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The Big Picture With RKM: पीएम बनते ही मोदी का रशिया दौरा.. क्या है इस दोस्ती के मायने? जिओ पॉलिटिक्स में क्या होगा इसका असर?..

 

रायपुर: तो द बिग पिक्चर विथ आरकेएम में आज हमारे साथ जुड़ गए हैं आईबीसी24 के एडिटर-इन-चीफ रविकांत मित्तल के साथ। सवाल यह है कि एक सशक्त इंटरनेशनल लीडर की छवि रखने वाले हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पुराने दोस्त रूस के दौरे पर पहुंचे हैं। आज शाम और प्रधानमंत्री की इस रूस यात्रा की दोनों ही देशों की बिग पिक्चर पर क्या असर पड़ सकता है?

देखो होता क्या है कि, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री जब जीत कर आते है तो वह जो अपनी पहली विदेश यात्राएं करते हैं, वह पड़ोसी देश के साथ करते हैं। ऐसा सामन्यतः होता आया है। लेकिन यह पहली बार हुआ कि पीएम मोदी ने थर्ड टर्म में जीतने के बाद अपनी पहली बायलट मीटिंग रखी है वो रशिया के राष्ट्रपति पुतिन के साथ रखी है हालांकि इसे 22वां इंडो-रशिया एनुअल समिट कहा जा रहा। लेकिन यह बहुत महत्त्वपूर्ण है।

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तीन क्षेत्रों में रूस बड़ा भागीदार

रशिया के साथ हमारे बहुत ही पुराने रिश्ते हैं और एक समय ऐसा था कि हम हमारी डिफेंस या रक्षा के यंत्र या इक्विपमेंट लगभग 80 फीसदी रशिया से लेते थे। फिर चाहे वो हमारे पानी के जहाज हो चाहे वो हमारे लड़ाकू जहाज, चाहे हमारी आर्मी की बंदूकें। ज्यादातर जो इक्विपमेंट है वो हम रशिया से लेते थे। इसलिए रशिया और भारत के तीन क्षेत्रों में बहुत मजबूत रिश्ते रहे। एक डिफेंस का, एक स्पेस और एक एनर्जी का। अब समय के साथ डिफेंस पे हम कम निर्भर हो रहे हैं। क्योंकि चाइना से उनका रिश्ता बढ़ रहा है। डिफेंस के लिए भारत ने फ्रांस, अमेरिका, इजराइल के साथ भी अपने रिश्ते बढ़ा लिए हैं लेकिन, चाइना-यूक्रेन युद्ध के बाद से अगर हमारा और उनका जो सबसे ज्यादा ट्रेड बढ़ा है वह एनर्जी सेक्टर में। इस समय भारत अपनी जरूरत का 40 प्रतिशत कच्चा तेल रशिया से लेता है। यह काफी दिलचस्प हैं क्योंकि पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंध लगा रखा है, तो कच्चा माल भारत खरीदता है, उसको प्रोसेस करता है और वही वह यूरोप और पश्चिमी देशों को बेचता है लेकिन इससे बहुत ही पैसा पिछले दो-तीन सालों में यानी जब से यूक्रेन का हमला हुआ हैं उसके बाद बचाया हैं। इसी तरह स्पेस एक्सप्लोरेशन में भी हमारा रशिया के साथ बड़ा रिश्ता रहा है। इस तरह ये जो बातें हैं जो हमारे आपसी रिश्तों में हमेशा से रही हैं लेकिन, जब से यह समीकरण बदले हैं, जब से यूक्रेन पर रशिया ने हमला किया है पूरे दुनिया में समीकरण बदल गए हैं। पहला रशिया और चाइना का रिश्ता।

रूस-चीन आएं करीब

हाल के दिनों में रशिया चाइना के करीब आया है और चाइना से हमारी पटती नहीं है। जबकि रशिया हमारा पुराना दोस्त है तो, यह यात्रा इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि हमको यह इंश्योर करना है कि अगर आप चाइना से दोस्ती कर रहे हो ठीक हैं लेकिन पूरी तरीके चाइना पर निर्भर ना हो जाओ। पूरी तरीके से रूस की चाइना से दोस्ती इतनी ना हो जाए। क्योंकि हमारी चाइना से दुश्मनी है तो हमारे इंटरेस्ट जुड़े हैं। इसमें हमें नुकसान न हो, कहीं कंप्रोमाइज ना हो जाए तो यह पूरा बैलेंस बनाने के लिए भारत को रशिया के साथ अपनी दोस्ती मजबूत दिखानी पड़ेगी जिससे कि वो बैलेंस बना रहे।

