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Big Picture With RKM: जम्मू में बढ़ती दहशतगर्दी और जवानों की शहादत से बढ़ी चिंता.. आतंक से निपटने के क्या इन विकल्पों पर फैसला लेगी सरकार? जानें,,

Big Picture With RKM: रायपुर: यह लगातार दूसरा हफ्ता है जब हमने जम्मू कश्मीर (Jmmu & kASHMIR) में अपने जांबाज सैनिकों को खोया है। पिछले हफ्ते सामने आएं एक हमले में भी हमारे पांच सैनिक शहीद हुए थे, इसमें एक उच्च रैंक का अफसर भी शामिल था। आतंकियों ने उनकी गाड़ी पर हमला बोल दिया था जिससे सभी हताहत हुए। (How can Modi Government tackle terrorism?) लगातार हुए इस हमले और इनमें हुई शहादत का हम सभी को दुःख हैं और कोई भी भारतीय ऐसे हमलों को मंजूर नहीं करेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल हैं कि आखिर यह घटनाएं क्यों सामने आ रही हैं?

शांत क्षेत्र निशाने पर

इन हमलों में देखा गया कि आतंकी पहले जहां घाटी क्षेत्र में अपने नापाक मंसूबो को अंजाम देते थे वह इस बार जम्मू क्षेत्र को निशाना बना रहे हैं। यह पूरा इलाका आतंक से मुक्त रहा है। करीब दो सालों से इन इलाको में आतंकी गतिविधियां न के बराबर थी। ज्यादातर हमले घाटी क्षेत्र में ही सामने आये थे। लेकिन यह चिंता के साथ सोचने वाली बात हैं कि इस शांत क्षेत्र को आतंकी आखिर क्यों निशाना बना रहे है? हैरानी और दुःख कि बात यह भी हैं कि पिछले एक महीने या कहे जब से नई सरकार ने कामकाज शुरू किया है, हमारे 12 जवान और 10 नागरिक इन हमलों की भेंट चढ़ चुके हैं। इनमें तीर्थयात्रियों के बस पर हुआ हमला भी शामिल हैं। इसी तरह का आंकड़ा बीते तीन सालों का है। करीब 50 जवानों को हम खो चुके हैं।

क्या लोकतंत्र की मजबूती से घबराएं चरमपंथी?

गंभीरता से किये गए विश्लेष्ण में इन आतंकी घटनाओं के संभावित वजहों को समझा जा सकता हैं। दरअसल जम्मू में पिछले कुछ सालों में बड़े बदलाव महसूस किये गये हैं। फिर वह चुनावी हो या विकास से जुड़े। इस बार के लोकसभा चुनाव में जम्मू के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। वे घरों से निकले और वोट किया। इसी तरह धारा 370 के हटने के बाद समूचे क्षेत्र में व्यापक तौर पर विकास के कार्य हुए। संभवतः यही विकास और जम्मू के लोगों की लोकतंत्रिक प्रक्रियाओं में हिस्सा लेना आतंकियों को रास नहीं आ रहा हैं। वे नहीं चाहते कि जम्म्मू समेत भारत में लोकतंत्र की स्थापना हो।

दूसरी वजह पर गौर करें तो धारा 370 के प्रकरण पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को जम्मू कश्मीर में 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। इसके बाद से ही चुनाव आयोग ने चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं। अगस्त महीने के पहले या दूसरे हफ्ते में आयोग चुनाव कार्यक्रम का ऐलान कर सकता है। (How can Modi Government tackle terrorism?) सम्भवतः यह भी आतंकियों को रास नहीं आ रहा। जाहिर तौर पर अगर जम्मू में लोकतंत्र की स्थापना होती है और जनता की सरकार चुनकर आती हैं तो कश्मीर को छीन लेने के उनके नापाक मंसूबो को बड़ा झटका लगेगा, लिहाजा वह लगातार क्षेत्र में हिंसक हमलों से और दहशतगर्दी फैलाकर अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे है।

