पहले थे बढ़ई, शेफ, मजदूर, कबाड़ी, लेकिन रोजी-रोटी की खातिर Lockdown में बने सब्जीवाले Why carpenter rag picker chef labourer selling vegetables in cities and villages during covid19 lockdown dlnh | delhi-ncr – News in Hindi


इंदौर में करीब एक माह से सब्जी और फलों की सप्लाई पर प्रतिबंध लगा है. (File Photo)
लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान दिल्ली, मथुरा, फरीदाबाद सहित तमाम शहरों और गांवों में सब्जी बेचने वालों (Vegetable Seller) की संख्या तेजी से बढ़ी है. दिलचस्प बात है कि कोरोना क्राइसिस से पहले इन्होंने कभी सब्जी नहीं बेची थी
- पहले चलाते थे टेंपो अब उसी में रखकर बेच रहे सब्जियां
कोटा गांव के रहने वाले वीरपाल लॉकडाउन में सब्जी बेच रहे हैं. वो रोजाना टेंपो में सब्जी लादते हैं और करीब आधा दर्जन गांव में घूम-घूमकर सब्जी बेचते हैं. उन्होंने बताया कि वो पहले साड़ी की फैक्ट्री में काम करते थे लेकिन एक साल पहले ही तीन साल की किश्तों पर टेंपो खरीद लिया. अभी साल भर की भी किश्त पूरी तरह से नहीं गयी. उन्हें हर महीने साढ़े आठ हजार रुपये किश्त चुकाने होते हैं. कोरोना संकट के चलते अभी भले तीन महीने छूट है लेकिन बाद में तो किश्त चुकाने ही पड़ेंगे. वहीं घर में खाने के लिए भी पैसा चाहिए. यही वजह है कि वो रोजाना गांव-गांव जाकर सब्जियां बेचते हैं.
- होटल में था शेफ, सब बंद हो गया, पर चलाना है घर
आजकल सब्जी बेच रहे राजेश बताते हैं कि वो पहले आगरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर बने होटल में बतौर शेफ काम करते थे. जैसे ही कोरोना फैलने लगा और लॉकडाउन शुरू हुआ, उनका होटल भी बंद हो गया. ऐसे में घर का जिम्मेदार सदस्य होने के कारण उन्होंने लॉकडाउन में सब्जी बेचने का फैसला किया. वो कहते हैं कि इस दौरान सब्जी बेचने पर ही रोक नहीं है. और ये सरल काम भी है जो कम पैसा लगाकर किया जा सकता था.
- लोग पूछते हैं सब्जी बेचने नए-नए आये हो क्या?
सतीश कहते हैं कि उन्होंने सब्जी बेचना तो शुरू कर दिया है लेकिन अभी भी उन्हें आवाज नहीं लगानी आती. वो सब्जी का ठेला लेकर खड़े हो जाते हैं और लोग खुद ही सब्जी लेने आते हैं. कई बार लोग ये भी पूछते हैं कि पहले तो दिखाई नहीं देते थे, कहां से आये हो? सब्जी लाये हो तो कुछ फल भी रख कर लाया करो. ये सब सुनकर थोड़ा अजीब तो लगता है, क्योंकि पहले वो बढ़ई थे और घरों में लकड़ी का काम करने जाते थे. सब्जी बेचना भाता नहीं है लेकिन मजबूरी है तो करना पड़ रहा है.
- पहले रोटी का काम करते थे अब सब्जी का कर रहे हैं
मयूरी में रखकर सब्जी बेच रहे अतर सिंह तड़के तीन बजे से दोपहर एक बजे तक लगातार सब्जी का काम करते हैं. सब्जी बेचने से पहले के काम पर अतर सिंह हंसते हुए कहते हैं कि पहले रोटी का काम करते थे अब सब्जी का कर रहे हैं. वो पहले एक ढाबे पर तंदूर चलाते थे. जब कोरोना की वजह से तंदूर बंद करना पड़ा तो अब सब्जी बेच रहे हैं. वो कहते हैं कि इसमें दिक्कतें और खतरा बहुत ज्यादा है लेकिन घर का खर्च भी तो चलाना है.
रात में दो बजे ई-रिक्शा में भर के लाते हैं सब्जी
टिंकू पहले ई-रिक्शा चलाते थे. उसी से घर का खर्च चलता था. यह रिक्शा उन्होंने किराये पर लिया हुआ है लिहाजा रोजाना का किराया भी चुकाना पड़ता है. मार्च से हुई बंदी के बाद से घर में अन्न के भी लाले पड़ गए. वहीं रिक्शा मालिक अपना किराया देने का दबाव बना रहा था. ऐसे में ई-रिक्शा पर ही सब्जियां लादकर बेचना शुरू कर दिया. इससे चार बच्चों सहित आठ लोगों के परिवार को दो वक्त की रोटी मिल जा रही है.
लोग बोले, गलियों में दिखाई दे रहे नए-नए सब्जी वाले
दिल्ली, फरीदाबाद, मथुरा और गांवों में लोगों का भी कहना है कि आज कल नए-नए सब्जी वाले आ रहे हैं जो पहले कभी गलियों में नहीं दिखाई देते थे. बुजुर्ग गोपाल और राजपाल बताते हैं कि पहले सुबह से शाम तक एक सब्जी वाला मुश्किल से दिखाई देता था लेकिन अब दिन भर लाइन लगी रहती है. हालांकि कोरोना के कारण लोग सब्जी बेचने वालों से डरे हुए भी हैं.
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