पहुंचाया जाता है जहां इनको या तो पुलिस-प्रशासन की मदद मिलती है, क्वेरेन्टीन सेंटर में पहुंच जाते हैं या फिर इनका घर इतना नजदीक होता है कि ये वहां से कुछ साधन लेकर पहुंच जाते हैं.

पलायन नई समस्या है तो समाधान भी नया ही खोजना था
ललित कुमार कहते हैं कि देश में पहली बार पलायन की समस्या शुरू हुई और इतनी बड़ी संख्या में देशभर से मजदूर अपने अपने गांव लौटने लगे. लिहाजा इस स्थिति से निपटने के लिए समाधान भी नया ही खोजना था. मजदूरों को खाना पहुंचाने के दौरान उनकी नई दिक्कतें सामने आईं और तब एडवोकेट मधुरम ने मजदूरों को सफर में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए फोन से मदद करने का आइडिया दिया और अब यह काफी हद तक सफल भी हो रहा है.

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First published: May 20, 2020, 10:41 PM IST



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