छत्तीसगढ़

दो माह का राशन मुफ्त के नाम पर झूठी वाहवाही बटोर रही प्रदेश सरकार, चांवल के अलावा कुछ भी फ्री नहीं

दो माह का राशन मुफ्त के नाम पर झूठी वाहवाही बटोर रही प्रदेश सरकार, चांवल के अलावा कुछ भी फ्री नहीं

देवेन्द्र गोरले सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-डोंगरगढ- प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत छत्तीसगढ़ की 2 करोड़ 44 लाख लोगों को 12360 पीडीएस दुकानों व 58 लाख राशनकार्ड के माध्यम से दो माह का मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की झूठी वाहवाही बटोरकर अपने ही हाथ से अपनी ही पीठ थपथपा रही हैं जबकि जमीनी हकीकत इससे परे हैं। पीडीएस दुकानों में चांवल के अलावा कुछ भी फ़्री नहीं है शक्कर और मिट्टी तेल पैसे में ही दिए जा रहे हैं और कुछ पीडीएस दुकानों में तो अब तक शक्कर भी नहीं पहुंची है उसके बावजूद दो माह का राशन मुफ्त देने का भ्रम फैलाया जा रहा है। 

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि विश्व व्यापी कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में 21 दिनों का लाकडॉउन् घोषित किया गया है जिसके चलते गरीब मजदूर परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बड़ी समस्या बन गई हैं ऐसे परिवारों को राहत पहुंचाने व कोरोना पीड़ितो के ईलाज के नाम पर राज्य सरकार व केन्द्र सरकार दोनो के द्वारा मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री सहायता कोष के नाम पर जहां एक ओर राज्य सरकार ने करोड़ो रुपये का दान एकत्र किया तो वहीं केन्द्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपये इकट्ठा किया लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार द्वारा गरीबों को केवल दो माह का राशन मुफ्त की घोषणा की गई और केन्द्र सरकार द्वारा तीन माह का राशन मुफ्त की घोषणा की गई वह भी राशनकार्ड धारियों को जिसमें भी चांवल के अलावा कुछ भी फ्री नहीं दिया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या जिनके पास राशनकार्ड नहीं है वे इस देश के नागरिक नहीं है क्या उनका परिवार नहीं है क्योंकि भारत में ऐसे कई परिवार है जिनके पास राशनकार्ड नहीं है तो लाकडॉउन् में वे अपने परिवार को क्या खिलाये। क्या चांवल खाने से ही जिंदगी चलती है क्या शक्कर और मिट्टी तेल से परिवार पाला जाता है क्या इन तीन वस्तुओं से ही देश चलता है क्या किसी परिवार की दिनचर्या इन्हीं तीन वस्तुओं से पूरी होती हैं इनके अलावा कोई भी आवश्यक वस्तुएं उनके जीवन का अंग नहीं है जैसे दूध, खाने का तेल, साबुन, निरमा, पेस्ट, चायपत्ती, दाल, हरी सब्जियां सहित और भी कई ऐसी वस्तुएं है जो दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है इन सभी वस्तुओं को खरीदने के लिए गरीब को पैसे चाहिए लेकिन गरीबों के नाम पर चंदा इकट्ठा करने वालों ने गरीबों को तो घर में कैद कर दिया और अब वही गरीब एक-एक रुपये के लिए दूसरों के आगे हाथ फैला रहा है और दोनों सरकारे चन्दो के पैसे से एक रुपये की मदद भी किसी गरीब को अब तक नहीं कर पाई है। सरकार यह क्यों नहीं समझती कि जिन गरीब जरूरतमंदों को भोजन के पैकेट सूखे राशन के पैकेट बाटना व फोटो खींचकर सोशल मीडिया व मीडिया की सुर्खियों में आना लाकडॉउन् के दौरान फैशन बन गया है उससे उनकी मदद नहीं बल्कि उनके आत्मसम्मान को ठेंस पहुंचाकर गरीबी और गरीबों का मजाक उड़ाया जा रहा है। यह सब आडम्बर ना करके सीधे उनके हाथों में या खातों में राशि भेजे तो वे अपने आत्म सम्मान के साथ अपने परिवार का पालन पोषण कर सकते है क्योंकि जो मदद दिखावे के लिए की जाये वह निस्वार्थ नहीं होती मदद तो वह होती हैं जो सीधे हाथ से की जाये तो उल्टे हाथ को पता ना चलें।

 

 

 

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