उत्तर कोरिया में किम जोंग के वो चाचा कौन हैं, जो सत्ता का नया केंद्र बनकर उभरे हैं | knowledge News in Hindi
ऐसे में अफवाहों के बीच ये बात भी लगातार उठ रही है कि सत्ता का अगला दावेदार कौन हो सकता है. एक तरफ की छोटी बहन का नाम आ रहा है तो दूसरी ओर उनके सौतेले चाचा भी बड़े दावेदार हो सकते हैं. लंबे समय तक अपने देश के राजदूत के पद पर रहे प्योंग इल का पुरुष होना भी उनका पलड़ा तगड़ा करता है.
पूर्व नौकरशाह किम प्योंग इल दशकों तक यूरोपियन देशों में उत्तर कोरिया के राजदूर रहे
असल में उत्तर कोरिया में पुरुषसत्तात्मक सोच है. ये न केवल समाज और घरों में, बल्कि राजनीति में भी दिखता है. इस देश में ऊंचे ओहदों पर बैठे ज्यादातर लोग पुरुष हैं. इक्का-दुक्का मामले ही अलग हैं, जैसे उप विदेश मंत्री चोई सन हुई (Choe Son Hui) का मामला. यहां तक कि शासन संभालने वाली Supreme People’s Assembly में भी 687 सदस्यों में कम ही महिलाएं हैं, जबकि पहले ये सोचा गया था कि इसमें 20 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए ही होंगी. जो हैं, उनकी राय का भी सत्ता में खास महत्व नहीं होता है. साल 1948 में उत्तर कोरिया के गठन के बाद से देश को एक ही परिवार के 3 पुरुष संभालते आए हैं, लिहाजा किम की बहन के तगड़े वारिस होने के बाद भी कयास लग रहे हैं कि चौथा शासक भी पुरुष ही होगा.इसमें सबसे मजबूती दावेदारी किम के सौतेले चाचा किम प्योंग इल (Kim Pyong-il) की दिख रही है. किम जोंग इल (किम के पिता) के सौतेले भाई हाल ही में एक नौकरशाह के तौर पर 30 साल देश से बाहर बिताकर लौटे हैं. अब किम की मौत के कयासों के बीच एकाएक उनके सौतेले चाचा की वापसी भी एक इशारा दे रही है कि शायद चाचा ही देश को संभालें. प्योंग इल की राजनैतिक काबिलियत किम के पिता के लिए भी खतरा रही. यही वजह है कि उन्हें 30 सालों तक देश से बाहर रहना पड़ा. इन सालों में वे उत्तर कोरिया के राजदूत के तौर पर फिनलैंड, बुल्गेरिया, हंगरी और पोलैंड रहे. माना जाता है कि राजदूत बतौर जाने से पहले देश में रहने के दौरान वे राजनीति में काफी अहम योगदान दे रहे थे और यहां तक कि सेना प्रमुख भी रह चुके थे.
फिलहाल कोरिया के सैन्य शासक किम के गंभीर रूप से बीमार होने से लेकर मौत की चर्चाएं भी हो रही हैं
ऐसी भी बातें आती रही हैं कि राजधानी प्योनगांग (Pyongyang) में वे काफी मशहूर थे और चाहनेवाले उनका नाम जपा करते थे. राजदूत के तौर पर रिटायर होने के बाद वे कुछ महीने पहले ही देश लौटे हैं. इस थोड़े से वक्त में वे दोबारा लोगों की नजरों में आ गए हैं. इसके पीछे पूर्व शासक और किम के पिता से उनके चेहरे का मिलना भी शामिल माना जाता है.
अब किम की खराब सेहत की बातों के बीच 65 साल के प्योंग इल को तगड़ा दावेदार माना जा रहा है तो इसकी वजह उनका पुरुष होना भी है. इस बारे में उत्तर कोरियाई मामलों के जानकार Professor John Blaxland कहते हैं कि प्योंग इल की खूबियों में उनका पुरुष होना भी शामिल है. हालांकि दूसरे विशेषज्ञ पुरुष सत्ता पर अलग राय रखते हैं. जैसे हालांकि किम की बहन यो जोंग की सत्ता में दावेदारी भी कमजोर नहीं. माना जाता है कि वे भाई के सभी फैसलों में अहम भूमिका निभाती रही हैं. यो जोंग अपने भाई की राजनैतिक सलाहकार होने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा में भी अहम जिम्मेदारी संभालती रहीं. हाल ही में उन्हें देश में फैसले लेने वाली सबसे बड़े संगठन Politburo का वैकल्पिक सदस्य बनाया गया है.
किम की छोटी बहन बहन किम यो जोंग (Kim Yo Jong) भी राजनीति में सक्रिय हो चुकी हैं
वैसे उत्तर कोरिया में गद्दी संभालने के लिए वारिस चुनने का तरीका काफी अलग है. यहां साल 1948 में देश के बनने के बाद से ही सत्ता पर किम परिवार के सदस्यों का दबदबा रहा है. इसके बाद से किम परिवार के ही तीन पुरुषों ने सत्ता संभाली है. हालांकि देश के नए सुप्रीम लीडर की घोषणा उत्तर कोरियाई संसद सुप्रीम पीपल्स एसेंबली करती है लेकिन माना जाता है कि ये सब किम परिवार ही तय करता है और एसेंबली महज एक दिखावा है. सबसे पहले किम इल सुंग ने किम जोंग इल को अपना उत्तराधिकारी चुना था. इसके बाद किम जोंग इल ने अपने बेटे किम जोंग उन को सत्ता सौंपी जो कि वर्तमान लीडर हैं. रहस्यों में जीने वाले इस देश के सत्ताधीन परिवार ने अपने बारे में इस तरह की बातें फैलाईं कि वही उत्तर कोरियाई संस्कृति के रक्षक हो सकते हैं. किसी और के हाथों में जाने पर देश खत्म हो जाएगा. यहां तक कि सत्ता से जुड़ी एजेंसियों और सेना तक में किसी भी भर्ती से पहले ये जांच होती है कि कैंडिडेट का परिवार किम परिवार के लिए कितना वफादार है. दूसरी योग्यताओं के अलावा ये भी अहम क्राइटेरिया है.
वैसे किम की मौत की चर्चाओं के बीच ये खबर भी आ रही है कि खुद किम ने राजधानी के बाहर स्थित एक रिजॉर्ट के लिए काम कर रहे बिल्डरों को थैंक यू लेटर लिखा है. सरकार के लिए काम करने वाले अखबार Rodong Sinmun ने ये खबर छापी है लेकिन लेटर के साथ किम की तस्वीर या कोई भी ऐसा चिन्ह नहीं है, जिससे ये पक्का हो सके कि सुप्रीम लीडर ने ही ये पत्र लिखा है.
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