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नक्सलियों के कब्जे से पुलिस के जवान को छुड़ा लाए पत्रकार, 6 दिन तक रहा जंगल में | A Group of Journalists Rescued a Police constable from Naxals in Jungles of Bastar | raipur – News in Hindi

नक्सलियों के कब्जे में 6 दिन तक जंगल में रहा पुलिस का जवान, छुड़ा लाए पत्रकार

सांकेतिक तस्वीर.

पुलिसकर्मी संतोष कट्टम छह दिन तक नक्सलियों के कब्जे में रहा. उसे आंख में पट्टी बांधकर यहां-वहां घुमाया गया. लेकिन कुछ पत्रकारों की मेहनत और सूझबूझ से संतोष की जान बच गई. नक्सलियों ने जन अदालत में उसे छोड़ने का निर्णय लिया.

रौनक शिवहरे

बीजापुर:
 अपहरण. आपने जब भी टीवी-रेडियो पर यह शब्द सुनते हैं तो कुछ चीजें एक सी रहती हैं. इसकी सूचना पत्रकार देते हैं और पुलिस अपराधियों को तलाश करती है. लेकिन छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में ठीक इसका उल्टा मामला सामने आया है. यहां पुलिसवाले को नक्सलियों ने अगवा कर लिया. वे पुलिसवाले संतोष कट्टम (Santosh Kattam) की आंख में पट्टी बांधकर उसे छह दिन तक जंगल में यहां-वहां घुमाते रहे हैं. पुलिसकर्मी के पत्नी और बेटी को जब कुछ नहीं सूझा तो उसने पत्रकारों से मदद मांगी. कुछ पत्रकार मदद के लिए सामने आए. उन्होंने तीन दिन तक संतोष कट्टम की तलाश की. खुशकिस्मती से वे नक्सलियों से संपर्क करने में कामयाब रहे और संतोष को सकुशल छुड़ा भी लाए.

यह घटना छत्तीसगढ़ की है. सुकमा जिले के संतोष कट्टम पुलिस विभाग में इलेक्ट्रीशियन के तौर पर भोपालपटनम में तैनात हैं. संतोष छुट्टी लेकर बीजापुर (Bijapur) आए थे और लॉकडाउन (Lockdown) में फंस गए. वे 4 मई को गोरना में मेला देखने गए थे. वहां छिपे नक्सलियों (Naxali) को उस पर शक हुआ. जब नक्सलियों को पता चला कि संतोष पुलिस का जवान है तो उसे अगवा कर लिया. नक्सलियों ने उसके दोनों हाथ पीछे बांध दिए गए और आंखों पर पट्टी बांध दी.यह भी पढ़ें: कार्यस्थल पर थूका तो मिलेगी सजा, भरना होगा जुर्माना,जानिए सरकार की नई गाइडलाइन

संतोष की पत्नी सुनीता और बेटी भावना को अपहरण के बारे में पता चला. पत्नी सुनीता, बेटी के साथ संतोष की रिहाई के लिए प्रयास करने लगी. उनकी अपील पर 7 मई को कुछ पत्रकार मदद के लिए सामने आए. इन पत्रकारों ने तीन-तीन लोगों के ग्रुप में खुद को बांटा. कुछ पत्रकार महाराष्ट्र और कुछ आंध्र प्रदेश की सीमा की ओर गए. वे तीन दिन तक दुर्गम जंगलों में संतोष का सुराग तलाशते रहे. कोई भी संतोष की जानकारी देने को तैयार नहीं था. आखिरकार 10 मई को पत्रकार गणेश मिश्रा, रंजन दास और चेतन खपरवार की टीम को एक खबर मिली. पत्रकार गणेश मिश्रा को फोन आया. इसमें कहा गया कि 11 मई को एक गांव में जन अदालत (Jan Adaalat) है. इसमें संतोष की किस्मत का फैसला होगा. अगर वे (पत्रकार) चाहें तो वहां आ सकते हैं और संतोष की पत्नी व बेटी को भी ला सकते हैं.

11 मई को नक्सली अपने इलाके में जनअदालत लगाते हैं. यहां करीब 1500  ग्रामीणों की मौजूदगी में संतोष को जनअदालत में पेश किया गया. जन अदालत में नक्सलियों ने माना कि संतोष ने पुलिस में होने के बावजूद किसी पर अत्याचार नहीं किया है. फिर ग्रामीणों से पूछा गया कि संतोष को मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए. गांव वालों ने छोड़ने को कहा. इस पर संतोष को इस शर्त पर छोड़ा गया कि वह पुलिस की नौकरी छोड़ देगा.

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संतोष कट्टम रिहा होने के बाद पत्रकारों के साथ पुलिस थाने पहुंचा. बस्तर रेंज के आईजी पी. सुंदरराज ने कहा कि संतोष अब हमारे साथ है. हम उससे अपहरण संबंधी सारी जानकारी ले रहे हैं. संतोष कट्टम ने बताया कि वह 6 दिन तक आंखों पर पट्टी बांधे जंगल में इधर-उधर भटकता रहा. उसके दोनों हाथ पीछे से बंधे हुए थे. उसे यह पता नहीं होता था कि वह कितना चला, कहां पहुंचा, उसके आसपास कौन है. उसे खाने में चिड़िया का मांस और सूखी मछली दी जाती थी. उसने बताया कि जब नक्सली लीडर आकर पूछताछ करते तब भी आंख से पट्टी नहीं हटाई जाती थी. उसे हर वक्त ये लगता था कि उसे किसी भी वक्त गोली मार दी जाएगी. किस्मत अच्छी थी कि नक्सलियों ने छोड़ दिया.

एक स्थानीय पत्रकार सुरेश महापात्रा कहते हैं, ‘बिहार में हम पत्रकार दोधारी तलवार पर चलते हैं. कभी हमें नक्सलियों द्वारा मारने की धमकी दी जाती है तो कभी पुलिसवालों का डर रहत है. इसके बावजूद ऐसे कई काम होते हैं, जिनके लिए हमें आगे आना पड़ता है.’

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First published: May 19, 2020, 5:53 PM IST



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