story of kurool doctor km ismail hussian who died due to covid19 india | कोरोना का शिकार हुआ 2 रुपए वाला डॉक्टर, दोस्त बोले- ऐसा शख्स नहीं देखा | nation – News in Hindi
Covid-19 के चलते डॉ. केएम इस्माईल हुसैन ने कुछ हफ्ते पहले आंध्र प्रदेश स्थित कुरनूल के अपने अस्पताल में काम करना बंद कर दिया. उनके दोस्त शफथ अहमद खान ने बताया कि ‘वह हमेशा इतना सुलभ और लोकप्रिय थे कि उनके घर के बाहर कतार मरीजों की लग जाती थी. वह कभी भी किसी भी कारण से मरीज को देखने से मना नहीं करते थे. एक हफ्ते के बाद मजबूरी के चलते वह अस्पताल में काम करने के लिए गए,’
14 अप्रैल को डॉ. इस्माईल ने अंतिम सांस ली. अगले दिन उनके टेस्ट से पता चला कि वह कोरोना संक्रमण के शिकार हुए थे. अधिकारियों ने कहा कि वह किसी COVID-19 रोगी के संपर्क में आए होंगे क्योंकि वह COVID-19 रेड-ज़ोन में काम कर रहे थे.
डॉ. इस्माईल कुछ महीने पहले 5 दिसंबर को 76 वर्ष के हो गए थे लेकिन जो उन्हें अच्छी तरह से नहीं जानता था वह आश्चर्यचकित है कि उन्होंने इस उम्र में भी अपने रोगियों को देखना जारी रखा. केवल कुरनूल से ही नहीं, बल्कि तेलंगाना के गडवाल और कर्नाटक के रायचूर जैसे आस-पास के जिलों से आने वाले मरीजों के साथ ही डॉक्टर कई लोगों के बीच प्रिय थे. जो मरीज महंगा इलाज नहीं करा सकते थे, उनके बीच वह काफी लोकप्रिय थे.द न्यूज मिनट की एक रिपोर्ट के अनुसार 45 वर्षों से इस्माईल के परिवार से जुड़े अब्दुल राउफ ने कहा- ‘उन्होंने कभी पैसे की परवाह नहीं की, कभी नहीं देखा कि मरीजों ने कितना पैसा दिया. उनसे चिकित्सकीय सलाह लेने के बाद, लोग वह देते थे जो उनके वश में था.’
अब्दुल ने कहा ‘पहले लोग अक्सर उसे सिर्फ दो रुपये देते थे. काम पर अपने अंतिम दिनों के दौरान लोग 10 या 20 रुपये या जो कुछ भी खर्च कर सकते थे वह सहर्ष स्वीकार कर लेते थे. यहां तक कि अगर कोई पैसे नहीं दे सकता था तो उसे कोई दिक्कत नहीं होती थी. 90 के दशक से ही उन्हें 2 रुपए वाला डॉक्टर कहा जाता है क्योंकि बहुत से लोगों का मानना था कि उनके द्वारा दी गई चिकित्सकीय सलाह के लिए यह उनकी फीस थी.’
कुरनूल निवासी इतिहासकार कल्कुरा चंद्रशेखर ने बताया कि ‘एक लकड़ी का बॉक्स था जिसमें मरीज पैसे देते थे और अपने आप चेंज ले लेते थे. वे 10 रुपये लेते हैं और 5 रुपये लेते हैं, या 50 रुपये डालते हैं और 30 रुपये वापस लेते हैं. यह पूरी तरह से मरीज पर निर्भर था.’
शफथ ने कहा कि ‘डॉ. इस्माईल की लोकप्रियता कुरनूल के मुस्लिम समुदाय में बहुत अधिक थी. उन्होंने कहा कि डॉक्टर ने शहर में जैन और मारवाड़ी समुदायों सहित कई हिंदू परिवारों की सेवा की. कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या आने पर मैं खुद हैदराबाद से अक्सर उनके पास जाता था.’
सैकड़ों लोगों के लिए डॉक्टर इस्माईल विश्वसनीय फैमिली डॉक्टर थे जो हमेशा मरीजों को प्राथमिकता देते थे. वहीं अब्दुल ने कहा- ‘इन दिनों जहाँ कई व्यावसायिक निजी अस्पताल मरीजों से पैसे वसूलते हैं वहीं इस्माईल केवल जरूरी होने पर टेस्ट और दवा लिखते थे. फिर भी अगर कोई मरीज टेस्ट और ट्रीटमेंट की पूरी कीमत नहीं चुका सकता है तो वह जो भी पैसा दे सकते थे, उसके लिए स्वतंत्र थे.
अब्दुल ने कहा कि ‘शाम 7 बजे से डॉ. इस्माइल रोगियों को देखना शुरू करते थे. जब तक कि उनमें से आखिरी मरीज तक वह नहीं पहुंच जाते थे तब तक अस्पताल में रहे. कई बार 1-2 बजे रात तक उन्होंने काम किया. इससे पहले जब मैं कहीं और काम कर रहा था तब मैं कभी-कभी कुरनूल जाने पर उनके घर पर रहता था. एक रात पेट में दर्द की शिकायत करते हुए आदमी लगभग 2 बजे अपने घर आया. डॉक्टर ने उसे देखा और दवा दी. आदमी ने बस धन्यवाद दिया और चला गया. उन्हें कोई फीस देने के लिए बाध्य नहीं था और किसी ने भी उनसे नहीं पूछा. रमजान के दौरान भी डॉ. इस्माईल उपलब्ध रहते थे.’
कुरनूल मेडिकल कॉलेज (केएमसी) से एमबीबीएस और एमडी पूरा करने के बाद डॉ इस्माईल ने लगभग 25 साल पहले VRS लेने और अपना खुदा का नर्सिंग होम शुरू करने से पहले फैकल्टी मेंबर और सुपरीटेंडेंट थे.
काम के आखिरी दिन डॉ. इस्माईल हमेशा की तरह देर रात घर लौटे थे. अगले दिन जागने पर उनकी सांस फूलने लगी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. कुरनूल गवर्नमेंट जनरल अस्पताल में कुछ दिनों के भीतर उनका निधन हो गया.
अगले दिन 15 अप्रैल उनका कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद केएम को सील कर दिया गया. साथ ही अस्पताल के कर्मचारियों और हाल ही में उनके संपर्क में रोगियों को आइसोलेशन में भेज दिया गया. उनकी पत्नी और बेटे सहित उनके परिवार के छह सदस्य कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. उनके बाद परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा है.
अब्दुल ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने उसे इस तरह खो दिया. अन्यथा, कुरनूल का आधा हिस्सा उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होता.’