Aarti Narsingh Bhagwan ki : “ॐ जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे। स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, जनका ताप हरे”॥
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Aarti Narsingh Bhagwan ki : नृसिंह, न पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु। हिरण्यकश्यप का वध करते समय उन्होंने नृसिंह ने उसे अपनी जांघ पर लिटाया था, इसलिए वह न धरती पर था और न आकाश में था। उन्होंने अपने नाखून से उसका वध किया, इस तरह उन्होंने न तो अस्त्र का प्रयोग और न ही शस्त्र का। इसी दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।
Aarti Narsingh Bhagwan ki : आईये हम करें श्री नरसिंघ भगवान की आरती
ॐ जय नरसिंह हरे,
प्रभु जय नरसिंह हरे ।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
जनका ताप हरे ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
Aarti Narsingh Bhagwan ki
तुम हो दिन दयाला,
भक्तन हितकारी,
प्रभु भक्तन हितकारी ।
अद्भुत रूप बनाकर,
अद्भुत रूप बनाकर,
प्रकटे भय हारी ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
Aarti Narsingh Bhagwan ki
सबके ह्रदय विदारण,
दुस्यु जियो मारी,
प्रभु दुस्यु जियो मारी ।
दास जान आपनायो,
दास जान आपनायो,
जनपर कृपा करी ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
Aarti Narsingh Bhagwan ki
ब्रह्मा करत आरती,
माला पहिनावे,
प्रभु माला पहिनावे ।
शिवजी जय जय कहकर,
पुष्पन बरसावे ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
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