बात तीसरी वजह की करें तो जिन क्षेत्रों में दहशतगर्दी का आलम हैं वह मुख्य तौर पर बीजेपी तानी सत्ताधारी दल के मजबूत क्षेत्र हैं। ऐसे में आतंकी लोगों के बीच यह भ्रान्ति फैलाने की कोशिश में हैं कि जिस बीजेपी ने धारा 370 हटाकर आतंकी गतिविधियों के ख़त्म होने का दावा किया था या फिर उन्होंने क्षेत्र और क्षेत्र के लोगों के लिए विकास के नए रास्ते खोले है वह झूठ हैं। इस तरह वे जनता के मन में यह बात लाने के प्रयास में हैं कि आतंकवाद और दहशतगर्दी अब भी क्षेत्र में कायम हैं।

हमने यह भी देखा है कि धारा 370 को वापस लिए जाने के बाद से ही क्षेत्र में विकास के नए रास्ते खुले थे। निवेश आ रहे थे, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे थे। इस तरह अगर युवाओं को रोजगार मुहैय्या हुए तो वे युवा आतंक की राह पर आगे नहीं बढ़ेंगे। बेरोजगारी को आतंक की बड़ी वजह भी बताया जाता रहा है। इन सबके बीच हमने देखा हैं कि पिछले कुछ समय से यहां कोई पत्थरबाजी की घटना नहीं हुई। स्थानीय लोगों में वह गुस्सा या नाराजगी देखने को नहीं मिली जो धारा 370 से पहले देखने को मिलती थी। संभवतः आतंकी इस शांति और स्थिरता से भी चिंतित है और माहौल बिगाड़ने के कुत्सित प्रयास में जुटे हैं।

आतंक पर सियासत भी

जम्मू के इन आतंकी घटनाओं की गूँज दिल्ली में भी देखने को मिल रही हैं। आज ही लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस पूरे हमले और जवानों की शहादत की जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी हैं। उन्होंने परोक्ष तौर पर धारा 370 के हटने को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया है। इसी तरह के बयान एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से भी आएं है। उन्होंने भी सरकार पर तंज कसते हुए पूछा हैं कि उनके शांति के दावों का क्या हुआ? आपने घर में घुसकर मारने की बात कही थी तो उस पॉलिसी का क्या हुआ? तो फिलहाल निशाने पर सरकार हैं और विपक्ष इस पर आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं। ऐसे में अब समय आ गया हैं कि इस मसले पर सरकार मूकदर्शक न बने बड़े कदम उठायें।

आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा हैं कि वह देश के दुश्मनों को छोड़ेंगे नहीं तो ऐसे में सवाल उठते हैं कि सरकार के पास अब इससे निबटने के क्या विकल्प हैं? हम जानते हैं कि पीओके (POK) के सरहदी इलाके आतंकियों के लॉन्चपैड है तो सरकार फिर से एक बार एयर स्ट्राइक जैसे कदम उठा सकती हैं? दूसरा कि कई देशों में देखा गया हैं कि भारत के कई दुश्मनों को अज्ञात लोगों में मार गिराया। हालांकि यह किसने किया यह नहीं पता लेकिन भारत ने भी कभी इससे मजबूत तौर पर इंकार नहीं किया। ऐसे में चाहिए कि हम भारत विरोधी संगठनों, आतंकी दलों के बड़े नेताओं को निशाना बनाये, उन्हें खत्म करें। (How can Modi Government tackle terrorism?) एक और विकल्प पर बात करें तो हमें अब यह मुद्दे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से उठाने की जरूरत हैं। ऐसे में पाकिस्तान जैसा देश जो पहले से ही विश्व समुदाय के बीच अलग-थलग पड़ा है वह खुद भी आतंक को ख़त्म करने पर मजबूर हो जायें। तो सरकार को इस तरह का माहौल सरकार को बनाने की जरूरत हैं और वे निजी तौर पर मानते हैं कि देश के सुरक्षा मामलों पर किसी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए।

 

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