नवरात्रि का पर्व शक्ति संचय व जागरण का पर्व-हिमांशु महाराज

लोरमी-सनातन हिन्दू धर्म मे नवरात्रि का पर्व शक्ति संचय का पर्व के रूप मे माना गया है।चैत्र बासंती पर्व को जहा पूरा राष्ट्र हिन्दू नववर्ष के रूप मे प्रत्येक घरो मे भगवा ध्वज का पूजन व आरोहण किया जाता है वही आश्विन शुक्ल शारदीय नवरात्रि को विजय पर्व के रूप मे मनाने की परंपरा है।इन दो प्रकट नवरात्रि के अतिरिक्त दो गुप्त नवरात्रि क्रमशः आषाढशुक्ल तथा माघ शुक्ल पक्ष मे सम्पूर्ण भारत आदिशक्ति की आराधना कर आत्मकल्याण जनकल्याण तथा विश्व कल्याण की कामना करता है।यह विचार कथावाचक व्यास डाक्टर पंडित सत्यनारायण तिवारी हिमांशु महाराज ने गान्धीडीह लोरमी मे रामप्रसाद राजपूत के घर आयोजित श्रीमददेवी भागवत महापुराण कधा के शुभारंभ के दौरान व्यक्त किए। डाक्टर तिवारी ने नवरात्र मे शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चन्द्रघण्टा ,कुष्माण्डा, स्कन्दमाता ,कात्यायनी,कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री सहित अनेक सिद्ध शक्तिपीठो मे लोग बड़े ही श्रद्धा के साथ दर्शन पूजन तथा मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित कराकर विश्वमंगल की कामना करते है।भगवान शंकर, भगवान कृष्ण तथा भगवान श्रीराम द्वारा जगत को शिक्षा देने नवरात्र की महिमा का गायन किया गया।महर्षि वेदव्यास ने राजर्षि जनमेजय को उनके पिता राजर्षि परीक्षित के माध्यम से जगत कल्याण की कामना से देवीभागवत की कथा वाचन किया।इस दिव्य नवान्ह यज्ञ मे शक्ति को जीवन का आधार माना गया है।द्रव्य शक्ति, विचारशक्ति सहित अनेक प्रकार की शक्तियो द्वारा सृष्टि का संचालन हो रहा है।ब्रह्माजी जगत की उत्पत्ति, भगवान विष्णु जगत का पालन तथा भगवान शंकर सृष्टि के संहार का कार्य इन्ही शक्तियो के द्वारा करते है।शक्ति ही जगत का आधार है।हम चारो नवरात्र के माध्यम से संसार मे प्रेम सद्भाव तथा मैत्रीपूर्ण वातावरण निर्माण हेतु साधनारत होते है।