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रामनगर: प्रशासन के दावों की पोल खोलता राहत शिविर, सिर ढकने के लिये नहीं है छत, जानवरों को नहीं खिला पा रहे खाना|The administration did not arrange anything properly for the people trapped with their animals in lockdown in Ramnagar Uttarakhand Nodt | nainital – News in Hindi

रामनगर: प्रशासन के दावों की पोल खोलता राहत शिविर, सिर ढकने के लिये नहीं है छत, जानवरों को नहीं खिला पा रहे खाना

रामनगर में प्रशासन के दावों की पोल खोलता राहत शिविर (फाइल फोटो)

समाजसेवी नरेंद्र शर्मा की मानें तो इन लोगों को घर वापस भेजने या यहां रखने पर इनके बेहतर इंतजाम के लिए वह रोज एसडीएम ऑफिस (SDM Office) के चक्कर काट रहे हैं.लेकिन उन्हें वहां से रोज टाल दिया जा रहा है.

नैनीताल. देश में इस समय लॉकडाउन-3.0 (Lockdown 3.0) चल रहा है. जहां लॉकडाउन में कई लोग घरों में रहकर भी परेशान हो रहे हैं, तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें रहने के लिये छत भी नसीब नहीं हो रही. उत्तराखंड (Uttarakhand) के रामनगर में 15 खच्चर स्वामी अपने 38 खच्चरों के साथ खुले में सोने को मजबूर हैं. ये लोग अपने खच्चरों के साथ अल्मोड़ा जिले के भिकियासैंण से चले थे. लेकिन पहले इन्हें अल्मोड़ा के ही मोहान में रोक दिया गया, जहां इन्होंने 22 दिन काटे. उसके बाद यह लोग वहां से चल तो पड़े लेकिन रामनगर प्रशासन ने इन्हें आगे जाने से रोक दिया. अब ये लोग बीते 14 दिनों से यहां फंसे हुए हैं.

प्रशासन ने इन्हें रोक तो लिया, लेकिन उसने इनके रहने की व्यवस्था रेलवे की भूमि पर एक खुले मैदान में कर दी, जिसके बाद से ये लोग यहां खुले में सोने को मजबूर हैं. इस साल उत्तराखंड में मौसम पल-पल अपना रंग बदल रहा है. ऐसे में जब आंधी-तूफान, बारिश और ओलावृष्टि होती है, तो ये लोग किसी तरह कहीं दुकानों के छज्जों के नीचे बैठकर अपने आप को बचाने का प्रयास करते हैं. प्रशासन भले ही लोगों के लिए लाख अच्छे इंतजाम का दावा करता हो, लेकिन यहां जमीनी हकीकत कुछ ऐसी नजर आ रही है. ये सभी खच्चर स्वामी यूपी के नजीबाबाद के रहने वाले हैं.

जानवरों को खिलाने के लिये कुछ भी नहीं है
समाजसेवी नरेंद्र शर्मा की मानें तो इन लोगों को घर वापस भेजने या यहां रखने पर इनके बेहतर इंतजाम के लिए वह रोज एसडीएम ऑफिस के चक्कर काट रहे हैं.लेकिन उन्हें वहां से रोज टाल दिया जा रहा है. खच्चर स्वामी वसीम कहते हैं कि दिन तो खच्चरों की देखभाल में किसी तरह कट जाता है. लेकिन रात काटनी बहुत भारी पड़ रही है. यहां मौसम के डर के साथ ही मच्छरों के भी प्रकोप है. वह कहते हैं कि उन्हें उनके खच्चरों के साथ यहां छोड़ तो दिया गया, परन्तु उनके खाने-पीने की भी कोई व्यवस्था प्रशासन ने नहीं की है. कुछ समाजसेवी आकर उन्हें तो भोजन दे जाते हैं जिससे उनका तो पेट भर जाता है. लेकिन इन जानवरों को खिलाने के लिए उनके पास कुछ नहीं बचा. ऐसे में समझा जा सकता है कि उनके लिए यहां रह पाना कितना कठिन हो रहा होगा.ये भी पढ़ें: पिथौरागढ़-अल्मोड़ा में लगातार 3 दिन में जलीं 3 शहीदों की चिताएं… युवाओं में देश के लिए लड़ने का जज़्बा हुआ और मजबूत

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First published: May 5, 2020, 7:57 PM IST



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