जनप्रतिनिधियों पर भी दिखने लगा खाली खजाने का असर, चरोदा निगम के पार्षदों को दो माह से नहीं मिला मानदेय

भिलाई । निकाय मद में जमा राशि को भिलाई-चरोदा नगर निगम द्वारा कार्यालय भवन के विस्तार में खर्च किए जाने का खामियाजा न केवल कर्मचारियों को बल्कि यहां के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी भुगतना पड़ रहा है। निगम का खजाना खाली रहने से जहां कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हुए हैं, वहीं महापौर सभापति और 40 पार्षदों को भी प्रति माह मिलने वाली मानदेय राशि नसीब नहीं हो पा रही है। यहां के जनप्रतिनिधियों को जून और जुलाई दो माह का मानदेय नहीं मिल पाया है। इस वजह से राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियों में आर्थिक सहयोग करने जनप्रतिनिधियों के हाथ बंध से गए हैं। इससे उनकी राजनीतिक चमक और प्रभाव को बनाए रखने में भी दिक्कत हो रही है। हालांकि सभी के साथ यह स्थिति नहीं है। कुछ ऐसे भी जनप्रतिनिधि है जो आर्थिक रूप से सक्षम है। ऐसे जनप्रतिनिधियों के लिए निगम की मानदेय राशि आर्थिक दृष्टिकोण से खास अहमियत नहीं रखती है। लेकिन निगम के अनेक पार्षद ऐसे हैं जिनकी निजी आय सीमित होने से निगम से मिलने वाली मानदेय राशि राजनीतिक खर्चे में अहम भूमिका निभाती है।
ज्ञातव्य हो कि नगर निगम के महापौर को 13 हजार 500 तथा सभापति को 11 हजार 500 रुपए प्रतिमाह शासन से मानदेय मिलता है। जबकि पार्षदों के लिए प्रति माह मानदेय राशि 7500 रुपए निर्धारित है। भिलाई-चरोदा निगम की पहली निर्वाचित परिषद ने जनवरी 2017 को पदभार ग्रहण किया। तब से लेकर मार्च 2019 तक यहां के सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को नियमित रूप से प्रत्येक माह एक से दस तारीख के बीच मानदेय मिलता रहा। नये वित्तीय वर्ष की शुरुवात होते ही कर्मचारियों को वेतन और जनप्रतिनिधियों को मानदेय देने में निगम को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। निगम जिस तरीके से अभी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है उसके लिए वह खुद जिम्मेदार है। दरअसल, निगम गठन के वक्त भिलाई-चरोदा के निकाय मद में अच्छी खासी रकम थी। इस मद की राशि का उपयोग निगम कार्यालय भवन के विस्तार में खर्च कर दिया गया। हालांकि पालिका से निगम बनने के बाद कार्यालय भवन का विस्तार किया जाना आवश्यक था। इसके लिए शासन से प्रस्ताव के अनुरुप राशि मांगी जानी थी। लेकिन ऐसा नहीं करते हुए निकाय मद में जमा राशि का ही उपयोग कार्यालय भवन के विस्तार कार्य में लगा दी गई। इससे निगम के खजाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसका असर अब जाकर देखने को मिल रहा है। अधिकारी वर्ग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर निगम की आर्थिक स्थिति को संबल प्रदान करने का आग्रह कर चुके हैं। शासन से सहयोग मिलने से ही निगम की चरमराई व्यवस्था पटरी पर लौट सकती है।
विकास के लिए निधि का भी टोटा
पार्षदों को मानदेय तो नहीं मिल रहा है साथ में विकास के लिए मिलने वाली निधि का भी टोटा बना हुआ है। पार्षदों को प्रतिवर्ष वार्ड में विकास के लिए तीन लाख की पार्षद निधि मिलती है। यह राशि नये वित्त वर्ष के शुरू होते ही मिल जाती थी। लेकिन इस बार चार माह बाद भी भिलाई-चरोदा निगम को शासन ने पार्षद निधि मुहैया नहीं कराया है। एक तो मानदेय नहीं मिलने से पार्षदों को अपने वोटरोंं को प्रत्यक्ष और निजी तौर पर संतुष्ट कर पाने में अड़चन हो रही है, वहीं दूसरी तरफ जनभावना के अनुरुप पार्षद निधि से विकास कार्य कराने का वायदा पूरा नहीं होने से भी जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है।
कर्मचारियों को मिला मई का वेतन
निगम के खाली खजाने के चलते कर्मचारियों को दो दिन पहले ही मई माह का वेतन उनके बैंक खातों में भेजी गई है। अब जून और जुलाई का वेतन लंबित रह गया है। इस तरह नये वित्त वर्ष के शुरुवाती 4 महीनों में से कर्मचारियों को वेतन दो माह का ही वेतन नसीब हो पााया है। ऐसा विपरीत परिस्थिति का यहां के कर्मचारियों ने वर्ष 1999 में कभी स्वतंत्र निकाय बनने के बाद से कभी भी सामना नहीं किया था। येन शैक्षणिक सत्र की शुरुवात में ही वेतन के अनियमित हो जाने से निगम कर्मचारियों को अपने बच्चों की पढ़ाई, लिखाई व वास्ते ब्याज में रकम कर्ज लेनी पड़ी है। हालात कब सुधरेंगे इस बात को लेकर छायी संशय की स्थिति छंटने का नाम नहीं ले रही है।