कोरोना संकट से उबरने के लिए भारत को पड़ सकती है बजट 2.0 की जरूरत, | nation – News in Hindi

जब दो महीने पहले बजट पेश हुआ, तब अर्थव्यवस्था ऐसी मंदी की ओर नहीं बढ़ रही थी, जैसे अब दिख रही है. बेरोजगारी की दर इस कदर ऊंची नहीं थी, जो अब सार्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच रही है. श्रम की भागीदारी इस कदर नहीं गिरी थी. दूसरे उद्योग भी ऐसे नुकसान के लिए तैयार नहीं थे. यही कारण हैं कि देश के प्रमुख अर्थशास्त्री कहने लगे हैं कि कोरोनो संकट से उपजे हालातों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को दूसरे बजट के साथ सामने आना होगा.
भारत के पहले मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणब सेन (Pronab Sen) कहते हैं, ‘अब ऐसी संभावना दिखती है कि बजट की प्राथमिकताओं को बदला जा सकता है. और इस सबके लिए अगले साल के इंतजार की जरूरत नहीं है. इसलिए आप एक फरवरी के बजट को अंतरिम बजट मान सकते हैं. इसके बाद आप एक और मुख्य बजट की ओर बढ़ सकते है.’
किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, इस सवाल के जवाब में सेन ने कहा, ‘मैं इसे सेक्टर के तौर पर नहीं बांटना चाहूंगा. यह असामान्य किस्म की समस्या है. सबसे ज्यादा ध्यान बैंकिंग सेक्टर पर दिया जाना चाहिए. बैंकिंग क्षेत्र के लिए विशाल पैकेज की जरूरत होगी. अभी सरकार के पास यह पता लगाने का कोई सुनिश्चित तरीका नहीं है कि सिस्टम के बड़े हिस्से तक कैसे पहुंचा जाए. बैंक ऐसा करने के लिए बेहतर हैं.’सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय में सचिव रह चुके प्रणब सेन कहते हैं कि सरकार को सबसे पहले रोजगार के मौके बढ़ाने होंगे. ऐसे सेक्टर को मदद करनी होगी जो ज्यादा नौकरियां पैदा करें और इसके लिए मांग बढ़ानी होगी. सेन ने कहा, ‘सब कुछ इस बात पर निर्भर करने वाला है कि मांग कितनी जल्दी बढ़ती है. अभी लोगों की 2-3 महीने की आय या तो कम हो गई है या बंद हो गई है. लोगों खासकर, कम आय वाले वर्ग की बचत भी खत्म हो रही है. इसलिए यह देखना होगा कि मांग दोबारा कैसे बढ़े.’
इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स की उपाध्यक्ष रितु दीवान (Ritu Dewan) भी संशोधित बजट की जरूरत पर सहमित जताती हैं. इंडियन एसोसिएशन फॉर वुमेन स्टडीज़ की पूर्व अध्यक्ष ने कहा,
‘दूसरे बजट के लिए सभी राजनीतिक दलों, हितधारकों और एनजीओ से सलाह की आवश्यकता होगी. कोरोनोवायरस के आने से पहले ही मांग में कमी थी. सरकार को लोगों को ध्यान में रखने की जरूरत है. यह समझना होगा कि इस महामारी से आम भारतीय पीड़ित हुए हैं. बजट में खपत, रोजगार, स्वास्थ्य क्षेत्र को ध्यान में रखना होगा. यदि आप चाहते हैं कि सप्लाई चेन बनी रहे तो आपको बजट में इसकी मुख्य जरूरतों को फ्री रखना होगा.’
रितु, ने कहा, ‘बाजार में खपत बढ़ाने के लिए, सरकार को सभी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की आर्थिक मदद करनी होगी. यूनिवर्सल बेसिक इनकम के बारे में सोचा जा सकता है. देश में इतने सारे कैंप बनाए गए हैं. उन्हें आसानी से प्रॉडक्शन यूनिट में बदला जा सकता है. देश-दुनिया में इतने सारे मास्क और ग्ल्व्स की जरूरत है, जो घर में बनाए जा सकते हैं. इससे मांग और आपूर्ति में संतुलन आएगा.’
भारत के योजना आयोग के पूर्व सदस्य और जेएनयू में प्रोफेसर अभिजीत सेन (Abhijit Sen) मानते हैं कि सितंबर में दूसरा बजट लाना अच्छा रहेगा. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह एक अच्छा विचार होगा. अभी ऐसी कोई वजह नहीं है कि आप उन अनुमानों पर भरोसा करें, जो बजट में गए थे. आप उन अनुमानों के प्रति भले ही आग्रही हो जाएं, लेकिन अब उनका कोई अस्तित्व नहीं बचा है. दूसरा बजट इस बात पर भी निर्भर करेगा कि सरकार को अनुपूरक अनुदान प्राप्त करने के लिए संसद जाने की जरूरत है या नहीं. यदि इसकी जरूरत नहीं पड़़ती है तो सरकार नए बजट की बजाय अनुपूरक अनुदान का रास्ता चुन सकती है.’
ईवाई इंडिया के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डीके श्रीवास्तव भी मानते हैं कि भारत को दूसरे बजट की जरूरत है. वे साथ ही कहते हैं कि ऐसा तभी होना चाहिए, जब स्थिति पूरी तरह सामान्य हो जाए. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि आय और व्यय दोनों ही पक्षों में बड़े बदलाव होने जा रहे हैं. मौजूदा वित्त वर्ष में राजस्व में भारी कमी आ सकती है. ऐसे में आय का संशोधित लक्ष्य तय करना जरूरी है. इस वित्तीय वर्ष के लिए ग्रोथ का अनुमान भी बदलने की जरूरत है. इसी तरह, खर्च का अनुमान भी बदलना चाहिए क्योंक अब प्राथमिकताएं पूरी तरह से बदल गई हैं. इसलिए आवंटन के लिए एक नई स्ट्रेटजी की आवश्यकता है. वित्तीय घाटे के अनुमान को भी संशोधित करने की आवश्यकता है. सभी क्षेत्रों में बचत कम होने जा रही है.’
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर आर नागराज भी प्रस्ताव से सहमत थे. उन्होंने कहा कि बदली हुई स्थिति के आधार पर बजट को फिर संशोधित किया जा सकता है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी पिछले हफ्ते कहा था कि लॉकडाउन के बाद चीजें बदल गई हैं. सरकार को अब इन मुश्किलों से निपटने के लिए बजट को फिर से तैयार करना होगा.