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कोरोना संकट के बीच उद्धव ठाकरे की जा सकती है कुर्सी, जानें पूरा मामला – Crisis on Maharashtra government, governor silent on uddhav thackeray nomination legislative council | maharashtra – News in Hindi

कोरोना संकट के बीच एक और मुश्किल में घिरे उद्धव ठाकरे, विधान परिषद भेजने के मुद्दे पर राज्यपाल ने साधी चुप्पी

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर मंडरा रहे हैं संकट के बादल.

अगर 40 दिन के अंदर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए निर्वाचित या मनोनीत नहीं किया जाता है तो उनका मुख्यमंत्री पद अपने आप चला जाएगा.

मुंबई. भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) के सबसे अधिक केस महाराष्ट्र (Maharashtra) में देखने को मिल रहे हैं. राज्य सरकार कोरोना से मुकाबला करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है. इन सब कोशिशों के बीच अब उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) पर एक और संकट गहराता जा रहा है. दरअसल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मनोनीत सदस्य के रूप में विधान परिषद (Legislative Council) भेजने के मुद्दे पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है. उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत किए जाने का प्रस्ताव 10 दिन से राजभवन में लंबित है, लेकिन अभी भी राज्यपाल इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं.

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की चुप्पी ने उद्धव ठाकरे की चिंता बढ़ा दी है. अगर 40 दिन के अंदर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए निर्वाचित या मनोनीत नहीं किया जाता है तो उनका मुख्यमंत्री पद अपने आप चला जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो कोरोना वायरस के संकट से जिस तरह से महराष्ट्र गुजर रहा है वहां पर राजनीतिक संकट भी गहरा जाएगा. ऐसे में सरकार का ध्यान अब राजभवन के फैसले पर लगा हुआ है.

बता दें कि 6 अप्रैल को राज्य मंत्रिमंडल ने सीएम उद्धव ठाकरे की अनुपस्थिति में और उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता में हुई बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव परित कर राज्यपाल को भेजा था कि मौजदा हाला को देखते हुए विधान परिषद का चुनाव अभी नहीं कराया जा सकता है. ऐसे समय में जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जो इस समय न तो विधानसभा के सदस्य हैं और न ही विधान परिषद के सदस्य हैं उन्हें राज्यपाल की ओर से नामित कर विधानसभा की सीट के लिए मनोनीत किया जाए.

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राज्यपाल के पास इस प्रस्ताव को भेजे 11 दिन हो चुके हैं लेकिन अभी तक राजभवन की ओर से इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया गया है. ऐसे में अब उद्धव ठाकरे सरकार की नजर राजभवन के फैसले पर टिकी हुई है. इससे पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा मनोनीतक कर विधान परिषद भेजने की जरूरत पड़ी हो.

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