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‘जानवरों-इंसानों में वायरस का प्रसार रोकने के लिए केंद्र की एडवाइजरी का हो सकता है दुरुपयोग | Central government consultation may be misused to stop the spread of corona in animals and humans | nation – News in Hindi

‘जानवरों-इंसानों में वायरस का प्रसार रोकने के लिए केंद्र की एडवाइजरी का हो सकता है दुरुपयोग'

इंसानों और जानवरों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने जारी की थी एडवाइजरी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

केंद्र सरकार से कहा गया कि परामर्श स्पष्टीकरण के साथ फिर से जारी किया जाए जिससे जनजातीय लोगों और वहां के निवासियों के प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के परंपरागत और कानूनी अधिकारों पर कोई विपरीत असर न पड़े.

नई दिल्ली. वन अधिकार कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) और अर्जुन मुंडा को शुक्रवार को पत्र (Letter) लिखकर कहा कि इंसानों और जानवरों में कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रसार को रोकने के लिए जारी किये गए परामर्श का प्राकृतिक संसाधनों तक जनजातियों और खानाबदोश समुदाय के लोगों की पहुंच को बाधित करने के लिए ‘दुरुपयोग’ हो सकता है.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने छह अप्रैल को सभी राज्यों से कहा था कि वे इंसानों से जानवरों और जानवरों से इंसानों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाएं. यह निर्देश न्यूयॉर्क के ब्रॉन्क्स चिड़ियाघर में एक बाघ के संक्रमित संरक्षक के संपर्क में आने के बाद बीमार होने की वजह से जारी किया गया. अन्य निर्देशों के अलावा मंत्रालय ने यह भी कहा था कि इंसानों और वन्यजीवों का आमना-सामना कम से कम हो तथा ग्रामीणों को जंगल व अन्य संरक्षित स्थानों की तरफ जाने से रोका जाए.

परामर्श के इस पहलू पर चिंता जाहिर करते हुए वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल और आदिवासी जन वन अधिकार मंच समेत जंगल और आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई संगठनों ने कहा, “संरक्षित क्षेत्र के अंदर और आस-पास के इलाकों में करीब 30 से 40 लाख लोग रहते हैं, और इसके ठीक आसपास के इलाकों में बहुत से और लोग भी.”

प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरकेंद्रीय पर्यावरण एवं जनजातीय मामलों के मंत्रियों को लिखे गए पत्रों के मुताबिक, “ये अधिकतर अनुसूचित जनजाति और अन्य हैं जिनमें खासतौर पर जनजातीय समूह, खानाबदोश, पशुपालक समुदाय, मछुआरे आदि हैं. वे अपनी दैनिक आजीविका के लिए संरक्षित क्षेत्र और इसके आसपास के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं.” कार्यकर्ताओं ने कहा कि ऐसी खबरें हैं कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए लागू किये गए राष्ट्रव्यापी बंद से जनजातीय लोगों व आसपास के अन्य लोगों की आजीविका और अस्तित्व पर असर पड़ा है क्योंकि गर्मी के इस मौसम में वन उत्पादों को इकट्ठा कर उन्हें बेच नहीं पा रहे हैं.

केंद्र फिर से जारी करे एडवाइजरी
उन्होंने कहा, “हमें डर है कि इस परामर्श का गलत आशय निकालकर उसका दुरुपयोग इन लोगों को उस प्राकृतिक संसाधन से और दूर करने के लिए किया जाएगा जिस पर उनकी आजीविका निर्भर है.” पत्र में कहा गया, “इसलिए, हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस परामर्श को ज्यादा स्पष्टीकरण के साथ फिर से जारी किया जाए जिससे जनजातीय लोगों और वहां के निवासियों के प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के परंपरागत और कानूनी अधिकारों पर कोई विपरीत असर न पड़े.”

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First published: April 17, 2020, 5:36 PM IST



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