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गांववाले बोले- दुख तो हुआ, लेकिन चलिए निजात मिली; दोषी के माता-पिता ने घर का दरवाजा नहीं खोला

 

सबका संदेस न्यूज़औरंगाबाद (बिहार).निर्भया कांड के दोषी अक्षय सिंह ठाकुर को सुबह साढ़े पांच बजे तिहाड़ में फांसी के फंदे पर लटकाया गया। दिल्ली से करीब 900 किमी दूर बिहार के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर अक्षय का गांव कर्मालहंग है। शुक्रवार सुबह मैं कर्मालहंग गांव पहुंच

मैं जब सुबह-सुबह गांव पहुंचा तो मातमी सन्नाटा पसरा हुआ था। गांव में जगह-जगह लोग समूह बनाकर बात कर रहे थे। बुजुर्ग एक समूह में थे और युवक थोड़ी दूर झुंड बनाकर बातचीत कर रहे थे। मैं जैसे ही बाइक से गांव में अंदर गया तो आसपास खड़े ग्रामीण संदेह की निगाह से मुझे देखने लगे। करीब एक किमी. गांव के अंदर चलने पर चार-पांच युवक सड़क पर ही खड़े थे। गांव में नया चेहरा देखकर उनमें से एक ने पूछा- “कहां जाना है।” बगल में ही खड़ेएक दूसरेयुवक ने पूछा- “मीडिया वाले हैं क्या?” मैंने कहा नहीं। गांव में एक रिश्तेदार के यहां आया हूं। आगे जाना है।

फिर मैंने अंजान बनकर पूछ लिया। गांव में कुछ हुआ है क्या? उसमें से एक युवक बोला- “कुछ नहीं। निर्भया वाले मामले मेंगांव के लड़केअक्षय को फांसी हुई है। कल से (गुरुवार से) मीडिया वाले तंग किए हैं। बार-बार आकर कुछ न कुछपूछते रहते हैं। फिर मैं भी जानकारी लेने के लिए वहां ठहरकर उनसे बातचीत करने लगा। उनमें से एक युवक ने बताया- “गांव का लड़का था अक्षय। यही पास में घर है उसका। आज सुबह उसे फांसी दे दी गई। दुख तो होता है। मैं जानता था उसे। लेकिन, चलिए निजात मिली। जब से निर्भया का मामला हुआतब से पूरा गांव तंग था। हमारे रिश्तेदार भी आते हैं तो पूछते हैं कि अक्षय का घर कौन सा है? उसका घर देखने के लिए जाते हैं। बड़ी शर्म आती थी। गलत काम तो किया था, उसी की अब सजा मिली है।

फिर मैं गांव में आगे बढ़ा। वीरानी और मातमी सन्नाटा नजर आया। बुजुर्ग महिलाएं भी घर के बाहर खड़ी थी। सबकी जुबान पर अक्षय का जिक्र था। आगे चलकर मैं एक किराने की दुकान पर रुका। वहां महिलाएं भी खड़ी थीं। वह भी अक्षय की बात कर रही थी। मैंने बात करने की कोशिश की। लेकिन, वह वहां से हट गई। गांव में घूमने के दौरान एक बात मुझे महसूस हुई। गांव के लोगों को अक्षय को फांसी पर चढ़ाए जाने का दुख तो था। लेकिन, अफसोस नहीं। जो उसने किया था, उसके प्रति लोगों में नाराजगी थी।

एक दिन पहले भी मैं गांव गया था, तब लाठी लेकर लोगों ने खदेड़दिया था
मैं कल (गुरुवार) भी कर्मालहंग गांव आया था। कुछ और मीडिया वाले भी थे। अक्षय के घर से ठीक पहले एक घर के बाहर दो महिलाएं बैठी थी। हमने जैसे ही अक्षय का नाम लिया वैसे ही एक महिला ने कहा-बाबू हमरा के कुच्छो पता न हव, हमरा तंग न कर। इतना कहते ही महिला अपने घर में चली गई। बगल में अक्षय का घर था। मैंने करीब 15 मिनट तक घर का दरवाया खटखटाया। लेकिन, कोई बाहर नहीं निकला। घर में लोग थे। लेकिन, मीडिया वालों का पता चलते ही किसी ने दरवाजा नहीं खोला। आसपास पूछा तो पता चला कि घर में अक्षय के माता-पिता और एक भाई रहते हैं।

‘अक्षय ने जैसा किया, उसे वैसी सजा मिल रही है’
गांव की मुखिया मालती देवी से बातचीत हुई। वह कहती हैं- “अक्षय ने जैसा किया उसे वैसी ही सजा मिल रही है। गांव के लड़के को फांसी हो रही है इसका दुख जरूर है। अक्षय के चलते उसका परिवार भी नरक भोग रहा है। अक्षय की पत्नी पुनीता देवी अपने बेटे को लेकर दिल्ली गई है। पुनीता के साथ अक्षय का बड़ा भाई विनय भी दिल्ली गया है। घर में माता-पिता और एक भाई है।”

“एक लड़के की गलती से पूरा गांव बदनाम हो गया”
मुखिया से बातचीत करके आगे बढ़ा तो देखा कि खेत के पास कुछ युवक बैठे हैं। युवकों ने पूछा किस काम से आए हैं? मैंने जैसे ही अक्षय का नाम लिया युवकों का हाव-भाव बदल गया। एक ने कहा- “क्यों हमारे जख्म पर नमक रगड़ने चले आते हैं आप लोग। अक्षय का इस गांव से कोई नाता नहीं है। उसने हमारे गांव की इज्जत मिट्टी में मिला दी। 7-8 साल पहले हमारे गांव को लोग इज्जत की नजर से देखते थे। इस गांव के कई युवक अपने दम पर आगे बढ़े। जब से निर्भया का मामला सामने आया है, यहां आने वाला हर कोई अक्षय के बारे में पूछता है। एक लड़के ने गलती की और पूरा गांव बदनाम हो गया। हमारे रिश्तेदार भी अब घर आने से कतराते हैं।”

और फिर लोग लाठी लेकर आ गए….
मैं बात कर रहा था इसी दौरान गांव के चार-पांच लोग और जुट गए। उन्होंने युवकों से कहा कि मीडियावालों से बात करने की जरूरत नहीं है। लोग हमारा तमाशा बनाने आ गए हैं। एक युवक ने गुस्से में कहा- “चले जाइए, नहीं तो आपके साथ गलत हो सकता है। बाहर से आए हैं इसलिए अभी तक लिहाज रखा है।” ये बातें चल ही रही थी कि चार मीडियाकर्मी और वहां आ गए। मीडियाकर्मी मोबाइल से वीडियो बनाने लगे। यह देख ग्रामीण आक्रोशित हो गए। एक युवक ने बोला लाठी लाओ, ये लोग ऐसे नहीं मानेंगे। तभी पांच-छह लोग लाठी लेकर आ गए। यह देख हमने तुरंत गांव छोड़ना ही उचित समझा।

 

 

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