दिल्ली दंगे: गुलशन को 3 महीने की लंबी लड़ाई के बाद रमजान में मिला पिता का शव | Delhi Riot dictims daughter got fathers body after 3 month of his death | delhi-ncr – News in Hindi
इस साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे.
इस साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे. इनमें अनवर भी शामिल थे, जो दिल्ली के शिव विहार इलाके में रहते थे. उन्हें दंगाइयों ने जिंदा जला दिया था. शव की पहचान डीएनए के आधार पर हुई.
वो 25 फरवरी की रात थी, जब अनवर कासर को जिंदा जला दिया था. उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फैले इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे. अनवर दिल्ली के शिव विहार इलाके में रहते थे. गुलशन कहती हैं कि उसके पिता सो रहे थे, तभी किसी ने घर में आग लगा दी. सब जल गया. अनवर कासर का सिर्फ एक पैर नहीं जल पाया था. उसी पैर की बदौलत शव की पहचान हो पाई.
गुलशन बताती हैं कि पैरों के आधार पर डीएनए टेस्ट किया गया. इसकी रिपोर्ट आने में वक्त लगा. डीएनए सैंपल मिल गए, लेकिन शव फिर भी नहीं मिल रहा था. इस बीच लॉकडाउन (Lockdown) आ गया. आखिरकार कोर्ट का सहारा लेना पड़ा. 16 मई को कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि अनवर का शव गुलशन को सौंप दिया जाए.यह भी पढ़ें: बसों का मामला गर्माया, UP कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अजय लल्लू हिरासत में
गुलशन उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखवा गांव में पति और दो बच्चों के साथ रहती हैं. पति पांच साल पहले एक हादसे में आंखों की रोशनी गंवा चुके हैं. इसलिए गुलशन ही परिवार संभालती हैं और उनको ही पिता का शव लेने के लिए अकेले लड़ाई लड़ी. गुलशन बताती हैं कि रविवार को वकील का फोन आया कि पुलिस शव देने को तैयार है. इसके बाद उसने कैब किया और पति व बच्चों को छोड़ दिल्ली आ गई.
गुलशन कहती हैं, ‘मैं कई बार दिल्ली आ चुकी हूं. पिता की मौत के बाद एक महीने तक तो बार-बार पुलिस और अस्पताल के चक्कर लगाए. लेकिन इस बार दिल्ली जाते वक्त नसें सुन्न हो रही थीं. किसी तरह दिल्ली पहुंची. वहां शव सौंपा गया, जो एक बैग में पैक था.’ गुलशन के बेटे सात और आठ साल के हैं. उन्होंने कहा, ‘पति की आंख की रोशनी जाने के बाद मेरे पिता ही हमें पाल रहे थे. वे बच्चों की स्कूल फीस से लेकर खिलौने तक का खर्च उठाते थे. हर रोज शाम को फोन करते थे. बच्चे बार-बार पूछते कि इस समय फोन क्यों नहीं आ रहा है. अब बैग में शव है. मैं लौटते वक्त सोच रही थी कि बच्चों को क्या बताउंगी कि इस बैग में क्या है. समय के साथ वे जान जाएंगे कि उनके नाना की मौत दंगों में हुई थी. लेकिन हम उन्हें ये कैसे बताएंगे कि शव के रूप में सिर्फ एक हड्डी मिली थी.’
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गुलशन ने पति, मामा और पड़ोसियों के साथ मिलकर अपने पिता को सुपुर्दे-खाक किया. लेकिन एक जंग जीतने के बाद उनके सामने दूसरी लड़ाई है. परिवार को पालने की जंग. गुलशन कहती हैं कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने एक लाख रुपए की मदद की थी. इसमें से आधे तो सिर्फ कैब में ही खर्च हो गए. अब खाने-पीने से लेकर बच्चों की पढ़ाई की चिंता है. अगर मेरी केजरीवाल से बात हो सकी तो मैं उनसे इतना ही कहूंगी कि सरकार कम से कम बच्चों की पढ़ाई का खर्च तो उठा ले. वैसे पिता की मौत पर जो मदद राशि देने की बात कही गई थी, उनमें से 9 लाख रुपए अब भी नहीं मिले हैं. लेकिन अब कोई इस बारे में बात नहीं करता.
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First published: May 19, 2020, 8:23 PM IST