आख़िर कब तक इश्क इकतरफ़ा करते रहोगे, पढ़िए अशोक चक्रधर की प्रसिद्ध हास्य कविताएं | hasya poet ashok chakradhar famous poetry ash | book-review – News in Hindi

इश्क एकतरफा करते रहोगे
आख़िर कब तक इश्क
इकतरफ़ा करते रहोगे,उसने तुम्हारे दिल को
चोट पहुंचाई
तो क्या करोगे?
-ऐसा हुआ तो
लात मारूंगा
उसके दिल को
-फिर तो पैर में भी
चोट आएगी तुमको
ससुर जी उवाच
ससुर जी उवाच
डरते झिझकते
सहमते सकुचाते
हम अपने होने वाले
ससुर जी के पास आए,
बहुत कुछ कहना चाहते थे
पर कुछ
बोल ही नहीं पाए
वे धीरज बंधाते हुए बोले-
बोलो!
अरे, मुंह तो खोलो
हमने कहा-
जी… जी
जी ऐसा है
वे बोले-
कैसा है?
हमने कहा-
जी…जी ह़म
हम आपकी लड़की का
हाथ मांगने आए हैं
वे बोले
अच्छा!
हाथ मांगने आए हैं!
मुझे उम्मीद नहीं थी
कि तू ऐसा कहेगा,
अरे मूरख!
मांगना ही था
तो पूरी लड़की मांगता
सिर्फ़ हाथ का क्या करेगा?
चुटपुटकुले
माना कि
कम उम्र होते
हंसी के बुलबुले हैं,
पर जीवन के सब रहस्य
इनसे ही तो खुले हैं,
ये चुटपुटकुले हैं
ठहाकों के स्त्रोत
कुछ यहां कुछ वहां के,
कुछ खुद ही छोड़ दिए
अपने आप हांके
चुलबुले लतीफ़े
मेरी तुकों में तुले हैं,
मुस्काते दांतों की
धवलता में धुले हैं,
ये कविता के
पुट वाले
चुटपुटकुले हैं
दया
भूख में होती है कितनी लाचारी,
ये दिखाने के लिए एक भिखारी,
लॉन की घास खाने लगा,
घर की मालकिन में
दया जगाने लगा
दया सचमुच जागी
मालकिन आई भागी-भागी-
क्या करते हो भैया ?
भिखारी बोला
भूख लगी है मैया
अपने आपको
मरने से बचा रहा हूं,
इसलिए घास ही चबा रहा हूं
मालकिन ने आवाज़ में मिसरी घोली,
और ममतामयी स्वर में बोली—
कुछ भी हो भैया
ये घास मत खाओ,
मेरे साथ अंदर आओ
दमदमाता ड्रॉइंग रूम
जगमगाती लाबी,
ऐशोआराम को सारे ठाठ नवाबी
फलों से लदी हुई
खाने की मेज़,
और किचन से आई जब
महक बड़ी तेज,
तो भूख बजाने लगी
पेट में नगाड़े,
लेकिन मालकिन ले आई उसे
घर के पिछवाड़े
भिखारी भौंचक्का-सा देखता रहा
मालकिन ने और ज़्यादा प्यार से कहा—
नर्म है, मुलायम है कच्ची है
इसे खाओ भैया
बाहर की घास से
ये घास अच्छी है !