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भारत अब भी तटस्थ

अब दूसरी तरफ आप देखिए कि भारत के रिश्ते अमेरिका से भी अच्छे हैं और दूसरे पश्चिमी देशों से भी अच्छे हैं लेकिन, रूस और अमेरिका में नहीं पटती है। अब कहीं रूस को यह ना लगे कि भारत का अमेरिका की तरफ झुकाव ज्यादा हो रहा है। तो यह चीज भी बैलेंस रखना है। क्योंकि पश्चिमी देश और अमेरिका रूस के खिलाफ खड़ा हुआ है क्योंकि वो यूक्रेन को सपोर्ट कर रहे हैं और रशिया यूक्रेन से लड़ाई लड़ रहा है लेकिन, हम तटस्थ है। हमने किसी भी मंच पर यूक्रेन को लेकर रशिया की बुराई नहीं की।

यह युग युद्ध का नहीं: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री का एक बहुत फेमस कोट है कि यह जो समय है वो युद्ध का समय नहीं है। यह कोई आज का जो ईरा है ये युद्ध वाला ईरा नहीं है। हर मतभेद बैठकर, बातचीत करके हमें सुलझाने चाहिए। तो यह बैलेंस भी दिखाना है कि कहीं रशिया को ये ना लगे कि भारत का अमेरिका और पश्चिमी की तरफ झुकाव ज्यादा हो रहा है। तो इसके लिए भी ये मीटिंग बहुत इंपॉर्टेंट है।

तीसरा यह कि ऐसा माना जाता है कि, जो युद्ध चल रहा है उसका सॉल्यूशन करने में कई बार प्रधानमंत्री का नाम उछला है तो उसपर क्या बात होगी, क्या नहीं होगी यह भी देखने वाली बात होगी कि उसमें आखिर निकल के क्या आता है। तो अब ये जो समीकरण है इसे देखते हुए हमारा और भारत को यह भी दिखाना है कि भारत वह किसी की मुसीबत में अगर काम आ रहा है तो व उसका पक्का दोस्त है। दोस्त वही है जो मुसीबत में आपके साथ खड़ा रहे। इस समय रशिया आइसोलेट कर दिया गया है। वह एकदम आइसोलेशन में है। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। प्रधानमंत्री का रशिया के साथ खड़ा होना यह भी दर्शाता है कि देखिए हम मुसीबत के दोस्त हैं और हम अपने निर्णय खुद करते हैं। तो यह सारी बातों का लब्बोलुआब अब यह है कि भारत जो भी करेगा उसका प्रिंसिपल, नेशनल इंटरेस्ट सबसे आगे होगा। हम वही करेंगे जो हमारे हित में होगा, जो हमारे हक में होगा, जो हमारे देश के लिए फायदेमंद होगा। अब भारत किसी भी देश के इशारे पर कोई काम नहीं करेगा। भारत ऐसी किसी इक्वेशंस को मानने को तैयार नहीं है। हम निष्पक्ष रहेंगे। हम केवल यह देखेंगे कि भारत के इंटरेस्ट में क्या है और उसके हिसाब से हम जो दुनिया के जो जो दूसरे देश हैं उससे हमारी दोस्ती कैसी हो, कितनी हो, कब हो, कब नहीं हो। इसका निर्णय केवल और केवल नेशनल इंटरेस्ट को ऊपर रखकर किया जाएगा।

तो ये सारी कवायद इसे ही लेकर है। ये मानना है कि रशिया हमारा अच्छा दोस्त है, उससे हमारी अच्छी दोस्ती बनी रहनी चाहिए लेकिन, हमें ये भी ध्यान देना है कि वह पूरी तरह से चाइना की तरफ झुक न जायें। हमें यह भी बताना है कि हमारी अमेरिका-पश्चिमी देशों से दोस्ती है लेकिन, हम आपके साथ आपकी मुसीबत में खड़े हुए हैं। तो इस तरह एक पूरा बैलेंस है। ये देखना बहुत जरूरी होगा कि पीएम मोदी इस बैलेंस को कैसे बनाते हैं। और हमें लगता हैं कि अगर नेशनल इंटरेस्ट सबसे सामने रखते हैं तो यह कोई ज्यादा कठिनाई वाली बात नहीं होगी।

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